Sunday, 30 June 2019

इंद्र देवता की कृपा भी क्या कमाल करतें हैंकहीं झमाझम बारिष कही सूखे खेत रोते हैं।

आज की बारिश में.......
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किसी चेहरे पर खुशी
किसी चेहरे पर उदासी
आज की बारिष में ........

किसी की छत चू रही होंगी
किसी आँगन में पानी का पोखर
मायूस सी गृहणी सोचती होगी
रोटी सीकेगी कैसे तवे पर

आज की बारिष में......

कपड़े सारे  भीग गये होंगे
ईन्हंन भी गीले हो चुके होंगे
कैसे मारूं फूंक इनपर
की धुवें से दम घुटने लगेंगे

आज की बारिश में.....

फिर भी मन न जाने क्यों खुश है
धान के बीज रोपा था जो खेत में
चलूं उनको ही देख कर खुश होतें हैं
अन्न की अच्छी पैदावर होगी खेत में

आज की बारिश में....

दाता! ये कैसा न्याय है तेरा
कभी सूखा कभी सैलाब लेआता
कभी गांव के गाँव हैं उजड़ते
कही पानी कों तरसता इंसान तेरा!

आज की बारिष में....

        🌷उर्मिला सिंह


Saturday, 29 June 2019

भले ही नारी उचाईयों को छू ले पर हर कदम पर बंदिशों का सामना करना पड़ता है ,ईसी भाव को शब्दों में ढाल कर पन्नों पर बिखेर दिया है।

एक कहानी .....जिन्दगी की....

            जिन्दगी , जो पतंग की तरह नीले आकाश में उड़ती है ,छूना चाहती है अम्बर को , पर डोर तो किसी और के हाथ में होती है , जितनी ढील मिलती है पतंग उसी हिसाब से उड़ती है  ।
               आज न जाने क्यों मन सोचने लगा कि  सारी बंदिशें नारी के ही लिये क्यों? क्या पुरुष को अनुशासन, संस्कारों की जरूरत नही पड़ती। उनके ह्रदय की संवेदनाओं को जगाना जरूरी नही होता । इन्ही बातों के उधेड़ बुन में बैठी थी कि मेरी एक बचपन की सहेली का फोन आया " आ जाओ आज मेरे यहाँ शाम की चाय एक साथ पीतेें हैं" । विचारों को वहीं स्थगित कर के मैं अपनी सहेली के यहाँ पहुंची, वहाँ मेरी सहेली कुछ मायूस सी लगी।  आगे बढ़ कर मैंने उसे गले लगाया तथा पूछा"कैसी हो आज ये खिलता चेहरा मुर्झाया सा क्यों है" । हल्की सी
मुस्कान की एक पतली रेखा उसके अधरों पर खिंच गई।
              मुझे समझने में देर नही लगी कि  कुछ तो गड़बड़ है। बात आगे बढ़ाने के लिये मैंने कहा ,"सुषमा चाय पिला यार फिर आराम से बात करतें हैं"। कुछ देर हम दोनों शांत बैठे रहे तभी चाय और गरमागरम पकोड़े भी आगये....
फिर क्या था हम दोनों चाय की चुस्कियों के साथ बातें करने लग गये । बातों का सिलसिला कुछ ऐसा चला कि समय का पता ही नही चला ।
               तभी उसकी बेटी बाहर से आई ....! उसे देखते ही सुषमा बिफर पड़ी  "इतनी देर क्यो ? नित्य तुम कुछ न कुछ बहाना बनाती हो , कभी ट्यूशन, कभी ट्रेनिंग आखिर करती क्या हो ,लड़कियों का इतना घूमना अच्छा नही होता तुम्हे दूसरे के घर जाना है इत्यादि इत्यादि.."..। मैं आवाक कभी उसे कभी उसकी लड़की को देखती रही  । अन्त में मुझसे रहा नही गया मैने पूछ ही लिया " सुषमा! ...यही पश्न तुमने अपने लड़के से कभी पूछा ?शायद नही" .....उसने तपाक से उत्तर दिया "वह तो लड़का है कौन दूसरे के घर जाना है"...
            
            आश्चर्य चकित मत होइए ये घर - घर की कहानी है
आज भी कितने घरों में यह सोच पल्लवित पुष्पित हो रही है। सुषमा की लड़की पर्स बैग ऐसे ही समानों का बिजनेस करती है  फिर भी उसपर अंकुश  और बेटा पढ़ रहा है पर स्वतंत्र । उसे मैंने समझाया और कहा की लड़की को उसकी जिन्दगी जीने दो उसके पर मत काटो उड़ान भरने दो......।
सुषमा से गले मिलते हुवे मैं सोचती रही ..........

               नारी बंदिशों में कब तक जीती रहेगी -- कभी  माँ बाप ने बन्दिशों का संस्कार नाम दे दिया-- कभी सास ससुर ने परम्पराओं एवम अनुशासन के नाम पर जंजीरों में जकड़ दिया , पतिदेव ने अपनी इक्छाओं , सपनो को समर्पित कर
वफ़ा का नाम दिया , बच्चे उससे भी दो कदम आगे नई एवम पुरानी सोच का अन्तर बता दिया। मैं सोच में ठगी ठगी सी नारी को महसूस करती रही।
             क्या विडम्बना है , .... ! जिन्दगी हमारी ,पर हमारी हर साँस पर दूसरों का कब्जा और हमने इन्ही सांसों को जिन्दगी का नाम दे दिया ..........
             आखिर क्यों......क्यों.......
            
                                                 🌷उर्मिला सिंह         

Friday, 28 June 2019

वर्षा की मीठी फुहारों को देख कृषक मन झूम उठा अब अन्न से घर भरेगा ,सोचे हुवे सपने साकार होंगे....

बरखा रानी झूम के बरसो......
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छमछम बरसे मेघा मिटी धरा की प्यास! 
हर्षित मन किसान का छेड़े मोहक तान !!                                         

अन्नदाता आस लगावे जोड़े प्रभु का हाथ
अबकी अन्न भरो दाता घर आँगन की शान

पिछले कर्ज चुकाय बेटी का करूँ विवाह
धनिया को खरीद सकूँ धानी चुनर इस बार!!

ताल तलैया भर उठे धुले धुले हर पात!
नदिया यौवन गर्विता चली सजन के पास!!

बारिष में बच्चे खेल रहे छपाक छपाक!
जलकी रानी इतराय रही जल की देख बहार!!

नारी मन विह्वल हुवा महकी सावनी बयार!
पायल चूड़ी कंगना खनकें,झूमे झूले से डार!!

बिरही नैना सोच रहे कब आवेंगे पिय मोर!
रात अँधेरी दामिन चमके रहि रहि देखूं द्वार!!
                     ****0****     
                                       🌷उर्मिल सिंह       








Wednesday, 26 June 2019

जिन्दगी और...... ख्वाइशें.....

जिन्दगी ख्वाइशों से ही चलती है नही तो थम जाती है।

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उम्र भर सफ़र में ही रही जिन्दगी.....
रास्ते खत्म होतें हैं कहाँ....
ख्वाइशों का कारवां रुकता नही
मंजिल पाएं कैसे... कहाँ....
पर ख्वाइशें हैं जिद्दी !!
खत्म होने का नाम नही लेती
थम जाय तो जिन्दगी.......
पूर्ण विराम पाजाती.....!!
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         🌷उर्मिला सिंह

Tuesday, 25 June 2019

ख़ुदा जाने.....

आज न श्रद्धा रही न चरित्र रहा और न ज्ञान कहने का अर्थ यह नही कि लोग अज्ञानी हैं परन्तु आज ज्ञान रहने के उपरांत भी चरित्र की कमी के कारण ज्ञान अज्ञान में बदल जाता है। इसी को इंगित करती रचना .....
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कब्र में पावँ हैं जिनके,हसरतें मचल रही है
अंजाम क्या होगा उनका ख़ुदा जाने ।

हर तार दिल का जख्मी है यहाँ ,वीणा वादनी
ताल सुर में गीत कैसे निकले,ख़ुदा जाने।

हर रोज सूरज निकलता कोरे पन्नों के संग है
नफ़रतों के दौर में मोहब्बत कैसे लिखे ख़ुदा जाने।

ढलती शाम में,आफताब मायूस होने लगा
बहाये चाँदनी आंसू ,शब गुलजार कैसे होखुदा जाने।

चरित्र नाव, ज्ञान पतवार,भवसागर पार करने की
भूल बैठा इसी को इंसान सागर पर कैसे हो खुदा जाने।
                       *****0*****

              🌷उर्मिला सिंह

प्रिय तुम जो आजाओ.......

नारी प्रेम समर्पण की प्रतिमूर्ति होती है उन भावों को छलकाती मेरी रचना........
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कंचन कलश सजाऊँ
आँगन ड्योढ़ी अल्पना उकेरू
भावों के प्रसून चुन
प्रीत के धागों में बाँधू
प्रिय!  तुम जो आ जाओ.......!!

रजनी गन्धा की खुशबू सी
महकू ,बहकूँ दीवानी सी
छलकाऊँ नेह गंग अविरल
नयनन आंजू प्रीत का काजल
प्रिय!  तुम जो आ जाओ.......!!

करेगी पायल मेरी झनकार
लहराये गी चूनर बारम्बार
खनकेगाा हाथ का कंगन
जलेगा मंगल दीप आँगन
प्रिय!  तुम जो आ जाओ........!!

ये बन्धन युगों - युगों का
प्रेम साश्वत जीवन का
साँसों में  घुल  मिल  जायेगा
विकल प्राण नव गान सुनायेगा
प्रिय!  तुम जो आ जाओ......!!
     
         ****0****

                       🌷उर्मिला सिंह





Monday, 24 June 2019

आज से अच्छा कुछ नही....

आज में जीती हूँ.....

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बीते पलों की निशानी हूँ
आने वाले पलों की दीवानी
कौन जान पाया वक्त की चाल
         इसलिये
जीती हूँ जिन पलों में
संजो के उन्ही पलों को
बेशकीमती लड़ियाँ बनाती हूँ!!

    🌷उर्मिला सिंह

पानी और वृक्ष के साथ मानव का भविष्य

कटते हुए हरे वृक्ष और पानी की व्यथा......
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भावों के कलम से पीर नीर की लिखती हूँ
तपता सूरज तप्त धरा की पीर लिखती हूँ!
काट रहे उन वृक्षों को तुम ,जो छाया देते  हैं,
घिर घिर आते काले बादल लौट के जातें हैं!

पशू पक्षी मानव प्रदूषण से बेजार हो रहे।
प्राणवायु जो देता उसी वृक्ष को काट रहे।
नादान मानव ,खुद पांव कुल्हाड़ी मार रहे।
कितने जीव जन्तु ,परिंदों का बसेरा उजाड़ रहे।।

ताल तलैया सूख रहे पनघट आहें भरता है।
पपीहा ,कोयल कैसे बोलें मानसून रोता है।
टिकट लगेगा पानी पर ,होगा दबंगो का कब्जा,
त्राहि त्राहि मच जाएगी सोच के मन रोता है

धरती का श्रृंगार हैं वृक्ष अब तो रहम करो।
पानी का संचय कर,कर्तब्य का निर्वहन करो।।

                🌷उर्मिला सिंह

कतरा कतरा अश्क ढुरे रातों की तन्हाई में

रातों की तन्हाई......

कतरा कतरा अश्क ढुरे ,रातों की तन्हाई में!
चाँद भी छुप छुप आये जीवन की तरुणाई में!!

इश्क निगोड़ी दस्तक देती ख्यालो की अमराई में,
अहसासों पर पहरे बैठे आँगन की चारदीवारी में!!

ख़ामोशी की भाषा समझाये कैसे निर्मोही को,
मीत!खटखटाये सांकल प्रीत की बरजोरी में!!

बहती बयार ,संदिली खुशबू उसकी पहुँचा जाती,
भूली यादे छा जाती फिर मन की गहराई में !!

मन दूर दूर उड़ता है ख़्वाबों की ऊँचाई  में ,
धरती दिखती नही सपनों की कहानी में!!
                  ****0****
                               🌷उर्मिला सिंह




Sunday, 23 June 2019

जीवन क्षणभंगुर है फिर भी मोह माया के बंधन में पड़ कर अनन्त को भूल जातें हैं ।

मोह माया के बंधन से किसी विधि छुटकारा होय......

प्रीतम भेज दियो बाबुल देश ! 

ज्ञान गठरिया सिर पर रख दीन्ही,
बहु  विधि  समझायो   मोहि ...
नगरी अँधेरी न दिया ना बाती ,
समझ न आवे दिन  अरु राती ।

नव दस मास आवन में लाग्यो ,
दारुण   दुसह   दुख      होय. ।
अखियाँ  खोलत  इत  उत देखूं  ,
  भायो बाबुल  आँगन  मोह ...!

  पाय  प्रलोभन सुधि मोरि  बिसरी ,
  धरम - करम   सब  भूल  गई ।
  भूली ज्ञान  की   गठरी अरु--
  भूल गई प्रियतम का देश......!!

   मोह  माया में  फसी  चिरैया,
, बिसर   गयो   पिया  का  देश।
   आयो जब मोहे पी का बुलावा....,
   बाबुल  का  घर हुवा  विदेश...।।

  
   साज  समाज पिया ले आयो
   देखत जियरा धक धक भयो
   छुटल  गांव नगर,महल अटारी
   रोवत भाई बन्धु महतारी.....!!
  
   चार कहार मिल पालकी उठायो
   त्राहि  त्राहि  मैं नाथ पुकारों...
   बहियाँ पकड़ मोहें पार लगावो
   तुम बिन अब कौन सहाई होय...!!

  
                               🌷उर्मिला सिंह
  
   
    
                                       

जल ही जीवन है जल ही है प्राण जितनी जल्दी जान सको तो जान

वृक्ष ....जल...बिन मानव नही......

भावों के कलम से पीर नीर की लिखती हूँ
तपता सूरज तप्त धरा की पीर लिखती हूँ!
काट रहे उन वृक्षों को तुम ,जो छाया देते  हैं,
घिर घिर आते काले बादल लौट के जातें हैं!

पशू पक्षी मानव प्रदूषण से बेजार हो रहे।
प्राणवायु जो देता उसी वृक्ष को काट रहे।
नादान मानव ,खुद पांव कुल्हाड़ी मार रहे।
कितने जीवों,परिंदों का बसेरा तुम उजाड़ रहे।।

ताल तलैया सूख रहे पनघट आहें भरता है।
पपीहा ,कोयल कैसे बोलें मानसून रोता है।
टिकट लगेगा पानी पर ,होगा दबंगो का कब्जा,
जल प्रदुषण रहित करना मानव धर्म होता है

धरती का श्रृंगार हैं वृक्ष अब तो रहम करो।
पानी का संचय कर,कर्तब्य का निर्वहन करो।।

                🌷उर्मिला सिंह

उजाला जीवन में तभी आएगा जब इंसानियत का उजाला दिल में जल जाएगा!

उजाला....

कुछ खोकर ,कुछ पाकर देख
गैरों की अपना बना कर देख
तेरा दिल भी खिल जाएगा
किसी पावं के कांटे निकाल कर देख
अंधेरो को मत कोस,हाथ न कुछ आएगा
मन का दिया जला कर देख
एक नया उजाला तुझको दिख जाएगा!!

              
               🌷उर्मिला सिंह

Sunday, 16 June 2019

इश्क.....

इशारों इशारों में किया इजहारे -इश्क आँखो ने,
नादान समझ पाया न जजबातेँ दिल इशारों में!
समझते  बूझतें  अनजान बन बैठा ही जालिम,
इश्क हारा नही छलकाया जाम आँखो सेे इशारों में!
                    ****0****
                                   🌷उर्मिला सिंह

तन्हा.....तन्हा.....

साथ है  जहाँ , पर चल रहा  दिल  तन्हा तन्हा,
जख्मों का कारवाँ चल रहा दिल तन्हा तन्हा!

जो फ़रेब खाये हमने गिला उसका क्या करें
थी इनायत अपनो की संभाला दिल तन्हा तन्हा

चाँद तन्हा,आसमाँ  तन्हा सूरज  भी है तन्हा तन्हा,
दिल मिला कहाँ किसी का,सारा जहाँ  तन्हा तन्हा!

आवारा बादलों सा धुमड़ता रहा ख्याल अपना,
सपने भी कहाँ अपने,छोड़ जायेंगे हमें तन्हा तन्हा!

दूर  बहुत  है मन्जिल, धुंधले हुवेे मंजर सारे,
चिरागों की लौ थरथरा रही तन्हा तन्हा!!

वादों की पालकी पर बैठा  दिल  टूटता रहा सदा
जुगनुओं का आसरा  दिल ढूढता रहा तन्हा तन्हा!
                    *****0*****
            .                              🌷ऊर्मिला सिंह
      



Saturday, 15 June 2019

पिता बच्चों के लिए धूप में छाया की तरह होता है।

पिता....शीतल छाया.......

चाँद सा शीतल  तपता सूरज है पिता
अंगुली पकड़ चलना सिखाता है पिता
संघर्षों में  दीवार बन सामने खड़ा रहता
बच्चों के वात्सल्य का बिछौना है पिता!!

शेष रह जाती हैं  स्नेह की स्मृतियां
रक्षाकवच बनता है आशीर्वाद उनका
ढूढती है नजर, हौसले से लबरेज आंखे
जिससे छलकता था प्यार का समंदर उनका!!

               🌷उर्मिला सिंह


Friday, 14 June 2019

मरती हुई इंसानियत को जागृत करना होगा,भारत में भारत की संस्कृति को फिर लाना होगा।

इन्सानित.....आखिरी सासें गिन रही...
धीरे धीरे एक आहट सुनाई दे रही....   
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हैवानियत के आगोश में इंसानियत दम तोड़ रही
आजकल धीरे धीरे एक आहट सुनाई  दे  रही
फैला है जाल ऐसा आत्मा कलुषित हो रही
सौहार्द हो रहा विलुप्त  क्रूरता जडे जमा रही

धीरे धीरे एक आहट सुनाई  दे रही....

क्रोध,ईर्ष्या,द्वेष,व्यभिचार आक्रामक हो रहे
क्षमा शील ह्रदय ,आज सूखी नदिया हो गये
बिक रहा ईमान चन्द सिक्को में यहाँ
प्रेम विहीन जीवन आज श्रीहीन बनते जा रहे

धीरे धीरे एक आहट सुनाई दे रही....

रोक लों अभी भी क्रूरता के मनहूस सायें  को
मन को छलनी कर ,लील जाएगी मानवता को
शैने-शैने मानव आदी हो गा इस कुकृत्य का
खून की नदियाँ  बहेगीं होगा नृत्य  व्यभिचार का

  धीरे धीरे एक आहट सुनाई दे रही.....

दया धर्म करुणा का नामो निशान मिट जाएगा
बहती करूणा  की  नदी आंखों में सूख जाएगी
मछेरे जाल फैलाएं गे  मछलियाँ  तड़ फड़ाएं गीं
होगा हथियारों का बोल बाला,सहमी हर कली होगी
इस विकराल दानव के मुंख में इंसानियत मरती रहेगी

धीरे धीरे एक आहट सुनाई दे रही......!!

                                                  # उर्मिल











Monday, 10 June 2019

बढ़ती मानसिक विकृतियां


बढ़ती मानसिक विकृतियां.......
       और कलम

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            तनाव मानव जीवन को प्रभावित करता है। आज का पत्येक इंसान भौतिक सुख साधनों को जुटाने के लिए कुछ भी करने को तैयार होता है। जिसके परिणाम स्वरूप इंसान मानसिक तनाव से ग्रसित हो जाता है। तनाव का मतलब ही होता है अशांति ।और ये अशांत मन ही धीरे -धीरे तनाव ग्रस्त होने लगता है।
              प्रकृति की तरफ भी यदि एक नजर  डालें तो देखें गे की यदि आकाश अशांत है तो वायुयान  उड़ान नही भर पाते हैं , अथवा ऐसी अवस्था में उड़ान भरने पर उन्हें  मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।  तूफान की अवस्था में सागर अशांत हो जाता है।धरा अशांत है तो पशु पक्षी बेहाल हो जातें हैं,उनमे खलबली पैदा हो जाती है।
कहने का तातपर्य यही है की अशांत मन  तनाव से घिर जाता है। प्रकृति भी इससे अछूती नही है । ऐसी स्थिति में शारीरिक एवम मानसिक दशाओं पर भी इसका कुप्रभाव पड़ता है तथा यहीं से विकृत मानसिकता का प्रादुर्भाव होता है।
              वास्तव में इन कुप्रभावों से  बचने की शुरुआत बचपन से ही करनी चाहिये। इसकी प्रारंभिक जिम्मेदारी सरकार की होनी चाहिये । स्कूल- कॉलेज  में अन्य विषयों के साथ "नैतिक शिक्षा" को एक विषय के रूप में पढाना चाहिए । जो बहुत पहले पढाया भी जाता था। आजकल विकास के साथ साथ मानव तनाव का भी विकास हो रहा है, या यूँ कह लीजिये की तनाव आधुनिक समाज की देन है। समाज, परिवार ,सरकार के योगदान से इसे दूर नही तो कम अवश्य किया जा सकता है।
                सर्वप्रथम अनुशासन और  दन्ड की समुचित व्यवस्था से  विकृत मानसिकता को रोकने का प्रयास किया जा सकता है । जो विष की तरह यह फैलता जा रहा है। सरकार की कार्य प्रणाली में इस विषय को प्राथमिकता  मिलना चाहिये , इस विष को समाप्त करने के लिए सरकार के साथ माँ - बाप ,परिवार और समाज को भी जागरूक होना  पड़ेगा ।पक्ष विपक्ष और धर्म इन तीनो के मध्य नैतिकता  आहे भर रही है।इन सबसे अलग सोच रखनी पड़ेगी,और समाज में परिवार में नारियों को सम्मान देना पड़ेगा।
                            
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                                                  🌷उर्मिला सिंह

Saturday, 8 June 2019

व्यथित मन व्यथित लेखनी समाज के हर वर्ग से इस रचना के माध्यम से न्याय मांगती है ऐसे दरिंदे को सजा देने में न्याय पालिका की देरी क्यों?इस प्रकार से बहन बेटियों पर आत्याचार पर मां क्यों?


व्यथित कलम की पुकार.......

इस दरिंदगी को कहो हिन्दवासियों क्या नाम दोगे
मिट चुकी इंसानियत को तुम्ही कहो क्या सजा दोगे
पर निकल भी नही पाये थे कतर दिया दरिंदें ने
ह्र्दयवेधती चीख़ों का तुम्ही बताओ क्या न्याय दोगे!!

चुप क्यों हो,देरी क्यों फैसलेमें ,मांगती ही न्याय गुड़िया
दया के चन्द शब्दों से क्या "मेरा" अर्पण तर्पण करोगे  ?
रौंद कर रूह उसकी कयामत तक नही चैन पावोगे.....
आवाजें  बुलन्द  हो , कि न्याय मांगती है गुड़िया!!
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                                              🌷उर्मिला सिंह




Thursday, 6 June 2019

दहकते शोले.....

मन के गहराते भावों से नित सघर्ष करती एक रचना.....
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मन में दहकते जब शोले है                                    भावो से टकराते जब मेले है,
चिनगारी बन शब्दों से निकल,
पन्नो पे उतरने  लग जाती है ;
तब कविता- कविता कहलाती है !

जब मन की पीड़ा  चुभने लगती है ,
जब  तन्हाई  ही  तन्हाई  होती   है ,
जब शब्दो  का  सम्बल  ले  कर के ,
मन  की  गांठे  खुलने  लगती   हैं ;
तब कविता - कविता कहलाती है !

जब भूखा - नंगा बचपन भीख मांगता है ,
चौराहो पर नारी की अस्मत लूटी जाती है,
कानून महज मजाक  बन रहजाता  है ,
आँखों से टपकते विद्रोह जब शब्द बनाते है ;
तब कविता - कविता  कहलाती  है  !

राजनीती में जब धर्म-जाति को बाटा जाता है
सिंहासन के आगे जब देश गौड़ हो जाता  है ,
युवा जहाँ ख्वाबों की लाश लिये फिरते हैं ,
उनकी आहों से जब शब्द  धार ......बनातेहै,
तब  कविता - कविता  कहलाती ......... है ।
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                     🌷उर्मिला सिंह
   
  



    

Tuesday, 4 June 2019

चाँद तारों की आज ईद है आई.......

ईद मुबारक हो सभी को
की आज ईद है आई.....
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फिज़ाओं में महक है
कि आज ईद है आई
खोल कर ह्रदय पंखुड़ियां
गले लग जाओ सभी
की आज ईद है आई!!   

चिराग़ दिल के जलाओ
झूम कर महफिलें सजाओ
गीले शिकवे भूल कर गावो
कि आज ईद है आई...

दुवाओं में असर होगा 
मोहब्बत के पैगाम भेजो 
प्रेम अंकुर उगेगा
दिलों में प्यार होगा
की आज ईद है आई

मुबारक हमें आपको "आज"
की आज ईद है आई........
        ****0****
       🌷उर्मिला सिंह
 

Sunday, 2 June 2019

कलम का दिल शब्दों में धडकता है........

कलम का दिल शब्दों में धडकता है
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कलम जो कभी थकती नही.......
     सच की स्याही में डूब कर
     तख्त ताजों से निडर होकर
     शब्द बेबाक बयां करती है
कलम अन्याय के विरुद्ध होती है!!

कलम जो कभी थकती नही.........!!

कलम सच पर पैनी नजऱ रखती है
        कलम गुणगान करती है
        कलम एहतराम करती है
        कलम रुसवा भी होती है
कलम  समाज को आईना दिखाती है!!

      कलम जो कभी थकती नही.........

  कभी वाहवाही कभी रुसवाईयाँ झेलती
         कलम कभी झुकती नही
         कलम कभी रुकती नही
         कलम तेवर बिंदास रखती है
कलम बेपरवाह  निरन्तर गति शील रहती है  !!

कलम जो कभी थकती नही.........!

कलम न्याय करती ,जुल्म का विरुद्ध लड़ती है
         होती देश द्रोहियों की  है दुश्मन
         तो करती देश भक्तों को है नमन
         कलम सच्चाई की बुलन्द आवाज करती है
  कलम राष्ट्र  प्रेमियों की जय जय कर करती है!!

          कलम जो कभी थकती नही......
          कलम जो कभी रुकती नही..........!!
         

                          🌷उर्मिला सिंह