Sunday, 28 July 2019

स्वर्णिम जीवन का गुर अब जाना हमने.......

स्वर्णिम जीवन क्या होता है...
अब जाना मैने !
स्वयम को - स्वयम से मिलने का सुख ...
अब जाना मैंने !

वक्त दिया उम्र ने खुद को ......
तराशने का....
क्या खोया क्या पाया......
अब जाना मैंने!

बढ़ती उम्र का रोना अब तो....
भूल गये हम ;
जीवन की कडुवाहट ,अपमानों का बोझ
हवन हुवे सब.......
चिन्ताओं से परे होता है कैसा सुख........
अब जाना मैने !

आंखों की रोशनी का गम- ......
करना क्या अब
लेंस ट्रांस प्लांट से सब दिखता है !
दाँत नही तो क्या गम .....
नये दाँत से खाने का स्वाद ;   
लोगों से जाना मैने !

सखियों के संग सैर सपाटे
पानी पूरी और कचौरी खाते
कुछ मीठी बातें कुछ नोक-झोंक...
बीते जीवन  की प्यारी यादें ;
राग- रंग की महफिल ...
बढ़ती उम्र की मस्ती का
सुरूर क्या होता....
अब जाना मैने !

नाती-पोतों से ढेर सी बातें .....
जीवन के कुछ अनुभव बांटे ;
बेटी बेटे बहुओं के संग मिल बैठ के .....
जीवन का आनन्द क्या होता है
बढ़ती उम्र ने सिखलाया
‎ इस सुख को अब जाना मैंने!

मित्र मंडली इस उम्र की संजीवनी है....
कहकहों और चुटकुलों का दौर....
कभी न समाप्त होने वाली बातें.....
इन्हीं बातों में मशगूल होकर.....
जीवन का स्वर्णिम पल ‎कैसा होता है,
ढलती शाम का आनन्द
अब जाना हमने...!!

अपेक्षाओं ,नफ़रत को भूले...
हँस हँस रिश्ता निभाया हमने
जीवन की बची खुची साँसें....
प्रभु चरणों मेँ अर्पित करना
जीवन में सुकून दे जाता है!
  

धीरे - धीरे बुलावा आयेगा.....
उससे डर-डर के भी जीना क्या ;
पञ्च तत्व की बनी ये काया.....
एक दिन मिट्टी में मिल जाना है!             ...
जीवन का सत्य यही है...
अब जाना मैने.......।
  ‎

                             # उर्मिल

उम्र की राह पर चलते -चलते थके कदम.....

चलते चलते.....
**************

चलते चलते थक रहे ..... मेरे पाँव को विश्राम  दे,
बयाबान मे दिखता नही , आँखों को प्रकाश दे!!
जिन्दगी की दहलीज पे पुकारती हर साँस है
चाहे जो तूँ , मेरी  मुश्किलों  से , मुझे  उबार  दे!!

मेरी -आस है विश्वास है  मेरी धड़कनो का तार है,
मेरी प्रीत का गीत है मेरे स्वरों  में  तूँ  ही तान है!!
अपने हाथों  में मेरा हाथ ले ...... मुझे बेखबर कर,
दुनियाँ की भीड़ में खो न जाऊँ .....  मुझे पहचान दे !!

अदृश्य है,  आसपास है, मुझे अनछुआ एहसास दे,
मेरे स्वप्न तेरे स्वप्न हो , सपनों  को आसमाँन दे,
तेरीे प्रीत में रँगी रहूँ .…..मुझमें ऐसा रंग भर!
मेरी मायूसियों को  .....खुशियों का आकार दे!!

मेरे शब्द शब्द गमक उठे....मेरी लेखनी को वरदान दे!!
अन्तर्गन का चक्षु खुल जाय .....बस यही इक चाह दे
,मन के मन्दिर में बसाऊँ ......  निहारा करूँ तुझे रात दिन
पुकार मेरी तुझ तक पहुँच सके...मेरी आवाज में वो दर्द दे!!

चलते -चलते थक रहे ...मेरे पांव को विश्राम दे.....

                         🌷उर्मिला सिंह

                                                 

Saturday, 20 July 2019

बारिष .....बूंदे.....और भींगता अहसास.....

बारिष..... बूंदे.....
*************

बूँदें बरसती हुई छूने को दौडती
कानों में .....कुछ कहती भिगोती
तुम्हारे यादों को अहसास में डुबो के
ख्यालों को हरी चुनर ओढाती

बूंदे.......

आह ....जब छुआ बूंदों ने,
एक अहसास हुआ तन को,
शायद तुम्हारे पास होने का अहसास,
लेकिन जब देखा तो तुम नही थे पास
बूंदे.....

गूंजित हुई कडकडाती बिजली,
चमकदार प्रकाश पंहुचा हर ओर
अचानक व्याप्त शांति में ,हुआ कुछ शोर
कौंधती किरणों ने ,आखों में सपना जगाया
आँखें बंद होते ही फिर ख्याल तेरा आया

बूंदे ....

ठंडी हवा का एक झोका सरसराया
रोम रोम जागृत हुवा बारिष ने मन को सहलाया
इस ठण्ड में मन ने कहीं उसकी छूअन का
गरम अहसास दिलाया ,आंखे खुलीं
पर अफ़सोस...यह सब कुछ नहीं..
बस थी अगर कुछ तो थी एक माया....केवल माया...

                  🌷उर्मिला सिंह
                                

Friday, 19 July 2019

अहसास जो जिन्दगी का अभिन्न अंग होता है, भुलाए से भी नही भूलता जो सासों के संग होता है.....

अहसा.......

दिल के तहखाने में छुपे हुवे कुछ एहसास.....
हर्फ...हर्फ...उसके,कागज पर उतार दिया
पर न जाने कब अश्कों का.....
समन्दर छलकने लगा.....
हर्फ़ गीले हो मिटने लगे.....
खामोशी.....जख़्मी होती रही
एहसास हिचकियाँ भर मरता रहा....

             🌷उर्मिला सिंह

Wednesday, 17 July 2019

चलो कुछ दिन जीने के लिये गांव की ओर चलतें हैं।

गांव की ओर.......

मन ने कहा....
चलो कुछ दिन जीने के लिये
गाँव की ओर चलते हैं
जंहा आज भी नीम के  नीचे
एक खटिया पड़ी होगी
जहाँ सूरज भोर में
झांकता होगा उन
शाखों के मध्य से
जहां किरणे पत्तियों की चलनी से
छन छन कर पड़ेगी तन मन पर
मीठी मीठी भोर
मीठी गुड़ की चाय
चलो कुछ दिन जीने के लिए
गांव की ओर चलतें हैं।

शाम होते ही
बदल जाता है माहौल
थके निढाल से बापू
जहां आकर खटिया पर से
गुड़ और एक लोटे पानी की
चाहत रखते थे
जहाँ सूरज के लुप्त होते ही
चाँद झांकने लगता है
आज भी सभी कुछ वैसा ही होगा
कुछ बदला होगा तो सड़कें
पनघट की जगह
हैंडपुम्प ने ले लिया होगा
पगडंडिया देती नही होंगी दिखाई
वही राम राम भैया कहना
सभी कुछ वैसा ही होगा
चलो कुछ दिन जीने के लिये
गांव की ओर चलते हैं।

हर रिस्ते जी भर के जीतें हैं
वहां रिस्तो में जीवन होता है
वहां मिट्टी में कर्म की खुशबू
आशा विश्वास आस्था का---
अद्भुत संयोग होता है
जहां प्राचीन संस्कृति की
आज भी झलक मिलती है
चलो कुछ दिन जीने के लिये
गांव की ओर चलते हैं।।

*****0*****
          🌷उर्मिला सिंह



Tuesday, 16 July 2019

जिन्दगी का कोई भरोसा नही.....प्रेम की मय पीते पिलाते रहें प्यार का आशियाना जगमगाते रहें

तै कुछ नही जिन्दगी
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तैय कुछ नही जिंदगी प्यार की बाते करें ,
नजारों  बहारों  फूलों   की   बातें  करें !
आंखों  में  सपने  सुहाने  लिये चल पड़ें
मुक्कमल सफर लौटने की न बातें करें !

उमंग से भरे उम्र की सीढ़ियां  चढ़ते रहें !
बाहों  में आकाश ,चाहत  यही करते रहे !
इधर की ,उधर की बाते न कर मितवा मेरे,
प्रीत  के  गीत  साँस की  ताल पे सुनते रहे ,

पलों के फूल  वक्त की शाख पर रखते रहें ,
हम  गुजरे  जिधर से राहें  मुस्कुराने  लगे !
प्यार की मय ऐसी  पीलादे हमे  साथिया ,
झूम कर चले  सुरूर उसका न उतरे कभी  !

आज  जी भर जियें वक्त भी रश्क करता रहे ,
  रातरानी सा प्यार दिल में महकता रहे
भूल जायें दुनियाँ के रंजो गम पल दो पल
ओस में घुली.. प्रेम की डली...आंखों से...पीते रहें !

तैय कुछ नही जिन्दगी प्यार की बातें करें
नजरों  बहारों  फूलों  की  बातें  करें ......

                                                    #उर्मिल
 

Monday, 15 July 2019

गुरु की महत्ता.....

गुरु की महत्ता....
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गुरु शब्द बहुत महत्वपूर्ण होता है 'गु ' का अर्थ होता है- अंधकार... चाहे अज्ञान का हो चाहे अभिमान का हो !और 'रु' का अर्थ होता है - दूर करने वाला...!
जिसे हम इस प्रकार समझ सकतें हैं----
गु+रु=गुरु  ...यानी अंधकार को दूर करने वाला।
            प्राचीन काल से गुरु का महत्व रहा है श्री राम ने ऋषि वशिष्ठ एवम विश्वामित्र को गुरु बनाया था । हनुमान जी ने सूर्य देव को गुरु बनाया था तथा श्री कृष्ण जी ने  सांदीपनि को गुरु बनाया था।
           कहने का तातपर्य वैदिक काल से गुरु शिष्य की परम्परा चली आरही है।आज भी इन्सान गुरु की खोज में दरबदर भटकता है...!
              कहा गया है----
     बिन गुरु ज्ञान कहाँ से पाऊँ
     दीजो ज्ञान हरि गुन गाउँ।।                       

              गुरु जीवन में कई रूप में मिलतें हैं । बच्चा जन्म लेते ही माँ के रूप में,जीविका प्राप्त करने के लिये शिक्षक के पास विद्यार्थी रूप में  कुछ पाने के लिये जाता है ...। परन्तु शिष्य स्वयम को प्रभु चरणों में समर्पित करने की कला सीखने सद्गुरु के पास जाता है।
              सद्गुरु मन को संसार से विलग नही वरन शिष्य को संसार में रहकर हर कार्य प्रभु चरण में समर्पित करने का उसे सन्देश देता है , समाज सेवा का कार्य करने की प्रेरणा और ज्ञान देता है। सद्गुरु सूरज की तरह होता है, जिसके सदवचनो से अन्तस् का दिया जल जाता है...।
उसका एक- एक शब्द ह्रदय रूपी वीणा पर पड़ते ही उर का तार सद्भावों से झंकृत हो उठता है , तमस दूर हो जाता है ...।
              ऐसा, गुरु,सद्गुरु के वचनों का प्रभाव होता हैं।

               गुरु की महत्ता का कबीर जी ने इस प्रकार दर्शाया है:-

गुरु  गोविंद  दोनों  खड़े, काके  लागूं  पाय ।
बलिहारी गुरु आपकीे, गोविंद दियो बताय।।
          
                    ****0*****

सीधे  देख  न  पाई प्रभु को, गुरु मेरा दर्पण बन गया।
बलिहारी सद्गुरु को असम्भव को सम्भव कर दिया।।
                    
                    ****0*****  
                  
                                              🌷उर्मिला सिंह                                        
                          

सखी री .....मेघा... आये द्वार

सखी री.....मेघा आये द्वार....
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सखी री ..... मेघा आये द्वार...!
मदमाती गाती शीतल बहत बयार!!
सखी री....मेघा आये द्वार...!!

ढोल बजावत बदराआये!
टिप..टिप बूँदन के सुर साजे!
तृषित धरा लेत अँगड़ाई!
श्रावण करत श्रृंगार.....!!
सखी री....मेघा आये द्वार...!!

रात अँधेरी दामिनी चमके!
दादुर मुखर भये चहुँ ओरे!!
डार पात छुपि कोयल बोले!
ठमक ठमक नाचत बन मोर!!
सखी री ...मेघा आये द्वार....!!

हर्षित ताल तलैया....!
प्रकृति रही मुस्काय...!!
बाँकी चितवन नदिया झूमत!
नाविक छेड़े ...तान मल्हार....!!
सखी री....मेघा आये द्वार....!!

              #उर्मिल

Sunday, 14 July 2019

शब्दों की अपनी गरिमा होती है ,ये दोस्त है तो दुश्मन भी प्यार है तो नफरत भी अतएव शब्दों को सोच समझ कर खर्च करें यही आपकी वास्तविक संपदा है

शब्द.....
*******

जीवन
    *****
शब्द कम हो पर ,
अर्थ असीमित !
दान कम हो पर ,
करूणा असीमित!!
जीवन कम हो पर,
अच्छाई असीमित!
है सार यही जीवन  का !
      क्यों कि---
जीवन ....है सीमित
असीमित ....नही !!
     ***0***
        #उर्मिल

Friday, 12 July 2019

सावनी फुहार.....

सावनी फुहार.....
**********

सावन की फुहार ...
मनवा लुभाय रही..
कोइलिया कूके,मैना चहके,
कलियां चटक शरमाई रही...
सावन की फुहार...
मनवाँ उमंग जगाय रही।।

सुधियों की कस्तूरी...
घूंघट उड़ाय रही...
छनक छनक छनके,
पैजनिया सखी री...
पेड़ों के डाल पर..
कजरी के गीत..
दूर कहीं बंसी ,
विरह गीत गाय रही।।

छलके स्वर सतरंगी..
नाचे बनवा मयूरी..
झूमे सपने सतरंगी ..
इंद्रधनुष अम्बर छाय रही,
  कजरारी बरसात  में
  गुजरिया इतराये रही।।
  
गरज रहे बदरा ...
दामिन डराय रही,
महक रहे पात - पात..
बहक रहे बाग- बाग..
सांस-सांस अकुलाय रही,
देखि के  घटा कजरारी..
प्रीतम की याद..
मनवा में हूक उठाय रही..
दूर कहीं बंसी विरह गीत गाय रही..
सावन की फुहार....
मनवा उमंग जगाय रही।।

      🌷उर्मिला सिंह






                               
 







Monday, 8 July 2019

वो कौन है.....

वो कौन है......

कौन है जो शफ़क़ सा अंतःकरण में उजास कर रहा
वो कौन है जो अपनी तरंगों से मुझे आनन्दित कर रहा
क्यों विह्वल हो के मन मेरा पुलकित हो अश्रु बहा रहा
अखण्ड ॐ की ध्वनि इन प्राणों में प्राण वायु बन
                             झनझना रहा!!
           
                             🌷उर्मिला सिंह

Sunday, 7 July 2019

प्यासी धरती......प्यासा मन.....

झूम-झूम अब मेघा बरसे

तपती धरती की प्यास बुझे।
झूम झूम अब सावन बरसे।।
नदियों के सूखे अधरों पर,
गीतों के नव अंकुर से फूटे।।

झूम झूम अब मेघा बरसे।

घन घोर घटा के नीचे ।
तपते पर्वत शीतल होंगे ।।
सोंधी- सोंधी खुशबू  बाटेंगी धरा,
हरी दूब  पर मोती बरसे।।

झूम झूम  जब  मेघा  बरसे।

बृक्षों की शाखों पर झूले इतराये।
गोरी के स्वर दिशा-दिशा लहरायें।।
पीहर में युवती को नइहर की याद सतावे,
पेंग-पेंग पांव पायलिया  झनकारे।।

झूम झूम अब मेघा बरसे।

रीते नयन रीते ही रह जाये।
अधरों से कुछ कहा न जाये।।
जब से मेघा उतरे मोरी अटरिया
प्रिय! आवन के संदेसा आवे!!

झूम झूम अब मेघा बरसे।।

           🌷उर्मिला सिंह

अज्ञान का फैलता अंधेरा.......

अज्ञान का ...अन्धकार
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अज्ञान के अंधकार में ज्ञान रूपी टॉर्च से अंधकार को दूर कर सकतें हैं । श्रद्धा रूपी नाव से भव सागर पार कर सकतें हैं तथा चरित्र रूपी इत्र से अपना और ओरों का जीवन सुगन्ध मय बना सकतें हैं।

                   🌷उर्मिला सिंह

Saturday, 6 July 2019

नाना प्रकार के भावों से सजी एक किताब हूँ।

किताब.....
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ख्वाबों अल्फ़ाज़ों से भरी,
मसि की  धार में बहती ...
कलम की वाक्य पटुता दर्शाती,
          ...........मैं किताब हूँ।।
         
जीत हार की व्यथा  समाहित,
वीरता,त्याग,समर्पण उल्लिखित..
दुख सुख के उद्गारों से ओत प्रोत,
          ...........मैं किताब हूँ।।

प्रीत विरह की पीर घनेरी,
हास्य रुदन पन्नो पे बिखरी...
संस्कारों की कथा सुनाती,
          ..........मैं किताब हूँ।।


सागर सा अंतस्तल रखती ,
ज्ञान ज्योति,ज्ञान गंगा बहती...
वेद,पुराण,ग्रंथ सभी की अविरल धार,
          ..........मैं किताब हूँ।।

दीर्घ जीवी,जन्म- मरण से मुक्त,
कलम,पन्नो की बेमिसाल जोड़ी...
अतीत की यादों के रसकन बरसाती
          ........... मैं किताब हूँ।।

                    🌷उर्मिला सिंह

Thursday, 4 July 2019

भींगी उमीदों को सुखाऊँ कैसे.....

तेरी यादों को भुलाऊं कैसे
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भीगी उम्मीदों को सुखाऊँ कैसे तेरी यादों को
भुलाऊँ कैसे   !

बैठे रहते थे घण्टो जिन चिनारों तले
   उन लम्हों को दिल से अलग बसाऊ कैसे!

ठंढी हवाओं के झोके से बिखरती लटें
लिपटी है तेरी यादोँ के संग ,सुलझाऊँ कैसे!

तेरे हाथो की खशबू बसती है हाथो में मेरे
उन अहसासों को दूर तुझसे ले जाऊँ कैसे!

घुमा करते थें जिन वादियों में कभी -
उन बेसबब यादों को पलकों में छुपाऊँ कैसे!

ढूढ़ती है नम निगाहें आज भी  तुझे
पन्नों पे उभरते अक्सो को  मिटाऊं कैसे

मेरी आँखों के काजल पर पढ़ते थे क़सीदे
बता उन आँखों में अब काजल रचाऊं कैसे!

रजनीगन्धा के फ़ूलो को दिया था जो तुमने
उन पंखुड़ियों को बिखरने से बचाउ कैसे!

मिल के देखे थे जो हजारो ख्वाब हमने
उन  ख्वाबों को हकीकत बनाऊँ  कैसे !

          🌷उर्मिला सिंह

 
      

Wednesday, 3 July 2019

वो दर्द जो समझ नही पाता कोई बस चतुर्दिक दिशाएं उस पीड़ा की गवाह होती हैं.....

आंखों की घायल खामोसी दर्द उड़ेला  करती....
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अजनबी  लोगों को देख के घबराई हुई आंखे

तन को बेधती देख ,सहमी डरी हुई सी आंखे

बर्फ सा ठंढ़ा  बदन दर्द से कराहती हुई सी आंखें

जिन्दगी को बेनूर बनते देखती हुई सी आंखे!!

                🌷उर्मिला सिंह


Tuesday, 2 July 2019

आप जब अवसादों में घिरे होतें हैं,संघर्षों से जूझते रहतें हैं तो ऐसा प्रतीत होता है मानो कोई कह रहा हो मैं "हूँ" परन्तु उस आवाज से हम अनभिज्ञ रहतें हैं तभी मन के किसी कोने से प्रश्न उठता है" तुम कौन हो "

तुम कौन हो.......?
न ख्वाब हो ....
न हकीकत हो......
न शब्द हो...
नअर्थ हो.....
फिर भी लगता है.......तुम हो....।

राह में  चलते -चलते.....
एहसासों में हो......
तन्हाइयों में अदृश्य हो......
हवाओं में हो ......
फिजाओं में हो.....
आस में हो....
विश्वास में हो....

तुम कौन हो......?

फूलों में हो.....
मन्दिर की घण्टियों में हो...
सारी कायनात में मौजूद हो.....
है अदृश्य देव तुम कौन हो...?
कौन हो....?
कौन हो.....?
कौन हो.....?

             🌷उर्मिला सिंह
            
मेरी पुस्तक "बिखरी पंखुड़िया"से है।
     

Monday, 1 July 2019

चाय का स्पेशल नुस्का......

नमन.....

स्पेशल चाय का नुस्का-----

सच के भगौने में विवेक का पानी रख कर उसमें श्रद्धा व विश्वास की चाय  आदर एवम उत्साह से गर्म करें, विचारों की चमच्च से संतुष्ठी की मिठास, धैर्य के प्याले में डाल कर मिलायें अधरों पर प्यार की मुस्कान बिखेरते हुवे आभार के साथ पिलाएं।
                    प्रयोग करके देखिये।

                        🌷 उर्मिला सिंह