कहकहे लगाती दुनिया के भीड़ में चल रहे सभी!
एक ठहराव आगया जिंदगी में जिन्दगी के साथ!!
दिल न जाने क्यों कभी मोम बन पिघलने लगता!
अश्क बन आँखों से होकर बहता बेबसी के साथ!!
वक्त के साथ बदलता गया इंसान और उसके तेवर!
औरत बदल न पाई बहती रही नदी सी बेकसी के साथ!!
दर्द से रिश्ता निभाना आ गया तुझसे ऐ जिन्दगी!
लबों पे गम छलकता है सलीके से हँसी के साथ!!
गुल कर दिया ख़्वाबों के चिरागों को हमने !
शब के हाथों खुद को सौप दिया खुशी के साथ!!
नम आँखो का दर्द अश्क बन ढलता नही है!
अश्कों को पीने का हुनर आगया बेबसी के साथ!!
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. उर्मिला सिंह