Wednesday, 30 September 2020

अन्धा युग अन्धा कानून

सावित्री ने यमराज से अपने पति का जीवन दान मांगा था
पर मेरी 'कविता '---कानून ,समाज,तथा समस्त पुरुष वर्ग से उनके आत्मा की दौलत मांगती है ,करुणा इन्सानित  .
संवेदनशीलता का भाव मांगती है।

अन्धा युग.....

 अन्धा युग अन्धी दुनियाँ
  विकसित भारत परअविकसित मानसिकता
  सपने आसमां छूने का ,कर्म अनैतिकता
  दुष्कर्मों से हाथ मिलाते रक्षक भक्षक होते
  मौत न्याय दिलवाता प्रशासन सोया रहता।

   पाशविक दृष्टि, शर्मशार होती सृष्टि
   दुष्कर्म की विजय नैतिकता दम तोड़ती
   रीढ़ की हड्डी टूटती नर पशु अट्टहास करता
   चीख सुन जश्न मनाता क्रूरता की इंतहा होती।

    स्वर्ग नर्क के मध्य बहती नदी है नारी
    तो जिस्म की दरिंदगी पौरष की पहचान होती है
    इन्सानियत के सड़ते गलते टुकड़े  सड़को पर घूमते
    सारे आदर्श,कायदे पर बलि का बकरा नारियां होती।

    अन्धे युग अंधे कानून  का होगा कब अन्त 
    सम्बवेदन हीन राजनीति का कब बदलेगा वक्त
    कब संविधान के कानून,अदालत से न्याय मिलेगा 
   पाशविक,महाबलियों की गुंडागर्दी का होगा कब अन्त।।

                उर्मिला सिंह
   
    
   
 

    
    
   

Sunday, 27 September 2020

मानवता ....

सुप्त हृद संवेदना के तार  तरंगित करते हैं 
पथ भूले को इंसानियत की राह दिखा कर..
लेखनी की टंकार से मानवता जगाते हैं....!

छल कपट  की  ओढ चुनरिया
 मान अभिमान का गहना
आँखों पर  दौलत का चश्मा
पांव तले  कराहती मानवता!

जीर्ण क्षीण संस्कारों का पूर्णोद्धार करते हैं
आओ देश में सुख  सौरभ  आनन्द बिछा कर..
लेखनी की टंकार से मानवता जगाते हैं...!

स्वार्थी पुतले आदम खोर हुए
तरह तरह की  खाल  बदलते 
धर्म-कर्म  से परहेज है इनको 
मौका देख  गिरगिट बन जाते!

 तप्त लहू तेरा ,दुश्मन पर वार करते हैं
 आओ कुटिल चालें नाकाम  कर ...
 लेखनी की टंकार से मानवता जगातें हैं....!

लोमड़ी सी चालाकी ,विषदन्त उगाये
लक्ष्यागृह के निर्माता बैठे ताक लगाये
नित नये षणयंत्रों का बुनते ताना बाना 
भ्रम जाल फैला,सिहासन कीै करते आशा!

इन विषैले सर्पों का फन कुचलतें हैं
आओ नई राह नई मंजिल पर चल कर ..
लेखनी की टंकार से मानवता जगातें हैं ....!

मानवता आज खतरे में पड़ी है
प्रकृति अपने तेवर दिखा रही है
शोक संतप्त माँ भारती भी...
अपने नॉनिहालों को निहार रही है!

तार तार होती मानवता  हर पल
कराहती इंसानियत का दर्द बता कर ...
लेखनी की टंकार से मानवता जगाते हैं...!

 कदम बढ़ाओ आगे आओ तरुणाई
 मां भारती की लाली क्षीण न होने पाए
 भारत के वीरों  तुम याद करो कुर्बानी
 तेरे कंधों पर टिकी माँ भारती की आशाएं!

 तेरे शौर्य को आशान्वित नयन निहारते 
 लेखनी की टंकार से मानवता जगाते हैं...!!

                             उर्मिला सिंह
  








Thursday, 24 September 2020

मन के मुंडेरे पे बैठी प्यारी मैना


भोजपूरी में लिखी रचना बेटियों पर है। बेटियां जब अनगिनित ख्वाब सजाए  ससुराल जाती हैं पर वहा
हर ख्वाब धूमिल होते नज़र आतें हैं उस समय उनकी मन की व्यथा का वर्णन इस रचना के माध्यम से आप सभी के समक्ष रख रही हूं,.....


मनवाँ के बतिया सुने प्यारी मैना

मन के मुंडेरवा पे बैठी  प्यारी मैंना
मनवाँ की बतिया सुने प्यारी मैना
दरद जिया के कोई नही जाने
मितवा बनी है मेरी प्यारी मैना।

अंखिया से झर- झर गिरे मोर अंसुवा
निरखि निरखि पोछे मोरि प्यारी मैना
ससुरा के पिजरा के कैदी मोर सपनवा
देहरी के दिया तले जरे मोर जियरा

मनवाँ के बतिया सुने प्यारी मैना।।

मइया के दुलरवा के तरसे मोरा हियरा
बिनु पखिया के घूमें एहि रे अंगनवा
आगे पीछे दिखत नही कोई हमेअपना
मइया काहे भेज देहु अपने से दुरवा

तनवा सहत सहत हार गइले मनवाँ
कब तक जडू मईया मुँहवा पर तलवा
हियरा जरे मईया दिन अरु रतिया......
खुनवां के असुंवा पी - जिये तोरी बिटीया
मनवाँ के बतिया सुने प्यारी मैना
           ****0****
















 

Monday, 21 September 2020

अन्तर्मन में भावों का सागर है ,मन नवरस का संगम है उर्मियाँ जब उद्वलित होती हैं तब गद्य या पद्य का प्रारम्भ होता है, और कविता भी भावों के अनरूप बहने लगती है।

कविता.....नवरस

  नवरस संचित होते मन में 
     भावोंं के स्फुरण होते
  सुरभित शब्द हार बनते उससे
      नव रस बिखरने लगते ।

  भाव निकलते जब उर से
   कलम सजग हो जाती
पन्ने शब्दों की अगवानी करते
  सरस् सरिल सरिता बहती।

 विविध भाव अंकुरित पन्नो  पर
      ममता की दरिया बहती
  डोरे डालते भ्रमर कलियों पर
  कभी दुश्मन पर तलवार निकलती ।

सजती  बारात  कभी  तारों  की 
   चाँद कभी आंगन मुस्काता
दिग दिगांत सुरभित हो इठलाता
    दृग से अनुराग छलकता
 शब्द  पंखुरी  पन्नों  पर झरती । 

  मन की  पीड़ा अधर तक  पहुंचती
     ह्रदय वेदना से चीख निकलती
 पन्ने  मुखर  कलम  संवाद  बनाते
      मसि मोती सम चमकती
 नवरस भाव गुंजित कविता  सजती।

            उर्मिला सिंह
   
   
  
  
     
 

Sunday, 13 September 2020

हिंदी की महत्ता

भारत माँ का मुकुट हिमालय है 
तो हिंदी मस्तक की बिंदी ।
पहचान हमारी अस्मिता हमारी 
मान हमारा है हिंदी ।

हिन्दी भाषा के विकास का इतिहास भारत में आज का नहीं सदियों पुराना है । भारत की राज भाषा हिंदी,विश्व की भाषाओं में अपना एक महत्वपूर्ण  स्थान रखती है।
हिन्दी भाषा को जानने के लिए यह जानना परम आवश्यक है कि हिन्दी शब्द का उद्गम कैसे हुआ ।
हिंदी शब्द संस्कृत के सिन्धु शब्द से उत्पन्न हुआ है।
और सिंधु , सिंध नदी के लिए कहा गया है।
यही सिंध शब्द ईरानी भाषा मे पहले हिंदू, फिर हिंदी और बाद में हिन्द के नाम से प्रचलित हुआ और इस प्रकार हिंदी का नामकरण हुआ ।
हिंदी का उद्भव संस्कृत से हुआ जो सदियों पुरानी और अत्यंत समृद्ध भाषा है। और इसी संस्कृत भाषा से हमारे वेद ,पुराण,मन्त्र आदी प्राचीन काव्य और महाकाव्य लिखे गए हैं।
हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है जिसे विश्व मे सबसे अधिक वैज्ञानिक माना गया है ।
हिंदी साहित्य का क्षेत्र बहुत ही परिष्कृत और विस्तृत है।
साथ साथ  हिंदी व्यवहारिक भाषा है। बच्चा जन्म लेने के
पश्चात सर्व प्रथम माँ शब्द का ही उच्चारण करता है ।
हिंदी भाषा में प्रत्येक रिश्तों/सम्बन्धों के लिए अलग अलग शब्द होते हैं।जबकि अन्य किसी भाषा में ऐसा नहीं मिलता।
हिंदी भाषा की 5 उप भाषाएँ हैं तथा कई प्रकार की बोलियाँ प्रचलित हैं। आज कल इंटरनेट पर भी हिंदी भाषा का बाहुल्य है। हिन्दी ऐसी भाषा है जो हमें सभी से जोड़ने का
प्रयत्न करती है । हिंदुस्तान के हर प्रदेश में हिंदी भाषा बोली जाती है भले ही टूटी फूटी क्यों न हो ।
विश्व में सबसे ज्यादा बोलने वाली भाषा हिन्दी ही है।
ऐसा मेरा मानना है।
युग प्रवर्तक भारतेन्दु हरीश चंद्र जी ने हिन्दी साहित्य के माध्यम से नव जागरण का शंखनाद किया।
उन्होने लिखा:
 "निज भाषा उन्नति है,
 सब उन्नति का मूल।
 बिनु निज भाषा ज्ञान के,
 मिटे न हिय का शूल ।"
 हमारे देश का दुर्भाग्य रहा है कि हिन्दी भाषा का जो स्थान होना चाहिए वो आज तक हिंदी भाषा को प्राप्त न हो सका।
 अतएव आप सभी से अनुरोध है कि जितना हो सके हिंदी भाषा के विकास हेतु कार्य करें।
 किसी भी देश की मातृ भाषा उस देश का श्रृंगार/गौरव होता है अतएव उस श्रृंगार को निरंतर सजाते संवारते रहें।
 जितना भी हो सके हमलोगों को हिंदी के विकास के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।
 हिंदी भाषा हमारी पहचान है, हमारी आन -बान- शान है।
 धन्यवाद...
 जय हिंद   .
 जय भारत...।।
                     .....   उर्मिला सिंह 

Tuesday, 8 September 2020

एक कहानी .....जिन्दगी की.... जिन्दगी , जो पतंग की तरह नीले आकाश में उड़ती है ,छूना चाहती है अम्बर को , पर डोर तो किसी और के हाथ में होती है , जितनी ढील मिलती है पतंग उसी हिसाब से उड़ती है । आज न जाने क्यों मन सोचने लगा कि सारी बंदिशें नारी के ही लिये क्यों? क्या पुरुष को अनुशासन, संस्कारों की जरूरत नही पड़ती। उनके ह्रदय की संवेदनाओं को जगाना जरूरी नही होता । इन्ही बातों के उधेड़ बुन में बैठी थी कि मेरी एक बचपन की सहेली का फोन आया " आ जाओ आज मेरे यहाँ शाम की चाय एक साथ पीतेें हैं" । विचारों को वहीं स्थगित कर के मैं अपनी सहेली के यहाँ पहुंची, वहाँ मेरी सहेली कुछ मायूस सी लगी। आगे बढ़ कर मैंने उसे गले लगाया तथा पूछा"कैसी हो आज ये खिलता चेहरा मुर्झाया सा क्यों है" । हल्की सी मुस्कान की एक पतली रेखा उसके अधरों पर खिंच गई। मुझे समझने में देर नही लगी कि कुछ तो गड़बड़ है। बात आगे बढ़ाने के लिये मैंने कहा ,"सुषमा चाय पिला यार फिर आराम से बात करतें हैं"। कुछ देर हम दोनों शांत बैठे रहे तभी चाय और गरमागरम पकोड़े भी आगये.... फिर क्या था हम दोनों चाय की चुस्कियों के साथ बातें करने लग गये । बातों का सिलसिला कुछ ऐसा चला कि समय का पता ही नही चला । तभी उसकी बेटी बाहर से आई ....! उसे देखते ही सुषमा बिफर पड़ी "इतनी देर क्यो ? नित्य तुम कुछ न कुछ बहाना बनाती हो , कभी ट्यूशन, कभी ट्रेनिंग आखिर करती क्या हो ,लड़कियों का इतना घूमना अच्छा नही होता तुम्हे दूसरे के घर जाना है इत्यादि इत्यादि.."..। मैं आवाक कभी उसे कभी उसकी लड़की को देखती रही । अन्त में मुझसे रहा नही गया मैने पूछ ही लिया " सुषमा! ...यही पश्न तुमने अपने लड़के से कभी पूछा ?शायद नही" .....उसने तपाक से उत्तर दिया "वह तो लड़का है कौन दूसरे के घर जाना है"... आश्चर्य चकित मत होइए ये घर - घर की कहानी है आज भी कितने घरों में यह सोच पल्लवित पुष्पित हो रही है। सुषमा की लड़की पर्स बैग ऐसे ही समानों का बिजनेस करती है फिर भी उसपर अंकुश और बेटा पढ़ रहा है पर स्वतंत्र । उसे मैंने समझाया और कहा की लड़की को उसकी जिन्दगी जीने दो उसके पर मत काटो उड़ान भरने दो......।सुषमा से गले मिलते हुवे मैं सोचती रही .......... नारी बंदिशों में कब तक जीती रहेगी -- कभी माँ बाप ने बन्दिशों का संस्कार नाम दे दिया-- कभी सास ससुर ने परम्पराओं एवम अनुशासन के नाम पर जंजीरों में जकड़ दिया , पतिदेव ने अपनी इक्छाओं , सपनो को समर्पित करवफ़ा का नाम दिया , बच्चे उससे भी दो कदम आगे नई एवम पुरानी सोच का अन्तर बता दिया। मैं सोच में ठगी ठगी सी नारी को महसूस करती रही। क्या विडम्बना है , .... ! जिन्दगी हमारी ,पर हमारी हर साँस पर दूसरों का कब्जा और हमने इन्ही सांसों को जिन्दगी का नाम दे दिया .......... आखिर क्यों......क्यों....... 🌷उर्मिला सिंह

चेहरे की झुर्रियां......

मुफ्त में अनुभव जिन्दगी ने दिया नही 
पत्थरों की तरह घिस घिस के सिखाया है !!

चेहरी की झुर्रियाँ कहती जिसे दुनिया
जिम्मेदारियों की तपन से तप के पाया है !!

हौसला हार माना नही ,आज भी जवाँ है
तूफानों को हरा हौसलों ने जगह पाया है

गेसुओं में चमकती चाँदनी उम्र-ए खिताब नही
अनगिनित ख़्वाबों को जला कर के चमकाया है!!

                      🌷उर्मिला सिंह






 
 
 

Sunday, 6 September 2020

गुरु की महत्ता....

गुरु की महत्ता....
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मातृ  कोख से जब  बच्चे ने जन्म लिया
माता की  शिक्षा  का तब  से प्रारम्भ हुआ
प्रथम गुरु ,माता दुग्ध पान करना जिसने....
बच्चे को अपनी स्निग्ध ममता से सिखलाया ।।


प्रथम पाठशाला सबकी घर होती 
जहां संस्कारों  की शिक्षा  मिलती
बचपन की आधार शिला सुदृढ़  हो...
इसी लिए आदर सम्मान की घोटी देती।।


दूजे शिक्षक पाठशाला में मिलते
शिक्षा दे कर जीवन सुरभित करते
सर्वागीण विकास का मंत्र फूकते जीवन में...
जीवन के अंधेरों में प्रकाश बन राह दिखाते।।

स्वयम् से स्वयम का परिचय करवाते
आत्म विश्वास की ज्योति जला कर
जग में संघर्षों से लड़ना सीखलाते
बलिदान, त्याग का पाठ पढ़ा कर
देश पर मर मिटने का भाव जगाते।।

कर्म करे जो धर्म संगत,होता वही महान
गुरु देव की शिक्षा से मिलता है यह ज्ञान
 प्रकाश पुंज गुरु को नमन सदा करते...
 जिनका संचित ज्ञान हमे नित प्रेणना देते।

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                     उर्मिला सिंह


Friday, 4 September 2020

गजल---हौसले की बात कर...

जिन्दगी  तूँ  हारने की न बात कर
अभी हौसले में दम है हौसले की बात कर।

चक्रवात उठे या तूफान डर के जीना क्या
हमें संघर्षों की आदत है संघर्षों की बात कर।

तिमिर आक्छादित हो भले ही गगन में
अवसान इसका भी होगा इंतज़ार की बात कर।

नाउम्मिदियों के सैलाब में तैरते पत्ते को देखतें हैं
आज में जीना आता है खुशनुमा आज की बात कर।

काफ़िला दर्द का चेहरे पे आके गुज़र जाता है
जब्त करते है मुस्कुराहटों से,खिलखिलाने की बात कर।

अवसादों और तन्हाइयों से उकताने की न बात कर
जीवन में होरहेे प्रहार को हिम्मत से झेलने की बात कर।।


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                                    उर्मिला सिंह