जिन्दगी तुम मुझे यूं ख़्वाब दिखाया न करो
तिश्नगी है बहुत उजालों की आस दिलाया न करो।।
करूं शिकवा भला कैसे शिकायत हो गई जिन्दगी
मलहम भी कांटो की नोक से लगाया न करो।
हिय की व्यथा मौन रखना लाज़मी होता है
जिसे गुलशन समझा उसे सहरा बनाया न करो।
उल्फ़ते -- सुकून कहते किसे अनजान रहा सदा
बहारों में पतझड़ को कभी मुस्कुराने दिया न करो।
वक्त के दिए जख्मों का क्या हिसाब दू जिन्दगी
तिनका तिनका सा अब यूं बिखराया न करो।
उर्मिला सिंह