Tuesday, 16 July 2024

मुजरिम,वकील जज हम्ही.....

मुजरिम वकील जज हम ही हैं
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वक्त के साथ साथ रिश्ते भी बदरंग हो जाते हैं 
उम्र के इस मोड पर जीने के मायने बदल जाते हैं।।

मन की कचहरी में मुजरिम वकील जज भी हमीं 
पर सत्य कहने का बता तूं हौसला कहा से लाऊं ।।

 किस यकीं पर उसे अपना कहूं.....
 रोशनी आंखों से छीन ली मेरी जिसने.....।

एक जलजला आया बचा न पास कुछ अब मेरे 
एक खुद्दारी ही रह गई है किस्मत से पास मेरे ।

ढूंढती हूं यकीं का वो गुलशन जो खो गया कहीं 
आस चुपके से अश्कों के कब्रगाह में सो गई कहीं।

              उर्मिला सिंह