बटिया तकत बीते दिन अरु रतिया.... घर आजा सावंरिया,
टिप टिप बरसे बुंदिया निगोड़ी अंखियन से बरसे अंसुवन क धरिया ...
घर आजा सावंरिया...... काली बदरिया....खनके है चूड़ियाँ .... देवरा करे ला ठिठोलिया,
डर मोहे लागे ,बदरा डरावे ... रतिया में चम चम,चमके बिजुरिया.....
घर आजा सांवरिया......
सोलहो शृंगार मोरे मनवा न भावे... धानी चुनर मोरा जियरा दुखावे..
.बैरन भइ सावन की बुंदिया ..... कासे कहूँ हियावा के पीरिया
.घर आजा सांवरिया....
सावन न भावे, भादो न भावे... भावे न कोई त्यौहरवा.....
सखियाँ न भावें , झूला न भावे .. .. बैरन भई मोरी पांव की पैजनिया.....
घर आजा साँवरिया.....
🌷उर्मिला सिंह
बेहतरीन..
ReplyDeleteसादर
वाह! बहुत बेहतरीन मीठी अभिव्यक्ति! बधाई और आभार!!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर दी आप तो जादूगर हो मन मोह लिया ।
ReplyDeleteअप्रतिम लेखन ।