मजबूरियों के जाल में फंसी हुई है गांवों की जिन्दगी
पश्ननों के भँवर में उलझी आज भी गाँवों कि जिन्दगी
खुशियाँ मिली जिनकी बदौलत भूल जातें है उन्हें नेता
आज भी भूखे पेट,तंगहाल में हैं गाँवों की जिंदगी !!
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🌷उर्मिला सिंह
पूर्णतया सत्य
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसत्य वचन।
ReplyDeleteधन्यवाद विश्व मोहन जी
ReplyDeleteधन्यवाद मालती जी
ReplyDeleteआभार ऋतु जी
ReplyDeleteवाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
ReplyDeleteएकदम सटीक.... समसामयिक रचना....
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