माँ की ममता को शब्दों में कैसे बाँधूँ ....
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तुम्ही बताओ माँ तुम पर कैसे लिख दूँ कविता..!!
जन्मों से एक ही शब्द मुकम्मल लगता "माँ"..
कैसे उसको शब्दों में बाँधू ,हार गया मन मेरा ..
बिन तेरे जग में मेरा आस्तित्व कहाँ होता...
तुम्ही बताओ माँ तुम पर कैसे लिख दूँ कविता...!!
माँ!मन के सूने पन की भाषा सुन लेती थी ..
जब भी मन में चींटी से कुछ विचार रेंगते..!
मन के दरवाजे खोल आटा डाल देती थी..
बाहों के घेरे में ले मुझे थपकियाँ देती थी...!
स्नेहिल हाथों का स्पर्श सदा सम्बल देता था..
तुम्ही बताओ माँ तुम पर कैसे लिख दूँ कविता..!!
माँ ! विस्मृत नही हुई आज भी वो स्मृतियां..
छील कर हाथों पर रखना मटर, मूँगफलियाँ..!
मन के छिलके उतार तूने मेरे अन्तर्मन को जगाया..
मेरी वेदना पर मुझसे ज्यादा तुझको दुख होता..
तुम्ही बताओ माँ तुम पर कैसे लिख दूँ कविता...!!
तेरी आँखो से समझी दुनियाँ और ये दुनियादारी....
परम् अनुभवी तुम थी और तुम्ही थी प्रथम गुरु मेरी.
कविता नही,चरणों पर अर्पित भावों की श्रदांजलि है
माँ तेरी गोदी का सुख जीवन में कहीं नही पाया..
तुम्ही बता शब्दों में बाँध तुझे कैसे लिख दूँ कविता!!
तुम्हीं बताओ माँ तुम पर कैसे लिख दूँ कविता....!!
🌷ऊर्मिला सिंह
वाह बेहतरीन रचना.. दी
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनुराधा
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