वृक्ष ....जल...बिन मानव नही......
भावों के कलम से पीर नीर की लिखती हूँ
तपता सूरज तप्त धरा की पीर लिखती हूँ!
काट रहे उन वृक्षों को तुम ,जो छाया देते हैं,
घिर घिर आते काले बादल लौट के जातें हैं!
पशू पक्षी मानव प्रदूषण से बेजार हो रहे।
प्राणवायु जो देता उसी वृक्ष को काट रहे।
नादान मानव ,खुद पांव कुल्हाड़ी मार रहे।
कितने जीवों,परिंदों का बसेरा तुम उजाड़ रहे।।
ताल तलैया सूख रहे पनघट आहें भरता है।
पपीहा ,कोयल कैसे बोलें मानसून रोता है।
टिकट लगेगा पानी पर ,होगा दबंगो का कब्जा,
जल प्रदुषण रहित करना मानव धर्म होता है
धरती का श्रृंगार हैं वृक्ष अब तो रहम करो।
पानी का संचय कर,कर्तब्य का निर्वहन करो।।
🌷उर्मिला सिंह
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