Monday 24 June 2019

पानी और वृक्ष के साथ मानव का भविष्य

कटते हुए हरे वृक्ष और पानी की व्यथा......
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भावों के कलम से पीर नीर की लिखती हूँ
तपता सूरज तप्त धरा की पीर लिखती हूँ!
काट रहे उन वृक्षों को तुम ,जो छाया देते  हैं,
घिर घिर आते काले बादल लौट के जातें हैं!

पशू पक्षी मानव प्रदूषण से बेजार हो रहे।
प्राणवायु जो देता उसी वृक्ष को काट रहे।
नादान मानव ,खुद पांव कुल्हाड़ी मार रहे।
कितने जीव जन्तु ,परिंदों का बसेरा उजाड़ रहे।।

ताल तलैया सूख रहे पनघट आहें भरता है।
पपीहा ,कोयल कैसे बोलें मानसून रोता है।
टिकट लगेगा पानी पर ,होगा दबंगो का कब्जा,
त्राहि त्राहि मच जाएगी सोच के मन रोता है

धरती का श्रृंगार हैं वृक्ष अब तो रहम करो।
पानी का संचय कर,कर्तब्य का निर्वहन करो।।

                🌷उर्मिला सिंह

14 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 26 जून 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. बहुत सुंदर संदेश।

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  3. वाह!!खूबसूरत संदेश देती रचना!!

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  4. हार्दिक धन्यवाद पम्मी जी मेरी रचना को शामिल करने के लिये।

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  5. आभार आपका शुभ जी।

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  6. बहुत बहुत धन्यवाद विश्वमोहन जी।

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  7. बेहतरीन रचना दी जी 👌
    विचारणीय विषय आज के वक़्त का,बहुत ही सुन्दर संदेश 👌
    प्रणाम
    सादर

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  8. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद मीना शर्मा जी ।

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  9. बहुत सुंदर रचना दी

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  10. धन्यवाद भाष्कर जी

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