स्वर्णिम जीवन क्या होता है...
अब जाना मैने !
स्वयम को - स्वयम से मिलने का सुख ...
अब जाना मैंने !
वक्त दिया उम्र ने खुद को ......
तराशने का....
क्या खोया क्या पाया......
अब जाना मैंने!
बढ़ती उम्र का रोना अब तो....
भूल गये हम ;
जीवन की कडुवाहट ,अपमानों का बोझ
हवन हुवे सब.......
चिन्ताओं से परे होता है कैसा सुख........
अब जाना मैने !
आंखों की रोशनी का गम- ......
करना क्या अब
लेंस ट्रांस प्लांट से सब दिखता है !
दाँत नही तो क्या गम .....
नये दाँत से खाने का स्वाद ;
लोगों से जाना मैने !
सखियों के संग सैर सपाटे
पानी पूरी और कचौरी खाते
कुछ मीठी बातें कुछ नोक-झोंक...
बीते जीवन की प्यारी यादें ;
राग- रंग की महफिल ...
बढ़ती उम्र की मस्ती का
सुरूर क्या होता....
अब जाना मैने !
नाती-पोतों से ढेर सी बातें .....
जीवन के कुछ अनुभव बांटे ;
बेटी बेटे बहुओं के संग मिल बैठ के .....
जीवन का आनन्द क्या होता है
बढ़ती उम्र ने सिखलाया
इस सुख को अब जाना मैंने!
मित्र मंडली इस उम्र की संजीवनी है....
कहकहों और चुटकुलों का दौर....
कभी न समाप्त होने वाली बातें.....
इन्हीं बातों में मशगूल होकर.....
जीवन का स्वर्णिम पल कैसा होता है,
ढलती शाम का आनन्द
अब जाना हमने...!!
अपेक्षाओं ,नफ़रत को भूले...
हँस हँस रिश्ता निभाया हमने
जीवन की बची खुची साँसें....
प्रभु चरणों मेँ अर्पित करना
जीवन में सुकून दे जाता है!
धीरे - धीरे बुलावा आयेगा.....
उससे डर-डर के भी जीना क्या ;
पञ्च तत्व की बनी ये काया.....
एक दिन मिट्टी में मिल जाना है! ...
जीवन का सत्य यही है...
अब जाना मैने.......।
# उर्मिल
सही कहा दी!! आपने जीवन का सत्य यही है, मन के भावों को व्यक्त करती बेहतरीन रचना
ReplyDeleteस्नेहिल धन्यवाद अनुराधा
Deleteअद्भुत,बहुत सुंदर,सराहनीय सृजन👌
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ReplyDeleteहार्दिक धन्यावाद सुबोध सिन्हा जी।
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