झूम-झूम अब मेघा बरसे
तपती धरती की प्यास बुझे।
झूम झूम अब सावन बरसे।।
नदियों के सूखे अधरों पर,
गीतों के नव अंकुर से फूटे।।
झूम झूम अब मेघा बरसे।
घन घोर घटा के नीचे ।
तपते पर्वत शीतल होंगे ।।
सोंधी- सोंधी खुशबू बाटेंगी धरा,
हरी दूब पर मोती बरसे।।
झूम झूम जब मेघा बरसे।
बृक्षों की शाखों पर झूले इतराये।
गोरी के स्वर दिशा-दिशा लहरायें।।
पीहर में युवती को नइहर की याद सतावे,
पेंग-पेंग पांव पायलिया झनकारे।।
झूम झूम अब मेघा बरसे।
रीते नयन रीते ही रह जाये।
अधरों से कुछ कहा न जाये।।
जब से मेघा उतरे मोरी अटरिया
प्रिय! आवन के संदेसा आवे!!
झूम झूम अब मेघा बरसे।।
🌷उर्मिला सिंह
No comments:
Post a Comment