Thursday 19 December 2019

बात तो चुभेगी........ 

नफरत की आग में झोंकने वाले लोग कौन हैं, देशभक्त तो हो नहीं सकते, जो देश की सम्पति जलाने पर तत्पर हो वह ढोंगी देश भक्त ही होगा! 

शिक्षा व्यर्थ है मानवता के अभाव में! यदि शिक्षा में देश भक्ति भाईचारा त्याग करुना समाजिक चेतना चारित्रिक भावना का संचार न कर सके तो वह शिक्षा व्यर्थ है!
         जो शिक्षा भीड़तंत्र में बदल कर हिंसा पर उतर जाए ऐसे शिक्षित वर्ग को बुद्धजीवी कहना गलत होगा

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जागो राणा प्रताप शिवाजी के वंशज
जागो भारत के तरुणाई
आज फिर जयचंद एकत्र हुए
माँ भारती के आखों में फिर आंसू आए
आज फिर जल रहा सत्य 
असत्य सीना ठोक खड़ा है 
छल बल की लपटों में 
राष्ट्र प्रेम फिर जल रहा है 
आज अगर सोए रह जाओगे...... 
आने वाला भविष्य तुम्हें 
कभी माफ  नहीं कर  पायेगा..... 
यह दंश सदियों तक तुम्हें रुलायेगा... 
 झूठ, नासमझी के इस चक्रव्यूह को 
नष्ट करने का बनता है दायित्व तुम्हारा!
जागो भारत के सपूतों जागो....... 
    
स्वर्णिम प्रभात की आश में........💐💐💐💐💐

          उर्मिला सिंह

Wednesday 18 December 2019

कर्म ही तेरी पहचान है

कंटकमय पथ विरासत तेरी सम्भल सम्भल कर चलना है !चलन यही दुनिया का  पत्थर में तुमको  अब ढलना है !

उर की जलती ज्वाला से  मानवता को जागृत करना 
जख्मी पाँवों से ही नवयुग का शंखनाद अब करना है !!


 हरा सके सत्य को हुवा नही पैदा कोई इस जग में !
असत्य के ठेकेदारों का ,पर्दाफास तुझे अब करना है !

वक्त से होड़ लगा पाँवों के छाले अब मत देख !
सुनने को आकुल माँ भारती अब गर्जन करना है !

दृग को अंगार बना हिम्मत को तलवार बनाना है...
दुश्मन खेमें में खलबली मचेे कुछ ऐसा अब करना है !!


तुम सा सिंह पुरुष देख भारत माँ का निहाल नयन है .
कोहरे  से आच्छादित पथ है पर कदम न पीछे करना है 

मिले हुए शूलों को ही अपना रक्षा कवच बनाना है 
कर्म रथ से भारत का उच्च भाल पुनः तुझे अब करना है !!

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                                               🌷उर्मिला सिंह
                                               








Monday 16 December 2019

विवशता मन की

      भाओं से अविभूत ये मन 
     रीति जगत की कैसे समझे!
     कोलाहल ही कोलाहल है,
     मन संघर्षों  से  कैसे  जूझे !

     जग में भीड़ बहुत है
     तन्हा-तन्हा है ये मन !
     खोया प्रीत का मधुबन,
     मिलता कब मन से मन !!
   
      हर चेहरे पर आवरण 
      रंग अहम का गहरा है
      सुने टेर कौन दिल की,
      सभी यहाँ अकेला है !!

     अनकही व्यथा ,कैदी मन
     शब्दो को बनवास मिला
     मन की पाती  का गुलाब
     बिन उजास गन्धहीन हुवा!!

     अन्तस् में तूफान मचा करता
     अनुरागी मन  क्रन्दन  करता
     आंसू के मोती रात में खनके
     पल पल गिनू व्यथा के मनके!!
    
          ****0****
                  🌷ऊर्मिला सिंह





       
       

Sunday 15 December 2019

हंगामा....

कभी सड़कों पे हंगामा कहीं नफरत की आवाजे,
तुझी से पूछती भगवन इंसानी तहज़ीब क्या है!

 
किसी के टूटते ख्वाब कोई सिसकिया ले के रोता
जो आदी है उजालों के उन्हें पता क्या, तीरगी क्या है!

दौलत,ओढ़न दौलत,बिछावन दौलत जिन्दगी जिसकी ,
वो क्या जाने भूखे पेट  सोने वालों की बेबसी क्या है!!

सीना ठोक कर जो देश भक्त होने का अभिमान करते 
वही दुश्मनों का गुणगान करते,बताओ माज़रा क्या है!!

तोहमत ही तोहमत लगाते एक दूसरे पर हमेशा
कभी आईने से पूछो तुम्हारे चेहरे की असलियत क्या है!!







Saturday 14 December 2019

प्रीत की रीत....

हम भी  कैसे दीवाने थे उनकी यादों में
कब सूरज डूबा कब शाम हुई कुछ याद नही 

 प्रीत की रीत निभाई दिल ने ऐसी
 कब दिल टूटा कब अश्क झरे कुछ याद नही!!

 मोह भ्रंम में पड़े रहे पर टूटे रिश्ते  जुड़े नहीं
अन्धी प्रतीक्षा की कब आस टूटी कुछ याद नही!!

 दीपक सा ता- उम्र जलते ही रहे ,चलते ही रहे
 कब शमा बुझी कब रात  ढली ,कुछ  याद नही!!

 
                     *****0*****
                   
               🌷उर्मिला सिंह





   

              

राग अनुराग की राहों में.....

राग अनुराग की राहों में  न जाने कितने मोड़ हैं,
गुणा भाग करके भी समझ न आया जोड़ है।

काली घटाओं के इशारे अम्बर क्या समझे,
बिन बरसे चली जाए कब इसका न कोई जोड़ है।

माना की सूरज का उजास दुनिया में बेजोड़ है,
नन्हे दीपक को न भूलिए साहिब सूरज का तोड़ है।

ढाई अक्षर प्रेम का  कह गये दीवाने सभी,
सिन्धु की गहराई भी  प्रेम गहराई के आगे गौण है।

रिस्ते दिल की आवाज से बनतें और बिगड़ते हैं,
इतना न मगरूर होइये ज़नाब आगे टूटन का मोड़ है।

सत्ता की भूख दावाग्नि सी फैली है ,अपने देश में
भूख की ज्वाला हवन हुई,मची हुइ कुर्सी की होड़ है।
                  ******0******
                    उर्मिला सिंह 



                    🌷उर्मिला सिंह

Friday 13 December 2019

अलाव जलता....

बहती सर्द हवाओं में....
बर्फ की तरह जम गया 
अपना पन...... 
यादों के अलाव सुलग रहे 
जज़्बातों का  धुआं उठ रहा 
दर्द की चिंगारियां निकल रही 
आँखों में चुभन सी हो रही 
 लगता है अश्क भी  जम गये 
 नामुराद बहते नहीं.... 

अलाव जलता......

माघ की सर्दी 
फटा कंबल 
पिछले साल की रजाई 
जगह जगह से निकलती रुई 
बच्चे कुछ घास-फूस 
कुछ पतली लड़किया लाते 
अलाव जलाते..
उसे घेर के बैठ जाते सभी
सुखी लकड़ियां जलती
बदन में जब गर्मी आती 
तो भूख  का अलाव 
जलने लगता....... 

अलाव जलता...... 

स्वेटर पहने, शोले ओढ़े 
लोग अलाव जला कर बैठे 
गजक रेवड़ी का लेते आनन्द 
चाय पकौड़ी का चलता दौर 
कहकहे चुटकुले सुनते और सुनाते 
पहरों बैठे रहते दिन भर की 
थकान मिटाते.... 

अलाव  जलता........ 

           उर्मिला सिंह 











Wednesday 11 December 2019

भूखे पेट की पीड़ा......

कहीं बदबूदार गलियों में भूखे पेट सोया करे  कोई!
पीते दूध रोजी टॉमी ,सुगन्धों से नहाया करे कोई!!

आस्था,धर्म को  कलंकित करते  है ये पाखंडी!
इनकी दुकाने बन्द करने का हौसला करे कोई!!

ज़मीर जिनका मर चुका है उनसे उम्मीद ही क्या!
गमलों  में  नफ़रतों  के  पौध न उगाया करे कोई!!

धूप उल्फ़त की खिलाओ छटेगा कुहरा एक दिन!
जो सरसब्ज  ज़मीन थी  उसे न  सहरा करें कोई!!

देश के रहनुमाओं,चेहरे से फरेब की नकाब उतारो!
गरीबों के घर भी चूल्हा जलने का तैयार मसौदा करे कोई!!

बहुत लिखे पढ़े ग़जल, इश्क मोहब्बत की हमने!
मसली जारही कलियाँ उसपर भी सोचा करे कोई!!

नव वर्ष का स्वागत करें कुछ इस तरह हम सभी!
देशभक्ति से सरोबार रचना भी लिखा करे कोई!!
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                    उर्मिला सिंह 

Friday 6 December 2019

नारी की विवशता........

हालात के परिवेश जब बदल जाते हैं
न्याय की कुर्सी डगमगाने लगती है
कहीं जनाक्रोश कहीं राजनीत के खिलाड़ी
कहीं मानवाधिकार की तर्क हीन बातें 
इसी भंवर में उलझ जाती है 
नारी की अस्मत बेचारी!! 

कैसे न्याय मिले नारी को.......? 

लोकतंत्र है यहां पुलिस पर पथराव हो पुलिस तमाशा देखे, 
वहशी दरिन्दे भागे पुलिस पर आक्रमण करें पुलिस मौन रहे, 
नारी को जलाया जाय रेप किया जाय.अपराधी को कारावास से जमानत पर छोड़ दिया जाय,तारीख. पर तारीख पड़ती रहे जिस का रेप हुआ मर जाय जला दी जाय क्या फर्क पड़ता है उस औरत,बच्ची की चीखें किसी के कानों मे सुनाई नहीं पड़ती क्योंकि लोकतंत्र है भारत में!
             . परंतु एक बात कहना चाहूँगी और पूछना भी  कि क्या अपनी बहू-बेटियों के साथ ऐसा होता तब भी उनके विचार यही रहते? क्या. उनकी चीखें उन्हें नहीं सुनाई देती?  क्या उस समय भी उनके विचार इतने संतुलित नेक और लोकतंत्रवादी होते? दिल. पर हाँथ रख कर सोचे, ये सिर्फ और सिर्फ भावनाओं का विषय नहीं....... 
            सच कहा है.... 
          "  जाके पांव न फटी बीवाई 
            वो क्या जाने पीर पराई" 

                  उर्मिला सिंह 


अहसास......

हमें भी लबों से मुस्कुराना आगया शायद!
नफ़रतों से रिस्ता निभाना आगया शायद!!

दोस्ती गुलशन हैं फूलों का जाना था हमने!
खार से भी दामन सजाना आगया शायद!!

 दिखाते आईना जो ,खुद को खुदा समझते!
 ‎हमें पत्थरों से भी टकराना आगया शायद!!

ग़जल  गीतों  में  बिखर जाता है दर्द जब !
आसुओं को भी रंग बदलना आगया शायद!

लम्हा लम्हा वक्त तन्हाइयों का बढ़ता रहा 
वक्त के सलीब पर लटकना आगया शायद!!
 
कई रंगों के मंजर आंखों में घूम जाता हैं!
एहसासों को दर्द में जीना आगया शायद!!
                                         #उर्मील
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जख्मों को...

सरेआम ज़ख्मों से कैसे पर्दा हटा दूँ!
ज़िगर है घायल आहों को कैसे सुना दूँ!!

 बारीकियां होती हैं ज़ख्मों की ऐ जाने ज़िगर!
 ‎लफ़्ज़ों से कैसे ग़जल की माला बना दूँ!!

एक हम ही नही है जख्मी बेमुरव्वत जहाँ में!
हर शख़्स लहूलुहान, कैसे सुकूते दर्द सिखा
 दूँ!!

तपती दुपहरी दर्द की जब अंतड़िया सूखने लगती!
भूख से बिलबिलाते बचपन को कैसे  दिलासा दिला दूँ!!

ईमान, उसूल,विचार,विश्वास घायल तड़प रहें हैं!
दर्द का एहसास कैसे सियासत को करा दूँ!!
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                                                  #  उर्मिल


                                       




समय की रेत पर.......

समय की रेत पर...
जाने कितने निशाँ हमने पाये ;
कुछ मिट गये .....
 कुछ को हमने मिटाये  !

ज़िन्दगी के ..किताबों से.....
यादों के फेहरिस्त में......
कुछ एहसास रख्खे ....
कुछ अल्फ़ाज़ हमनें मिटाये !

उम्र बीतती है ... पर् .....
कारवाँ  ख्वाहिशों का रुकता नहीं .....,
कुछ मिट गईं हसरते....
कुछ वक्त की रेत ने दबाए !

समय के ! गुलाम है हम सभी ......,
 इसके पहियों में ..बंधे घूमते ही रहे..!
  समय  मुठियो से फिसलता रहा.....
    हम देखते रहे....
  छल कते आशुओ  को..... 
  .रोकते रहे, बस रोकते रहे !!
  
 
                                #उर्मिल
 

                  

Thursday 5 December 2019

प्याज रानी...

इतराती फिर रहीं सब्जियों की महारानी प्याज रानी 
भाव न पूछो इनके शतक लगा रहीं प्याज महारानी 
सलाद सर पकड़ कर बैठा, रो रहे टमाटर गाजर की यारी 
सिर पकड़े हम भी बैठे स्वाद विहीन हुई सब्ज़ी सारी! 
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                          उर्मिला सिंह 


    

Tuesday 3 December 2019

आज के मसीहा

वोट तो ले लिये आज के मसीहा हम गरीबों से 
गरीबों की रोटियों का भी ज़रा ख्याल रखना 
हम ही तक़दीर लिखते हैं तुम्हारी याद रखना 
विजय पराजय में भी बदल जाती है हम गरीबों से! 
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                      उर्मिला सिंह 

 


खंड खंड में

     खंड खंड में बटी खंडित ही रही
     साँसे अपनी  पर अपनी न रहीं
     जीवनदायीनी है पर पूज्यनीय नहीं
     गृहलक्ष्मी है पर गृहस्वामिनी नहीं

धर्म ग्रन्थों में वंदनीय है कविताओं में पूज्यनीय है 
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इन्हीं प्रवंचनावो की जीती जागती तस्वीर में आखिर कब तक नारी बन्दी बनी रहेगी? कबतक शोषण होता रहेगा 
नारियों का! 

यह एक पश्न है जो सभी से है....... 

पटाखे, फूल झड़ी, धुआं से प्रदुषण फैलता है! उसके लिए
केंद्र सरकार, राज्य सरकार दूर करने के लिये प्रयत्न शील हैं अच्छी-बात है..........
                       परन्तु बच्चियों औरतों के साथ जो दरिंदगी का नग्न नृत्य हो रहा है उसके लिये सरकार, राज्य सरकारें 
मौन क्यों? ये पश्न किसी एक का नहीं समस्त नारी वर्ग का 
है! निर्भया से लेकर आजतक जो भी हुआ किसी को भी न्यायपूर्णतः नहीं मिला क्यों?
 यह पश्न यदि आपके भी सम्वेदनशील ह्रदय को द्रवित करता हो तो कृपया नारी के लिये रक्षक के रूप में सामने आयें! 

                         उर्मिला सिंह 







     

Monday 2 December 2019

मन ही मन उसे पुकारूं.....

मन ही मन में उसे पुकारूँ
रूप सलोना हृदय बसाऊँ
बिन उसके जीवन बेकार
क्यू सखि साजन?न सखि माधव!!

नित्य वही मुझे उठाये
मन में प्रकाश पुंज भर जाए
उन बिन सर्वत्र अँधेरा छाये
क्यूँ सखि साजन?न सखि भानू!!

उससा रूप न कोई दुजा
देखत मन प्रेम में भीगा
प्रेम की नगरी का है राजा
क्यूँ सखि साजन?न सखि चन्दा!!
                  # उर्मिल

बच्चों को कुछ दिन बच्चा रहने दो.....

कुछ दिन तो बच्चों में बच्चा जिन्दा रहने दो
गीली मिट्टी हैं ये अभी इन्हें  सच्चा रहने दो
कुछ दिन चिड़िया,तोता उड़ कह खुश होने दो 
हकीकत से रूबरू आहिस्ता आहिस्ता होने दो!!

                 🌷उर्मिला सिंह

Sunday 1 December 2019

सुनहरा शहर अब कहीं खो गया.....

सुनहरा शहर अब कहीं खो गया है
सिसकती रातों में शहर सो गया है
भावनायें मर चुकी आह भरता जिस्म.....
विवेक शून्य पत्थर इन्सान हो गया है!!

कायर दरिंदां पुरुष वर्ग अब होगया 
जानवर से भी बदतर इन्सान होगया 
कब तक न्याय को तरसती रहेंगी नारियां 
दरिंदगी की आग में जलती रहेंगी नारियां!! 

तुम्हें पुरुष कहने में भी शर्म सार शब्द होते 
तुम से,बाप भाई के नाम भी कलंकित होते 
लाश को भी,तुम जैसे निकृष्ट जब नहीं छोड़ते 
कैसे तुम अपनी बहन बेटियों को होगे छोड़ते!! 

हर बार यही होता है हरबार यही होगा 
जुबान पर ताला बहरा कानो वाला होगा 
संविधान की दुहाई देने वाले ख़ामोश रहेंगे बस 
व्यथित कलमकार रिसते घावों से पन्ने भरता होगा!! 

               .... उर्मिला सिंह.... 

















Shb