मन ही मन में उसे पुकारूँ
रूप सलोना हृदय बसाऊँ
बिन उसके जीवन बेकार
क्यू सखि साजन?न सखि माधव!!
नित्य वही मुझे उठाये
मन में प्रकाश पुंज भर जाए
उन बिन सर्वत्र अँधेरा छाये
क्यूँ सखि साजन?न सखि भानू!!
उससा रूप न कोई दुजा
देखत मन प्रेम में भीगा
प्रेम की नगरी का है राजा
क्यूँ सखि साजन?न सखि चन्दा!!
# उर्मिल
पम्मी जी,
ReplyDeleteहार्दिक धन्य वाद रचना को पांच लिंको का आनंद पर स्थान देने के लिये!
वाह!!!
ReplyDeleteक्या बात... बहुत सुन्दर।
हार्दिक धन्यवाद सुधा जी
Deleteवाहहहह!! दीदी बहुत खूबसूरत प्रस्तुति 👌👌
ReplyDeleteस्नेहिल धन्य वाद प्रिय अनुराधा
Deleteवाह दी बहुत सुंदर सृजन है आपका।कह मुकरियां !!पर ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्य वाद प्रिय कुसुम
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