कहकहे लगाती दुनिया के भीड़ में चल रहे सभी!
एक ठहराव आगया जिंदगी में जिन्दगी के साथ!!
दिल न जाने क्यों कभी मोम बन पिघलने लगता!
अश्क बन आँखों से होकर बहता बेबसी के साथ!!
वक्त के साथ बदलता गया इंसान और उसके तेवर!
औरत बदल न पाई बहती रही नदी सी बेकसी के साथ!!
दर्द से रिश्ता निभाना आ गया तुझसे ऐ जिन्दगी!
लबों पे गम छलकता है सलीके से हँसी के साथ!!
गुल कर दिया ख़्वाबों के चिरागों को हमने !
शब के हाथों खुद को सौप दिया खुशी के साथ!!
नम आँखो का दर्द अश्क बन ढलता नही है!
अश्कों को पीने का हुनर आगया बेबसी के साथ!!
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. उर्मिला सिंह
अश्कों को पीने का हुनर आ गया बेबेसी के साथ ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
हार्दिक धन्यवाद आपको
Deleteरविन्द्र सिंह यादव जी हार्दिक धन्य वाद हमारी रचना को शामिल करने के लिए
ReplyDeleteमान्यवर आभार आप का!
ReplyDeleteकहकहे लगाती दुनिया के भीड़ में चल रहे सभी!
ReplyDeleteएक ठहराव आगया जिंदगी में जिन्दगी के साथ!!
दिल न जाने क्यों कभी मोम बन पिघलने लगता!
अश्क बन आँखों से होकर बहता बेबसी के साथ!!..
वाह !बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीया दीदी 👌
हार्दिक धन्य वाद प्रिय अनिता जी
ReplyDeleteवक्त के साथ बदलता गया इंसान और उसके तेवर!
ReplyDeleteऔरत बदल न पाई बहती रही नदी सी बेकसी के साथ!!
दर्द से रिश्ता निभाना आ गया तुझसे ऐ जिन्दगी!
लबों पे गम छलकता है सलीके से हँसी के साथ!!
वाह!!!
क्या बात....
बहुत ही लाजवाब सृजन।
हार्दिक धन्य वाद सुधा जी
ReplyDeleteदर्द से रिश्ता निभाना आ गया तुझसे ऐ जिन्दगी!
ReplyDeleteलबों पे गम छलकता है सलीके से हँसी के साथ!!
बहुत खूब !! अत्यन्त सुन्दर और हृदयस्पर्शी सृजन ।
हार्दिक धन्यवाद मीना जी।
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