खोल दी आज खिड़कियां रश्मियों ने आवाज दी है
हो गया सबेरा परिंदों की टोलियों ने आवाज दी है
मिट पायी नही कभी जिन्दगी की ये तल्खियाँ
आज किसी की भोली मुस्कुराहटों ने आवाज दी है
हर कदम पर तिजारत से भरी जिंदगी है
न जाने किधर से आज इंसानियत ने आवाज दी है
पंखुड़ियों ने नमी पलकों की ,आगोश में समेटा है
आज हरसिंगार के फूलों ने आवाज दी है
लगाकर एतबार के पौधे ता उम्र हारते रहे
आज विश्वाशों ने एक बार फिर आवाज दी है
रिश्ते नाते सभी का पैमाना आज ज़र ही रह गया है
आज अहसासों के रिस्तो ने फिर आवाज दी है
रूह तड़पती रही घुटन होती रही कोई सुर तो मिले
आज दर्दे दिल की दवा सुर के तारों ने आवाज दी है !
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उर्मिला सिंह
रिश्ते नाते सभी का पैमाना आज ज़र ही रह गया है
ReplyDeleteआज अहसासों के रिस्तो ने फिर आवाज दी है
रूह तड़पती रही घुटन होती रही कोई सुर तो मिले
आज दर्दे दिल की दवा सुर के तारों ने आवाज दी है !
सुंदर सृजन
आभार आपका सधु चन्द्र जी।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 29 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteह्र्दयतल से आभार यशोदा जी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए।
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनिता सैनी जी आपका हमारी रचना को चर्चा मंच पर शामिल करने के लिए।
ReplyDeleteआभार मान्यवर आपका ।
ReplyDeleteसुन्दर रचना - - नमन सह।
ReplyDeleteधन्यवाद शांतनु सान्याल जी।
Deleteबहुत सुंदर सृजन दी, अहसासों से भरी रचना।
ReplyDeleteस्नेहिल धन्यवाद प्रिय कुसुम।
Deleteबेहतरीन ... काश ये आवाजें सब सुन लेते ।
ReplyDeleteआभार अमृता तन्मय जी।
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