क्या पूजा क्या अर्चन..
जब भाव नही पावन।
उस वाणी का क्या करना..
जब हर्षित न हो मन ।।
क्या रूप, क्या लावण्य..
जब ह्रदय नहीं करुणामय ।
बहती नदिया का क्या करना..
जब मन प्यासा रह जाय ।।
क्या सोना चांदी क्या महल..
जब जख्मों के न हो मलहम ।
उस जीवन का होता कोई अर्थ नहीं..
देश पे मिटने का जिसमें संकल्प नही।।
क्या होता धर्म क्या है कर्म..
जब उर में बैठा दुश्मन अहम ।
यदि ज्ञान ज्योति नहीअन्तर्मन में..
रहे तिमिर जीवन के प्रांगण में।।
क्या होगी सन्तति ,पुत्र - पुत्री..
यदि मर्म न ममता का समझे ।
गीत - ग़ज़ल रस विहीन लगे..
जब शब्द ह्रदय को छू न सके ।।
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उर्मिला सिंह
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका मान्यवर।
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