कोमल सपनो के कोई पंख न काटो
उड़ने दो इनको बन्धन में मत बांधो।।
स्वप्नों को जब आकाश मिलेगा
मन वीणा से सुर गान सजेगा
मेघों से तृप्ति ,किरणों से दीप्ति लिए
स्वप्नों की मेघमाला धरती को सजायेगा।
कोमल सपनो का आरोहण मत रोको
उड़ने दो इनको बन्धन में मत बांधो।।
स्वप्नभाव बीजों का संग्रहालय होता
लहलहाते अंकुरित भाव धरा पर जब
धरती स्वर्ग सम दिखने लग जाती तब
नव सपनों से पुष्पित पल्वित धरा होती।।
कोमल सपनो का अवरोहण न रोको
उड़ने दो इनको बन्धन में मत बांधो।।
नव प्रभात नव विहान चाहते हो नव स्वप्न पढ़ो
नव जवान नव भाव नया हिंदुस्तान चाहते हो
तो संस्कृति संस्कार नव ज्ञान से हिदुस्तान बदलो
राष्ट्र भक्ति को सींमा परिधि में मत बांधो....।।
ये ह्रदय ज्वार है जो कण-कण में बसताहै
तरुणाई में देश भक्ति का उबाल आने दो
नूतन में ढलना है गर तो बन्धन में मत बांधो
तरुणाई को बिछे आँगरों से पर चलकर साधो
इनके कोमल सपनो के कोई पंख न काटो
सपनो को साकार करो बन्धन में मत बांधो।।
उर्मिला सिंह
सुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद आलोक सिन्हा जी
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