कुछ मन की बातें--सत्य--झूठ की ....
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मैं झूठ हूँ .....
मैं कीमत मांगता नही छीनता हूँ......
अपनी चालाकी फरेबी हरकतों से...
मालामाल करता हूँ.......
मैं सरल हूँ यारों का यार झूठ हूँ......
मैं सत्य हूँ.....
दोस्त!मैं सत्य हूँ
मेरे साथ चलो .....
तुम्हे कीमत चुकानी पड़ेगी
राहों में कांटे ही काटें मिलेंगे
पर सुकून की जिन्दगी मिलेगी
मैं तुम्हारा सच्चा मित्र हूँ।।
झूठ...
सुकून से पेट भरता नही
हमारी चाहत में शामिल नही
सिर्फ रोटी का एक टुकड़ा....
हमारी चाह पूरे विश्व को.
है अपनी मुट्ठी में करना ......
सत्य....
सत्य के पुजारी के आगे
राम रहीम या हो ईसामसीह
सभी मस्तक झुकाते हैं
क्यों कि सत्य ही....
अल्ला ,ईश्वर ,ईसामसीह है
झूठ वह बदबू हो तुम
देवता भी तुमसे दूर हो जातें हैं।।
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उर्मिला सिंह
सत्य का सुंदर चित्रण और झूठ का पर्दाफाश करती सुंदर रचना ।
ReplyDeleteजिज्ञासा जी ह्रदय से आभार।
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteशुक्रिया हरीश कुमार जी।
Deleteउत्तम संवाद सत्य झूठ का
ReplyDeleteआभार कैलाश मण्डलोई जी।
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (23 -10-2021 ) को करवाचौथ सुहाग का, होता पावन पर्व (चर्चा अंक4226) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
ह्रदय से आभार आपका रविन्द्र जी हमारी रचना को। चर्चा मंच पर रखने के लिए।
Deleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार जी।
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteशुक्रिया आलोक सिन्हा जी।
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