इस रंग बिरंगी दुनिया में
क्या क्या बिसर गये हम
बिसर गये शब्द सभी
जिसको सुन बड़े हुए
बिसरे दुवार,आंगन,
और नरिया थपुवा सभी।
इस रंग विरंगी दुनिया में
क्या क्या बिसर गये हम
बिसर गये अनरसा खाझा
बिसरे पानी से भरी गगरी
बिसर गई दीवाली की दिया
जिससे खेला करते हम कभी
इस रंग बिरंगी दुनियां में
क्या क्या बिसर गये हम।
बिसर गये साझ भिनसार
बिसर गया तुलसी का चौरा
बिसरी दूधिया पटरी और पचारा
दूना तीस तियां पेंतालिश का पहाडा।।
इस रंग बिरंगी दुनिया में
क्या क्या बिसर गये हम
कबड्डी,गुल्ली डंडा स्वप्न हुवे
गुड्डा गुड़िया की शादी भूल गए
बाग बगईचा कोइलिया भूले
भुट्टा के खेत का मचान भूल गए।।
इस रंग बिरंगी दुनिया में
क्या क्या बिसर गये हम
लरिकैईयाँ की धमाचौकड़ी भूले
भूले चरखे वाली नानी
लालटेन ढिबरी भूलगये
भूलगये हम रात सुहानी..।।
इस रंग विरंगी दुनियां में
क्या क्या बिसर गये हम
कड़ाहे के गुड़ का चिंगा भूले
भूल गए कुएं का ठंढा पानी
खटिया मचिया मिट्टी का चूल्हा भूले
भूल गए संस्कारों की बातें सारी।।
इस रंग विरंगी दुनियां में
क्या क्या बिसर गये हम
भूल गए इनारे का पानी
मचिया खटिया भूले गये
करौनी गट्टा भूल गये
बिसरी चीनी की घोड़ा हाथी।।
इस रंग विरंगी दुनियां में
क्या क्या बिसर गये हम
कुछ शब्द हेराय गया
कुछ हमने हेरवाय दिया
इस रंग बिरंगी दुनिया ने
पहचान छीन सभ्य बना दिया।।
इसरंग बिरंगा दुनिया में
हम क्या से क्या होगये।
क्या बतलायें क्या क्या शब्द भूल गये
माई बाबू भौजी,नईहर शब्द भूल गये
पापा मम्मी,अंकल आंटी में रिश्ते सिमटगये
जीन्स स्कर्ट पहन जेन्टल मेन अब बनगये।।
इस रंग बिरंगी दुनियां में
हम क्या से क्या होगये।।
उर्मिला सिंह
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ४ फरवरी २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
धन्यवाद स्वेता सिंह नई हमारी रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteबहुत खूबसूरत सृजन
ReplyDeleteशुक्रिया भारती दास जी।
Deleteगांवों मोहल्लो के सुंदर, सरस ,जमीन से जुड़े जीवन को अब कौन जीना चाहता है । कुछ दिखावे कुछ जरूरत की वजह से बदलते जा रहे हैं ।
ReplyDeleteआपको मेरा सादर अभिवादन 👏👏💐💐
धन्यवाद जिज्ञासा जी।
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआभार आलोक जी
Deleteकहीं न कहीं मन में गहरे पैठ बनाई हुई है तभी न आप सब याद कर रहीं ।
ReplyDeleteपरिवर्तन शाश्वत नियम है , फिर भी आपकी रचना ने बहुत कुछ याद दिला दिया ।
धन्यवाद संगीता स्वरूप जी।
Deleteपुराने का बदलाव सहज नहीं काफी हृदय को कचोटता है।
ReplyDeleteसार्थक दर्द।
सुंदर सृजन दी।
सादर।
धन्यवाद प्रिय कुसुम
Deleteबहुत ही सुंदर रचना
ReplyDeleteसच में रंग बिरंगी दुनिया में हम कितना कुछ भूल गए और कितना कुछ खो दिए हैं वह जो कभी नहीं मिल सकता वह जो बहुत ही खूबसूरत और अद्भुत था
हार्दिक धन्यवाद मनीषा गोस्वामी जी।
Deleteहृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteमनोजकयाल जी आभार आपका।
ReplyDeleteसमय का पहिया जब चलता है तो बहुत कुछ विस्मृत होता है ... छूट जाता है पीछे ...
ReplyDeleteयादों के अलावा कुछ नहीं रहता ...
सुन्दर भावपूर्ण राचना ...
वाह!बहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteसादर