नारी मनोव्यथा
किसने है समझी
आंसू गिरवी हैं यहां
मुस्कानों का ठौर नही
अगणित घाव चिन्ह
उफ़ करने का अधिकार नही...
ऐसे जग में नारी.......
कैसे पाए सम्मान यहाँ।।
संस्कारों के बन्धन से
बंधी है काया......
अगणित ख्वाबों का ,
बोझ उठाये......
महावर लगे
कदमों से
नव ड्योढ़ी
नव आंगन
में ज्योति जलाए
सुखमय जीवन के....
सब दस्तूर निभाये ।।
पर विधिना ने गढ़ी
कुछ और कहानी
कर्तब्यओं की
संगीनों पर....
अधिकार निष्प्राण
आदर्श खण्डहर हुए...।
कभी कभी....
स्मृतियों की लुकाछिपी
नयन तरल कर जाती
निमिष मात्र भी
हृद पट से अदृश्य
नही हो पाती।।
सुधियों की उर्मि
जीवन तट को छू जाती
अधरों पर मृदुल.....
हास की भूली बिसरी
रेखा खिंच जाती।।
लोगों की कहावत
झूठी लगती
"खाली हाथ आये
खलिहाथ जाएंगे"
अंत समय मे तो
कुछ कही अनकही
व्यथा संग लिए जाएंगे।।
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उर्मिला सिंह
नारी के प्रति सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसादर अभिवादन दीदी ।
स्नेहिल आभार प्रिय जिज्ञासा।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१५-०४ -२०२२ ) को
'तुम्हें छू कर, गीतों का अंकुर फिर उगाना है'(चर्चा अंक -४४०१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हार्दिक धन्यावद अनिता जी लिंक पर हमारी रचना की प्रविष्टि जे लिए।
ReplyDeleteलोगों की कहावत
ReplyDeleteझूठी लगती
"खाली हाथ आये
खलिहाथ जाएंगे"
अंत समय मे तो
कुछ कही अनकही
व्यथा संग लिए जाएंगे
सत्य वचन, मार्मिक चित्रण,सादर नमस्कार 🙏
हार्दिक धन्यवाद एवम आभार।
Deleteबहुत ख्ाूब लिखा उर्मिला जी, कि...कभी कभी....
ReplyDeleteस्मृतियों की लुकाछिपी
नयन तरल कर जाती
निमिष मात्र भी
हृद पट से अदृश्य
नही हो पाती।।
सुधियों की उर्मि
जीवन तट को छू जाती
अधरों पर मृदुल.....
हास की भूली बिसरी
रेखा खिंच जाती।।...वाह
बहुत बहुत धन्यवाद अलखनन्दा जी।
Deleteबहुत सुन्दर सृजन
ReplyDeleteआभार एवम धन्यवाद ओंकार जी।
Deleteस्त्री विमर्श की
ReplyDeleteभावपूर्ण ओर प्रभावी कविता
शुक्रिया ज्योती जी।
Deleteहृदय स्पर्शी व्यथा-कथा की प्रभावी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अमृता जी।
Deleteमार्मिक चित्रण,👍
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