बात- बात पर रूठा न कीजिये।
झूठे वादों से तौबा किया कीजिये।।
फ़ुरसत के लम्हों में आत्ममंथन करें।
जिन्दगी आसां बना जिया कीजिये।।
जितनी हो चादर उतना ही पांव फैलाइये
ख्वाब दफ़न नही साकार किया कीजिये
चाँदनी रात या हो अमावस की रात....
हरपल के तज़ुर्बे से खुशियां मनाईये।।
शब्द बोलने से पहले सोचा तो कीजिये
किसी के दर्द का कारण न बना कीजिये
इन्सान अच्छे मिलतें हैं कहाँ इस जहां में
स्वयं को इंसान बना मिला कीजिये।।
हिलमिल बैठ के प्रेम गीत गाया कीजिये
मीठी मीठी बातों से मन बहलाया कीजिये
हर दर्द की दवा दवाखानों में ही नही ........
कभी दोस्तों की महफ़िल में भी बैठा कीजिये।।
उर्मिला सिंह
हार्दिक आभार आपका मान्यवर डॉ. रूपचंद्र शास्त्री जी ,हमारी रचना को मंच पर रखने के लिए।
ReplyDeleteसुन्दर लेखनी
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