Wednesday 4 May 2022

एक अनुरोध माँ का---बच्चों से

एक अनुरोध मां का- -बच्चों से....

आज प्रातः 'राजस्थान पत्रिका' देख रही थी तभी एक कहानी पर हमारी नज़र रुक सी गई नाम था
'ममता'पत्रिका हाथ में लिए मन कही दूर भटकने लगा ....यादों में माँ की तस्वीर घूमने लगी।
'माँ' आज हम सब के मध्य नही हैं।हम नानी , दादी बन गए उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुंच रहे हैं सुकून से जिंदगी चल रही है 
 पर मन की बात आज इस पन्ने पर लिख रही हूं
 बचपन से लेकर आज तक मां की प्रत्येक .....टोका टोकी  यादों में रची बसी है। बचपन में 'घर के बाहर देर तक खेलना ठीक नही है बेटा' ---बडी हुई छात्रावास से आने के बाद मां का लाउडस्पीकर चालू हो जाता था-' कितनी दुबली होरही है ,क्या खाना नही मिलता है वहां' वगैरह - वगैरह
 पर जब और बड़ी हुई तो कहना "बेटा थोडा थोडा हमारे काम में भी हाथ बटा दिया कर" 
 प्रत्येक बात को समझा कर कहतीं कि मुझसे होता नही है अब। माँ तो माँ होती है चाहे मेरी या दूसरे की उनकी पहचान ही ममता होती है। 'माँ 'बच्चों के  भविष्य की चिंताओं से लेकर  बच्चों की सेहत,आदते ,सभी की चिंताओं से व्यग्र रहती हैं.......ऐसी होती है मां की ममता।
       परन्तु आजकल कुछ अलग सा  व्यवहार माँ बच्चो के रिश्तों में जन्म लिया है सभी तो नही पर हाँ ज्यादातर आजकल के बच्चे अपने को बुद्धिमान तथा मां बाप को कमतर समझने में लगे हैं, बड़े होते ही अपने को ज्यादा समझदार समझने लगे हैं ,शायद उन्हें मालूम नही की जिन्दगी जीने की पढ़ाई में वे माँ से पीछे ही रहेंगे
किताबी ज्ञान और व्यवहारिक ज्ञान में अन्तर होता हैं।जो ज्ञान उन्होंने किताबों से पाया उससे कहीं ज्यादा ज्ञान उम्र ने मां को दिया है।पर नया जमाना नए लोग सभी परिभाषएँ बदल गईं हैं। 
कितनी खुशीयों परेशानियों के मध्य घिरे रहने के 
बाद भी आपको ( बच्चों) प्यार से पाला पोसा बडा कियाआप यानी(बच्चे)कहोगे की "उनका कर्तव्य था"तो आपका कर्तव्य भी उसके साथ होना चाहिए या नही या बस अधिकार ही चाहिए आपको?आत्ममंथन करियेगा जरा.......
परन्तु अन्त में  नए युग के बच्चों से एक बात अवश्य कहना चाहूंगी कि ---माता पिता अपने बच्चों के स्वर्णिम भविष्य की कामना करतें है
पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव में पड़ कर जीवन बर्बाद न करें .....अभी आप जिस चकचौन्ध के भरम में जी रहे हो यह एक मृगमरीचिका की तरह है। उसके भरम जाल को तोड़ अपने संस्कारों की तरफ़ मुड़ कर देखिए जो आपके खून में रचा बसा है,अपने भविष्य के आप स्वयम जिम्मेदार हैं, आंखे खोलिए नई दुनिया में फूंक फूंक के कदम बढाइये,जीवन बनाने के लिए  संभावनाओं का भण्डार हैं तो दूसरी तरफ दुनियाँ की रंगीनियां।

 प्रिय बच्चों यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि किसे चुनना है। छणभर की चमक दमक या स्वर्णिम भविष्य  ......
 माँ के सपनो को साकार करिये पुत्र -पुत्री कोई मायने नही रखता ,हम आपसे कुछ नही चाहते बस आपका स्वर्णिम भविष्य तथा थोड़ा सा सम्मान ।
        आपके सुनहले भविष्य की कामना लिए 
                   एक माँ
                                  उर्मिला सिंह

14 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 05 मई 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    1. हार्दिक धन्यवाद रविन्द्र सिंह यादव जी हमारी रचना मो मंच पर रखने के लिए।

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  2. बच्‍चों को अपने भविष्‍य चुनने की समझ आ गई तो समझो मां-बाप का सपना साकार हो गया, नहीं तो कई मां-बाप तो आजकल के बच्‍चों को समझाते-समझाते पगलाने लगते है, लेकिन उनके बच्‍चे भगवान बचाए

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    1. हार्दिक धन्यवाद कविता रावत जी

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(०६-०५-२०२२ ) को
    'बहते पानी सा मन !'(चर्चा अंक-४४२१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  4. नमस्ते तथा धन्यवाद अनिता जी हमारी रचना को चर्चा अंक पर रखने के लिए।

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  5. वैसे आजकल के बच्चों में वाकई ज्ञान हम लोगों से ज्यादा है | अगर इस ज्ञान के साथ नम्रता मिल जाये तो सोने पे सुहागा हो जाता है !!

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    1. सत्य कहा आपने आभार आपका।

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  6. सचेत करता अर्थपूर्ण आलेख

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    1. हार्दिक धन्यवाद ज्योति खरे जी ।

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  7. बच्चों में शिष्टता तो माँ बाप में सहिष्णुता की कमी है आजकल... पहले सी बात नहीं है अब।
    बहुत सुन्दर लेख।

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  8. बहुत सुंदर और सार्थक लेखन 👌👌

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    1. हार्दिक धन्यवाद अनुराधा जी।

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