सत्य को सब्र चाहिए जिन्दगी में भला कबतक
पत्थर बाजी बिगड़ते बोल भला सहे कब तक
कौन झुका कौन जीता कौन हारा मतलब नही थप्पड़ खाकर गाल आगे करते रहोंगे कबतक।।
जिसकी मन वाणी तीर की तरह चले हमेशा
शिवाजी की तलवार राणा प्रताप का भाला ,
बताओ हिन्द वालो रुके भला कैसे.......
सच्चाई बिन डरे भीड़ से कह दिया जो हमने
कोई बताए ज़रा कौन सा जुर्म कर दिया हमने।।
शराफ़त का चोला पहन बैठे रहोगे कबतक
होश में आये नही अगर आज भी तुम्ही कहो
आजाद भगत सिंह असफाक के बलिदान का
क्या जबाब दोगे आने वाली पीढ़ियों को कहो
पत्थरों से संवेदना भीख,मांगते रहोगे कब तक।।
कब तक...कबतक....कबतक
उर्मिला सिंह
सामयिक चिंतन। सार्थक सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा जी
Deleteबहुत सुंदर!!!!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार मान्यवर
Deleteबहुत ही सुंदर सार्थक सृजन प्रिय उर्मिला दी।
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteकर्तव्य भाव को झकझोरती रचना।
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