Thursday, 20 December 2018

जिन्दगी.... को परिभाषित कर न पाया कोई,वक्त के साथ बदलती रहती है जिंदगी।

जिन्दगी भी क्या अजीब चीज होती है ......
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जिन्दगी भी क्या अजीब  होती है!
उम्मीदों  के  गुब्बारों से खेलती है!
कभी नटखट सी खुश हो तालियां बजाती!
कभी बिखरे पन्नों सी बिखर जाती है!!

जिन्दगी भी क्या अजीब चीज होती है!

दुनियादारी  के सबक के संग संग चलती!
वक्त से कदम मिला उम्र के पड़ाव जीती!
हकीकतों की सुलगती धरती पर आंखमिचौली खेलती!
ख़ुद को क़तरा क़तरा सँवारती बढ़ती जाती!!

   जिन्दगी भी क्या अजीब चीज़ होती है!

दिल के  हर  मौसम  को  जानती  समझती!
सारी आकांक्षाओं इक्छाओं को है चेरी बनाती!!
उम्र की आखिरी दहलीज पर कदम बढाती !
सुखी टहनी सी सख्त कभी पंख सी मुलायम लगती!!

     जिन्दगी भी क्या अजीब चीज होती है!!

अल्फाजों  से  परे  एक  साज  होती जिन्दगी!
मीठी कुछ खट्टी रचती महाकाव्य रहती जिंदगी !!
जिंदगी में उफह,आह ,अहा बेशुमार होतें है यारों!
ब्रम्हाण्ड के जादुई तिलिस्म में कैद रहती जिंदगी!!

       जिन्दगी भी क्या अजीब चीज होती है !
       कहने को हमारी,पर हमारी होती नही है!!

        जिन्दगी भी  क्या  अजीब  चीज होती है!!

                                     🌷उर्मिला सिंह

2 comments:

  1. बेहतरीन रचना सखी 👌

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  2. बहुत ही सुंदर रचना है।

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