प्रभु तेरा साथ चाहिये
जीवन की सौगात चाहिए
हंसते हंसते दम निकले
ऐसा तेरा अनुराग चाहिए।।
कलुषता मिटा सके इंसान की
ऐसा मुझे वरदान चाहिए।
गंगा सा पावन मन हो सके
ऐसा निर्मल संस्कार चाहिए।।
पत्थर दिल भी पिघला सके
वाणी में वो मिठास चाहिए
संवेदनाओं का सागर हो ह्रदय
अधरों पर यही विश्वास चाहिये
हर देहरी पर प्रीत दीपक जले
सुचिता,सज्ञान की गंगा बहे
जीवन से 'मैं'शब्द मिटा सकूँ
ऐसा अनुपम भाव चाहिए।।
देशभक्ति से लबरेज हर इंसान हो
ईर्ष्या द्वेष का ह्रदय से अवसान हो
बड़े संघर्षों से पाई है ये आजादी.....
देश का मस्तक सर्वदा देदीप्यमान चाहिए
उर्मिला सिंह
हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी हमारी रचना को 'मुखरित मौन'में शामिल करने के लिए।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सार्थक सृजन दी👌👌
ReplyDeleteस्नेहिल धन्यवाद प्रिय अनुराधा ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मान्यवर।
Deleteवाह
ReplyDeleteआभार आप का।
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