Wednesday, 30 December 2020

2020--एक विश्लेषण...

2020  --एक विश्लेषण......

संग अपने 20-20 जाने क्या क्या लिए जाते हो
खुशियों के पल, दर्द भरे लम्हे संग लिए जातें हो
पलको के तट चूम कर कहती अश्कों की जलधार......
भूल नही पाएंगें सदियों तक तेरा यह निर्मम वार।

 पर कैसे कह दें दिया नही तुमने कुछ भी हमको
आत्मविश्वास,साहस धैर्य का पाठ पढ़ाया सबको
सुसुप्त रचनात्मक  प्रवृतियों को  जगाया तुमने
दूर किया सबसे तो घर मे रहना सीखलाया तुमने ।

भूल गया था इंसान अपनी क्षमता और बिसात
अहम भाव उसका समझा था स्वयंको भगवान
दुखी प्रकृति प्रदूषण से दूषित नदिया जलाशय
लॉकआउट होते मानो लौट आई हो सब में जान।

20-20 जाते-जाते दुआ करना,20-21तुमसा न हो
खुशियों की बरसात रहे भारत का उच्च भाल रहे
राजनीति के गलियारों में  देश प्रेम का भाव रहे
नफरत की राजनीति नही नव विकास नव  विहान हो।

                                        उर्मिला सिंह
 




Sunday, 20 December 2020

बाइस्कोप..

आया - आया, बाइस्कोप आया..
रंग बिरंगा बाइस्कोप देखो ..
जिद्दी आंदोलन की तस्वीर देखो..
विपक्ष का अजूबा खेल देखो...
आओ बहनों भाइयों मुफ़्त का तमाशा देखो !

बच्चों को प्यार बड़ों को सलाम
ताली  बजाओ  मेहरबानो...!!

बाइस्कोप में नही, कहानी मर्दानी लक्ष्मीबाई की
नही कहानी सरदार भगतसिंह जैसे देश भक्तकी...
नही बनाते अठन्नी चवन्नी नही बनाता रोकड़ा..
बाइस्कोप दिखाता सिर्फ सियासत का  थोबड़ा !!

क्यों जम्हूरे सच कहा न तो....
आओ कद्र दानों मेहरबानो..!!

देखो भईया देखो विपक्ष का तमाशा देखो...
अन्नदाताओं को झांसा पट्टी पढ़ाते  देखो...
बिचौलियों को अपना उल्लू सीधा करते देखो...
अपने बैठ कैम्पो में ,ठंढ में गर्मी  का आनन्द उठाते...
हमारे कृषक भाइयों को ठंढ में सिकुड़ते देखो....!!

अब आंदोलन में मेला का रूप देखो..
लगा हुआ स्टाल ,तरह तरह का पकवान देखो...
खाने में काजू बादाम अखरोट है..
ब्रेड पर शहद माखन का लगा लेप है
मुफ्त में बिरियानी रायते का झोल देखो...!

पडगये चक्कर में जम्हूरे ....
तुमतो  बजाओ सिर्फ ताली....
क्यों कि वर्षों से आप यही करते आयेहो..!!

सब मुफ़्त में देते ,अक्ल पर पर्दा डालते
हड़ताल अन्नदाताओं से करवाते
जो छूट गया सिंहासन 
उसका सपना सजाते 
किसानों की जयजयकार बोलते देखो
देखो भाई देखो नेताओं का कमाल देखो..!!

एक बार फिर बजाओ जम के ताली
ताकी सियासत करने वालों की मनजाये दीवाली..!

अन्न दाता भ्रामित 
विचौलियों की वाह... वाह
बाकी लोग उड़ा रहे माल 
व्यंजनों का थाल
विपक्ष मुस्कुरा रहा
अपनी पीठ थप थपा रहा
लगता है सत्ता की चाभी
है उनके हाथ लगी.....
सिहासन दूर नही
कमर कसे बैठे युवराज
कहो कैसा लगा जनाब

जय कलकत्ते वाली तेरा वार न जाये खाली
बजा जम जम के ताली.........

कोई कृषी कानून का  कागज फाड़ता
नेता मौका चूकते नही  कुर्सी के लिए लड़ता
स्वार्थ के अंधे ये क्या भला करेंगे देश का
वर्षों सोए रहते  चुनाव करीब जब आता
खुल जाती है नीद , दनादन सुर्खियों में आता
फिर एक पर एक फ्री ,बस यात्रा फ्री ,लगान फ्री
एक रुपये में भर पेट भोजन फ्री...
शोर शोर शोर ,जीत गए नेता लोग,
जो अपने को राजा से कम नहीं समझता 
पर जनता के पल्ले क्या पड़ता..
केवल ठाला ही ठाला होता ..

बजा जम्हूरे ताली, जय काली कलकत्ते वाली,
बंदेमातरम..जय भारत जय हिंदुस्तान......

                                 उर्मिला सिंह







Friday, 18 December 2020

गज़ल

जिन्दगी  ख़फ़ा तुझसे सारे  नजारे  हो गये
उम्र की देहरी पे रुकने को मजबूर हो गये!

बेपरवाह जिंदगी हौसलों की कश्ती ले चली 
जिस जगह पर रुक गई वही किनारे हो गये!!

गरीबी की चक्की में पिसते रहे ता उम्र जो
बच्चे स्कूल जाने को उनके तरसते रह गये!!

सरेआम ज़मीर की बोली लगती रही यहाँ
चन्द  सिक्को पे डोलते ईमान देखते रहगये !

इस दौर को कोसना भी लाजमी होता नही
हर दौर में जयचन्द को झेलते रहगये!!

धर्म को खेल बना इन्सान को लड़ाती रही सियासत 
सियासत में नेता भी इन्सान से हैवान बन के रहगये!!
                          ****0****
                                      🌷उर्मिला सिंह




Monday, 14 December 2020

सांस की सरगम

सास की सरगम पर गीत है जिन्दगी की 
बज रही है धुन कभी खुशी कभी गम की! 

मायूसियों से घबड़ाना क्यों ,कांटों से डरना क्या 
खोज वो ठिकाना जहाँ चिंता न हो गम की! 

अजनबी से ख्वाब मेरे  हँस रहे आज मुझ पर 
क्या पता था उजालों में छांव मिलेगी ग़म की! 

जिन्दगी देके भी नहीं चुकते जिन्दगी के कर्ज कुछ 
पर वक्त बैठा कर रहा इशारा सुरमई मंद की ! 

है न अज़ीब सी बात इस मुई जिन्दगी की..... 
अश्क आँखों में अधर पे गान जिन्दगी के नज़्म की!! 
                 *******0*******
                 उर्मिला सिंह





Saturday, 12 December 2020

गज़ल....

मेरे ईश्क को यूं फ़ना ना करो,मेरी जिन्दगी को धुँवा न करो
मेरे अधरों को गुनगुना ने दो लफ़्ज़ों को जरासांस लेने दो।।

आँगन में झांकती चाँदनी परीें को चंद्र खटोले से उतरने दो
खोल दो खिड़कियां ,दरीचों से भी ताजी हवा आने दो।।

हँसते होठो पर भी नमी की बरसात हो जाने दो
अश्कों से बोझिल आंखों को हँसी का स्वाद चखने दो।।

 साज के तारों से मधुर गीतों की झंकार निकलने दो
 मधुमास रश्क कर उठे जिन्दगी में ऐसी बहार आनेदो।।

आज दिल की बात खिलखिलाते फूलो सा झर जाने दो
 आज आसमां को तन्हाई में रात से गुफ़्तगू करने दो।।
                ******0******0*******
   
                                 उर्मिला सिंह
 

Thursday, 10 December 2020

पूजा ,अर्चन

क्या पूजा क्या अर्चन..
जब भाव नही पावन।
उस वाणी का क्या करना..
 जब हर्षित न हो मन ।।

 क्या रूप, क्या  लावण्य..
 जब ह्रदय नहीं करुणामय ।
 बहती नदिया का क्या करना..
 जब मन प्यासा रह जाय ।।

  क्या  सोना  चांदी  क्या  महल..
  जब  जख्मों  के न हो  मलहम ।
  उस जीवन का होता कोई अर्थ नहीं..
  देश पे मिटने का जिसमें संकल्प नही।।
  

  क्या होता धर्म  क्या है कर्म..
  जब उर में बैठा दुश्मन अहम ।
  यदि ज्ञान ज्योति नहीअन्तर्मन में..
   रहे तिमिर जीवन के प्रांगण में।।


   क्या होगी सन्तति ,पुत्र - पुत्री..
   यदि मर्म न ममता का समझे ।
   गीत - ग़ज़ल रस विहीन लगे..
   जब शब्द ह्रदय को  छू न सके ।। 
        *****0*****
                            उर्मिला सिंह 
   
   
   
   
  
   
   

 
  
  


  

Sunday, 6 December 2020

हे वीणा वादनी.....

हे वीणा वादिनी ......
हे उद्धार कारणी  मुझे अवगुणों  से दूर रखना
मन के अंधेरे को ज्ञान ज्योति का प्रकाश देना
पंकज सी निर्मलता मेरी जिन्दगी को प्रदान कर
मेरी  राहों को अपनी आशीष का वरदान देना!!
माँ शारदे वर दे.....

हे वीणा वादिनी........
मेरा शब्द शब्द तेरा रूप हो सत्य का पतिबिम्ब हो
निर्भीक  हो  अभिमान से दूर, प्रेम  का प्रतीक हो
ज्ञान ज्योति बिखेरे....  इंसानियत  का  संदेश दे
मेरी रचना का ऐसा स्वरूप हो माँ यही वरदान हो!!
माँ शारदे वरदे......

हे वीणा वादिनी..........
दुष्टों का संहार कर सके शब्दों को ऐसा आकार दो
हर मन की  व्यथा से द्रवित हो  मुझे ऐसा ह्रदय दो
मेरी सास सास में तूँ ,चरणों में समर्पित तन मन रहे
जीत मेरी हार भी तुझको अर्पित ,मन को विश्वासःदो
माँ शारदे वर दे....

हे वीणा वादिनी.....
बसन्ती चूनर ओढे धरा मुस्कुराये मेघ की कृपा रहे
बन बाग तरुवर उल्लसित पक्षियों का कलरव रहे
पुष्प झूमे डाल डाल मदमस्त भंवरे कलियों को चूमे
मलय सुगन्धित बहे प्रीत से हर ह्रदय चहकता रहे..
माँ शारदे वर दे......!
मां शारदे वर दे........!!

                                      #  उर्मिल





Friday, 4 December 2020

चल-चल रे मनवाँ राम दुवारे...

आकुल व्याकुल ह्रदय तुझे पुकारे
     चल - चल रे मनवाँ तूँ राम दुआरे......।।

     प्रभु मेरे!भटकत मन बिन तेरे
     अब तो उद्धार करो देव मेरे
     तरसत हिय कमल नयन को पल - पल
     किस विधि परसू चरण तिहारे।।    
     
     प्रभु मेरे! भटकत मन बिनु तेरे
     चल -चल रे मनवा राम दुआरे......।।
   
    कठिन कुटिल ये दुनियां ना भावे 
    नित-नवल रूप में माया भरमावे
    तृष्णा -ठगनी मोहिं छलती जाऐ....।।
    'अहं' की छाया डेरा डाले
  
   तेरी महिमा तूँ ही जाने......
   चल-चल रे मनवा राम दुआरे ......।।
     
    जीवन रसहीन हुआ जाता है
    नेह मोह फांस बना जाता है
    तेरी करुणा की  रस धार का
    प्यासा मन प्यासा ही रह जाये .....।।
    
   आकुल विकल ह्रदय तुझे पुकारे
   चल चल रे मनवाँ राम दुवारे......    !!
  
     जग विस्तीर्ण,मोह उदधि लहरों से
     मुक्त करो,अपने निर्मल प्रकाश से
     मुर्झाती पथ प्रतीक्षा में तन की डाली
     पद पूजन को कब तक मन तरसे .......!!
      
       नैनन की लौ मद्धिम पड़ती जाए
       चल -चल रे मनवाँ राम दुआरे...... ...।।
                  *****0*****
                              
                                    उर्मिला सिंह  
     
     
     
     
     
     












Wednesday, 2 December 2020

कोमल सपनों के कोई पँख न काटो. ..

कोमल सपनो के कोई पंख न काटो
उड़ने दो इनको बन्धन में मत बांधो।

स्वप्नों को जब आकाश मिलेगा
मन वीणा से सुर गान सजेगा
मेघों से तृप्ति ,किरणों से दीप्ति लिए
स्वप्नों की मेघमाला से धरती को सजायेगा।

कोमल सपनो का आरोहण मत रोको
उड़ने दो इनको बन्धन में मत बांधो।।

स्वप्नभाव बीजों का संग्रहालय होता
लहलहाते अंकुरित भाव धरा पर जब
धरती स्वर्ग सम दिखने लग जाती तब
नव सपनों से पुष्पित पल्वित धरा होती।

कोमल सपनो का अवरोहण मत रोको
उड़ने दो  इनको  बन्धन में मत बांधो।।

नव प्रभात नव विहान चाहते हो नव स्वप्न पढ़ो
नव जवान नव भाव नया हिंदुस्तान  चाहते हो
तो संस्कृति संस्कार नव ज्ञान से हिदुस्तान बदलो
राष्ट्र भक्ति को सींमा परिधि में मत बांधो....
ये ह्रदय  ज्वार है जो कण-कण में बसताहै
देश की  तरुणाई  में देश भक्ति का उबाल आने दो ।

नूतन में ढलना है गर तो बन्धन में मत बांधो
 तरुणाई को बिछे आँगरों से परिचित होने दो।
 
इनके कोमल सपनो के कोई पंख न काटो
सपनो को साकार करो बन्धन में मत बांधो।।
              ******0******
              उर्मिला सिंह





Monday, 30 November 2020

हम उसी के हैं....

बात  दिल की कभी होठो  पे  लाई  न गई ,
 हम  उसी  के  हैं , उसी  से  बताई  न गई !

रात , सिरहाने  बैठी  थपकियाँ  देती रही ,
आंखों से पल, एक पलकें  झपकाई न गई !

 उसे सौगात मैंने चंद्रिका की रोशनी दे दी
 जुगनुओं की रोशनी उससे  भिजवाई न  गई !

जन्म जन्म  से परीक्षित  सीता  ही  होती रही ,
केचुली  अभिमान  की उससे  हटाई न गई !

भाव शब्द गीत  उसी में समाहित हो गये मेरे
गीत मेरे रातरानी से ,उससे महकाई  न गई !
                                           #उर्मिल





Saturday, 28 November 2020

ग़ज़ल

खोल दी आज खिड़कियां रश्मियों ने आवाज दी है
हो गया सबेरा परिंदों की टोलियों ने आवाज दी है

मिट पायी नही कभी जिन्दगी की ये तल्खियाँ
आज किसी  की भोली मुस्कुराहटों ने आवाज दी है

हर कदम पर तिजारत से भरी जिंदगी है
न जाने किधर से आज इंसानियत ने आवाज दी है

 पंखुड़ियों ने नमी पलकों की ,आगोश में समेटा है
  आज  हरसिंगार के फूलों ने आवाज दी है

 लगाकर एतबार के पौधे ता उम्र हारते  रहे
 आज विश्वाशों ने एक बार फिर आवाज दी है

रिश्ते नाते सभी का पैमाना आज ज़र ही रह गया है
आज अहसासों के रिस्तो ने फिर आवाज दी है

रूह तड़पती रही घुटन होती रही कोई सुर तो मिले
आज दर्दे दिल की दवा सुर के तारों ने आवाज दी है !
                     ******0******
                 उर्मिला सिंह







Thursday, 26 November 2020

ऐसा कोई गीत लिखो प्रिय.....

ऐसा कोई गीत लिखो प्रिय 
आसूं मुस्कानों में ढल जाए
बीच धार में बहती कश्ती को...
शाहिल का सहारा मिल जाए।।

आहों के गांव बसे हैं धरती पर
 पीड़ा का नृत्य होरहा धरती पर
 नेह नीर की फुहार बरसाओ प्रिय...
 करुणा,दया की सरिता बह जाए।।

ऐसा कोई गीत लिखो प्रिय......।

इंसानों की बस्ती में इंसान नही
मन्दिर मस्जिद में भगवान नही
गीता कुरान महज़ पुस्तक बन रहगई
ऐसा सुर से साज सजाओ प्रिय.....
भाओं के सागर से मन उद्देलित हो जाए।।

ऐसा कोई गीत लिखो प्रिय ... .।

चाँदनी रात खिलखला कर हंसे
फूलो की मधुरिम सुगन्ध बिखरे
मुर्झाये चेहरों पर बसन्त खिले......
दिल से दिल की दूरी मिट जाए
इंसानियत से आलोकित हर मन हो जाए।।


ऐसा कोई गीत लिखो प्रिय....।

अब न कलियां कोई मुर्झाए
अब न बागवां कोई आसूं बहाए 
बचपन के सपनों की मजबूत नीव हो....
नारी को वस्तु या भोग्या न समझे कोई
अश्क एक दूसरे के आँखों के अपने हो जाए।।

ऐसा कोई गीत लिखों प्रिय..... ।।
   
     / ******0******
              उर्मिला सिंह









Friday, 20 November 2020

कली आत्मा भौरें. ...

कली  आत्मा भौरें  दुर्गुण तन है माया जाल
जीवन तृष्णा में उलझा भटक रहा मन बेहाल।।

अंधेरा बहुरूपिया ,(कोरोना)आये धर कर बहुरूप
आशा विजयी,झिलमिलाई धर दीपक का रूप।।

श्वेतशुभ्र-शरद,और बसन्त दोनों देता है शुभ संदेश
दोनों आनन्द के पर्याय हैं दोनों के अलग अलग संदेश

बसन्त,उल्लास बिखेरता स्थाई भाव रति का है द्योतक
शरद,शान्त श्वेत कपोल सम आंतरिक समृद्धि का द्योतक

फूलो को चुनतें हैं जैसे शब्दों को उसी तरह चुनना है
गीत ग़ज़ल कविता के भांवो में सोच समझ कर गूँथना है।।

          उर्मिला सिंह











 

Thursday, 5 November 2020

जो मिला नही उसका कुछ गिला नही.......




वो दर्द जो गया नही वो जज़्बात जो कहा नही
नीर आंखों से झरते रहे विकल मन कुछ कहा नही।।

जो  मिला नही मुझे उसका कुछ गिला नही,
उम्मीदों की लौ बुझी नही हौसलों ने हार माना नही।।


नफ़रतों की बह रही बयार प्रदूषणो से कराहती धरती 
 फैलते ज़हर से तन मन बचा नही कोई जाना नही।।

ज़रा ठहरो -सहरे-चमन में सांप फन उठाएं बैठे हैं 
किस किस को कुचलोगे अभी तक तो तुमने समझा नही।।

 कभी झाँक कर ह्रदय स्वयम से पूछते क्यों नही
 बिखरे नागफनी को राहों से हटाना तुम्हे आता नही।।

अंधियारी रात को समेटने दीप्त रोशनी ले दीपावली आई
ह्रदय का दीपक जलाओ खुशियां ढूढना तुम्हे आता नही।।
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                        उर्मिला सिंह










Tuesday, 3 November 2020

दुनिया का चलन....

सीखने लगे सबक
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दुनिया का चलन 
लगे सीखने सबक
बहुत नादान थे हम 
समझ न पाए सबब।

छल प्रपंच से भरी
है ये दुनिया सारी
देखी जो बेहाली
नम हुईं आंखे हमारी।

'पैरों तले खिसकने
लगी जमीन'
हम सम्भलने लगे 
रफ्ता-रफ्ता बढ़ने लगे।

थक कर बैठे न हम
पांव जख्मी हुवे
अश्क ढुरते रहे
मलहम को तरसते हम।

दुनिया की हकीकत 
रिश्तों की गठरी खुली
उघड़ी तुरपाई की मरम्मत हुई
 जिन्दगी आहिस्ता आहिस्ता
 कांटों में  खिलने लगी।।

      उर्मिला सिंह

Wednesday, 28 October 2020

नारी अस्मिता पर चोट कब तक?

नारी अस्मिता पर चोट कब तक???
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    जीवन उपवन इतना सूना क्यों है
    राहों  पर  इतना  सन्नाटा  क्यों है
    सहमी सहमी डरी डरी कलियां  ....
    उजालो के घर अँधेरा  क्यों है।।

    जिस देश में कन्या पूजी जाती है
    नारी गृहलक्ष्मी की उपाधि पाती है
    जहाँ  गंगा के सम  सकल वश्व में जल नही
    वहां नरभक्षी दैत्यों से अपमानित होती है।।

कागज के पन्नों पर कानून लिखे रह जाते हैं
नेताओं के वादे वोटों तक सीमित रह जातें हैं
सहन शक्ति की भी सींमा होती है नेताओं सुन लो
जनता न्याय करेगी जब रोक नही पाओगे सुन लो।।

हर धर्म हर पार्टी नारी सुरक्षा की बातें करती है
फिर कथनी करनी में फर्क भला क्यों करती है
इंसानियत,नैतिकता का पाठ क्या तुमने पढ़ा नही
समस्त नारी आज आप सभी से पश्न यही करती है।।
             *****0******

                उर्मिला सिंह
 




Sunday, 25 October 2020

गज़ल

तूफानों में जो जल सके वो चिराग लाओ
हरसू अंधेरा ही अंधेरा  है उजाले लाओ !!

मजहब के छालों से जख़्मी तन मन होरहा
हो सके तो मोहब्बत के भरे  प्याले लाओ!!

शब्दो के बाण चल रहे दिल के टुकड़े हो रहे
 प्यार से ,मौन  हुवे होठों  की  आवाजें  लाओ !!

 भरम पाले  बैठें  हैं  ख़ुशबुओं  को कैद करने का
 ‎दिले -गुलशन में हुनर खुशबू फैलाने  के लाओ!!

इश्क मोहब्बत की चर्चा लिखने में मशगूल रहे
भूख से तरसते बचपन को रोटी के निवाले लाओ।

महलों  के साज सज्जा के दीवाने तो सभी होते
पानी से भींगती जिन्दगी के लिए ठिकाने लाओ।।
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                 उर्मिला सिंह


 
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Wednesday, 21 October 2020

शक्ति पुंज हो ,शक्ति का आवाह्न करो...

द्रोपदी  का चीर  हरण  नित्य होता रहा 
  दर्द की कराह रौंद जग आगे बढ़ता रहा
  राजनीति सियासत का पासा फेकती रही.....
  उसूल मरता,न्यायालय जमानत देता रहा ।।
 
 
कलमकार का दर्द पन्नों पर बिखरता रहा
 चरित्र का खुले बाज़ार में सट्टा चलता रहा
कलयुगी रावणों की जमात में राम खोगये कहीं....
 आज का कायर इंसान गूंगा बहरा हो रहा ।।
  

 नारी  पुनः शक्ति  अपनी तुम्हे पहचानना होगा
 आखिरी सांस तक अधर्मियों के संग लड़ना होगा
 तुम्हे इन दुर्गंधित कीड़ों को मारकर ही मरना होगा
 यही संकल्प नवरात्रि में हर नारी को लेना होगा।।


 चुनौती बन के आओ इन दम्भीयों के सामने
 यह लड़ाई होगी तुम्हारी  इन आतताइयों से
 शक्ति पुंज हो  शक्ति का आवाहन करो..
 प्राणों की भीख मांगेंगे ये गिद्ध तुम्हारे सामने।।

                              उर्मिला सिंह
 

 

Monday, 19 October 2020

जो कभी नही भरते.....

माने या न माने.....चार स्थान ऐसे हैं जो कभी नही भरते 
समुद्र, मन, तृष्णा, और श्मशान 

समुद्र :-

समुन्दर तेरी गहराई तेरे ओर क्षोर का पता नही
कभी खाली नही दिखता,नजाने कितनी नदियों से मिलता
क्या क्या छुपा रक्खाअंतस्तल में कुछ पता नही मिलता
जो जितने गहरे डुबकी लगाते उतने ही रत्न जुटाते
तभी तो दुनिया में तुम रत्नाकर कहलाते।।

मन:-
सागर के छोटे भाई लगते तुम
भाओं के अम्बार छुपा रक्खे तुम
कुछ संकुचित कुछ विस्तीर्ण होते
तेरी गति से तेज न गति होती किसीकी
अभिलाषाओं से खाली मन होता नही कभी।

तृष्णा:-

मानव काया तृष्णा के चेरी 
प्यास कभी न बुझ पाई इसकी
जाने कितना गहरा पेट है इसका
भरने का यह नाम न लेती.......
तभी तो कहते हैं"तृष्णा तूँ न गई मन से"


श्मशान:-

जीवन का सत्य यहीं से दिखता
अग्नि की लपटों का घिरा रहता
कभी न बुझती आग तुम्हारी.....
किसने तुझको है ये श्राप दिया।।

      उर्मिला सिंह


Wednesday, 14 October 2020

एक सोच ......

मन की सोच जो अनायास उभरती है भाओं में......
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अनायास मन में सोच उभरती है.....
क्या विध्वंसकारी विचारों पर अंकुश लगेगा?
क्या नेताओं को देश विरुद्ध बोलने का लाइसेंस मिला है?
सामान्य नागरिक के लिए कानून है तो उनके लिए क्यों नही ?
यह अन्धेर अब ज्यादे दिन नही टिकेगा.......
इस अंधेरी रात का उजास होगा....
परन्तु न बसें जलेंगीं न पटरियां उखड़ेंगी
न दुकाने जलेंगीं न हिंसा भड़केगी
प्रत्येक ब्यक्ति के ह्रदय में देशभक्ति का ज्वार उठेगा
एक सैलाब जनसमूह का  उमड़ेगा......
सभी की आत्मा देश की आत्मा बन जगेगी......
जिसमे न कोई उच्च होगा न कोई नीचा
रोशनी अहंकारियों के द्वारा नही अपने आप होगी
न  पर्चियां छपेगी न कोई दावे करेगा  ......
अन्धेरे को हरा कर सूरज से पहले विश्वास का प्रकाश होगा
न आंतक होगा न नफ़रत का बाज़ार होगा
कभी गुलामी की जंजीर टूटी थी.......
उसी तरह से अंधकार को जनमानस का विश्वास तोड़ेगा
 चारो ओर प्रकाश ही प्रकाश होगा 
 एक दिन-----वह दिन आएगा ----आएगा......

                 उर्मिला सिंह
   

Monday, 12 October 2020

गज़ल

ज़मीर की ज़मीन बंजर होगई आजकल
उसूलों की तामील दीजिये तो बात बने।।

रिश्तों की क्यारी में रेत ही बाकी बची रोने को
 इसमें स्नेह के फूल खिले तो बात बने।।

रूप बदला चाँद ने भी अनेकों  गगन में
पर चाँद की शीतलता याद रहे तो बात बने।।

रूबरू आईने के होते ही नकाब उठ जाती
ये सच्चाई गर समझ आजाये तो बात बने।।

बरस रही है तीरगी चहुंओर आजकल
उजालों की कोई बात करे तो बात बने।।


अपनी ढपली अपना राग अलापते सभी हैं
 देश के विकास में सहयोग की बात करे तो बात बने।।


                   उर्मिला सिंह




Sunday, 11 October 2020

ह्रदय प्रेम की लहरें नयन करुणा की ज्योति,ऐ मालिक सुन ले बस इतनी सी विनती मेरी।।

अन्तर्मन
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जीवन के दुखमय क्षण में
 घनघोर अंधेरा दिखता हो
 मष्तिष्क काम नही करता हो
 तब अन्तर्मन जुगनू बनके.....
 पथ भूले पथिक को राह दिखलाता है ।।

 जब मन की  उलझन बढ़ने लगती है
 जब रिश्तों की तुरपन खुलने लगती है
 दूर कहीं शून्य एक आवाज गूंजती है
 जग तो रंगमंच है ,तेरा मेरा कुछ भी नही
 बस कर्मों पर आत्मविश्वास की दस्तखत होती है।

शान्ति सहन शीलता वातानुकूलित कक्ष होती है
शीतलता,क्रोध चिंता रहित जीवन प्रदान करती है
मौन मस्तिष्क को आराम देता है.......
नैतिक, आध्यात्मिक मूल्यों का ज्ञान कराता 
प्रत्येक  दिन में छुपा एक गुह्य राज होता है।।

प्रेम सार्वभौम है ,होती नही है इसकी कोई सींमा
बिन प्रेम अनर्थक जीवन पावन प्रेम शक्ति है देता
जीवन से दुर्गुण दूर कर महकता और महकाता
चहुंओर प्रेम प्रवाहित करना  धर्म हमें सिखलाता।
ईर्ष्या द्वेष, तिमिर छट जाता जब प्रेम ह्रदय बस जाता।।

                 उर्मिल सिंह



              

Saturday, 10 October 2020

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर एक मां की हुंकार....

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस  पर 
एक माँ  की हुंकार.....
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प्यारी प्यारी लगती छवि तुम्हारी ..
फूलों से  भी नाजुक कली हमारी....
इस निर्मम जग में तेरा सम्मान नही,
हाँथों  में जब तक तेरे तलवार नही !!

 माँ हूँ ,कमजोर तुझे ना बनने दूँगी..
 जमाने पर अब बलि ना चढ़ने दूँगी..
 बहुत सुनी बातें सबकी-अब और नही,
 तेरी बाहों में मैं काली की शक्ति दूंगी !!

अबला समझे अब दुनिया तुझको...
यह कत्तई बर्दास्त नही अब मुझको...
तेरी कमजोरी ही ढाल बनेगी तेरी,
ऐसा सबक सिखाना होगा तुझको !!

संस्कार ह्रदय में होता कपड़ों में नही...  
सीता सावित्री कहानियों में होती हैं...
रानी लक्ष्मीबाई से युद्ध प्रेरणा ले उठ ,
तुझे इतिहास बदल-नई कहानी लिखनी है!!

मां दुर्गा का वन्दन,कटार उठा हाँथों में...
चूड़ी - कंगन बजने दे शंख नाद ये तेरा..
हर दुश्मन का लहू पी अपनी प्यास बुझा,
आँसू की हर  बूँद  घूमेंगी बन कर नव दुर्गा !!

                             उर्मिला सिंह




 

यादों की आंख मिचौली.....

यादों की आंख मिचौली
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यादों  की आंखमिचौली
फूलों की मीठी चितवन।
नभ की छिटकी दीवाली
पागल हुआ बिचारा मन।।

फैला अपने मृदु स्वप्न पंख
नीद उड़ी क्षतिज के पार।
अधखुले दृगों के मधु कोष-में
किसने  उड़ेल दिया खुमार।।

रोम रोम में बासन्ती छाई
उर सागर में लहरे लहराईं।
तम पर विजय पताका...
सूरज की किरणों ने फैलाई।।

अभिलाषाओं का सुनहला पन
झिलमिला रहा विस्तृत गगन ।
देख रही हँस -हँस मीठी चितवन
पुलकित  मन, रंग भरा जीवन ।।

                 उर्मिला सिंह

Friday, 9 October 2020

नीला आसमाँ........

आज.......
रंगों भरा आसमाँ दिल के 
कैनवास पर उतर आता है
मैंने भी सोचा चलों पन्नो के कैनवास पर...
कुछ तस्वीरें बनाती हूँ.....
रंग बिरंगी ,प्रकृति की मनोरम छटा
कल-कल बहती नदी......
लहराता सागर.....
पनघट पर आती-जाती  ओरतें.....
खेतों की हरियाली .......
झूमती कलियां - खिलतें फूल...
रम गया मन, चित्रों को .........
केनवास पर बनाने में 
सधे हाथों ब्रस चल पड़ा....
कुछ अंतराल के बाद.....
ब्रस रोक कर देखती हूँ
केनवास पर की गई अपनी चित्रकारी,
स्तब्ध रह जाती हूँ.......
उसपर मानसिक विकृतियों....
के अनेक रूपों का चित्र बना था
ऐसा लग रहा था मानो...
समाज की सारी विकृतियां
इस कैनवास पर मुझे
चिढ़ा रही हैं....
मैं सिर पकड़ कर बैठ गई....
शून्य की तरफ़ देखती रह जाती हूँ।।

            उर्मिला सिंह



Thursday, 8 October 2020

यादें....

आज यादों की वीणा  झंकृत  होगी तेरी 
याद आएंगे गुजरे जमाने बिताये थे हमने कभी !!

 सागर किनारे  लहरों को देखोगे जब तुम!
 गुनगुनाओगे गीत जो गाये थे हमने कभी!

आवाज यादों को दोगे कभी तो, हमारे!
एहसासों का धागा बाँधे थे हमने कभीे!!

चन्द लम्हों के लिये मिले थे जिन्दगी से ,
चाँदनी में शबनम से नहाये थे हमनेे कभी!!

 खिलेंगे फूल यादों की वादियों में सदा!
 प्यार की खुशबू से जन्नत बनाये थे हमने कभीं !!
                    ****0****
                          #उर्मिल






Wednesday, 30 September 2020

अन्धा युग अन्धा कानून

सावित्री ने यमराज से अपने पति का जीवन दान मांगा था
पर मेरी 'कविता '---कानून ,समाज,तथा समस्त पुरुष वर्ग से उनके आत्मा की दौलत मांगती है ,करुणा इन्सानित  .
संवेदनशीलता का भाव मांगती है।

अन्धा युग.....

 अन्धा युग अन्धी दुनियाँ
  विकसित भारत परअविकसित मानसिकता
  सपने आसमां छूने का ,कर्म अनैतिकता
  दुष्कर्मों से हाथ मिलाते रक्षक भक्षक होते
  मौत न्याय दिलवाता प्रशासन सोया रहता।

   पाशविक दृष्टि, शर्मशार होती सृष्टि
   दुष्कर्म की विजय नैतिकता दम तोड़ती
   रीढ़ की हड्डी टूटती नर पशु अट्टहास करता
   चीख सुन जश्न मनाता क्रूरता की इंतहा होती।

    स्वर्ग नर्क के मध्य बहती नदी है नारी
    तो जिस्म की दरिंदगी पौरष की पहचान होती है
    इन्सानियत के सड़ते गलते टुकड़े  सड़को पर घूमते
    सारे आदर्श,कायदे पर बलि का बकरा नारियां होती।

    अन्धे युग अंधे कानून  का होगा कब अन्त 
    सम्बवेदन हीन राजनीति का कब बदलेगा वक्त
    कब संविधान के कानून,अदालत से न्याय मिलेगा 
   पाशविक,महाबलियों की गुंडागर्दी का होगा कब अन्त।।

                उर्मिला सिंह
   
    
   
 

    
    
   

Sunday, 27 September 2020

मानवता ....

सुप्त हृद संवेदना के तार  तरंगित करते हैं 
पथ भूले को इंसानियत की राह दिखा कर..
लेखनी की टंकार से मानवता जगाते हैं....!

छल कपट  की  ओढ चुनरिया
 मान अभिमान का गहना
आँखों पर  दौलत का चश्मा
पांव तले  कराहती मानवता!

जीर्ण क्षीण संस्कारों का पूर्णोद्धार करते हैं
आओ देश में सुख  सौरभ  आनन्द बिछा कर..
लेखनी की टंकार से मानवता जगाते हैं...!

स्वार्थी पुतले आदम खोर हुए
तरह तरह की  खाल  बदलते 
धर्म-कर्म  से परहेज है इनको 
मौका देख  गिरगिट बन जाते!

 तप्त लहू तेरा ,दुश्मन पर वार करते हैं
 आओ कुटिल चालें नाकाम  कर ...
 लेखनी की टंकार से मानवता जगातें हैं....!

लोमड़ी सी चालाकी ,विषदन्त उगाये
लक्ष्यागृह के निर्माता बैठे ताक लगाये
नित नये षणयंत्रों का बुनते ताना बाना 
भ्रम जाल फैला,सिहासन कीै करते आशा!

इन विषैले सर्पों का फन कुचलतें हैं
आओ नई राह नई मंजिल पर चल कर ..
लेखनी की टंकार से मानवता जगातें हैं ....!

मानवता आज खतरे में पड़ी है
प्रकृति अपने तेवर दिखा रही है
शोक संतप्त माँ भारती भी...
अपने नॉनिहालों को निहार रही है!

तार तार होती मानवता  हर पल
कराहती इंसानियत का दर्द बता कर ...
लेखनी की टंकार से मानवता जगाते हैं...!

 कदम बढ़ाओ आगे आओ तरुणाई
 मां भारती की लाली क्षीण न होने पाए
 भारत के वीरों  तुम याद करो कुर्बानी
 तेरे कंधों पर टिकी माँ भारती की आशाएं!

 तेरे शौर्य को आशान्वित नयन निहारते 
 लेखनी की टंकार से मानवता जगाते हैं...!!

                             उर्मिला सिंह
  








Thursday, 24 September 2020

मन के मुंडेरे पे बैठी प्यारी मैना


भोजपूरी में लिखी रचना बेटियों पर है। बेटियां जब अनगिनित ख्वाब सजाए  ससुराल जाती हैं पर वहा
हर ख्वाब धूमिल होते नज़र आतें हैं उस समय उनकी मन की व्यथा का वर्णन इस रचना के माध्यम से आप सभी के समक्ष रख रही हूं,.....


मनवाँ के बतिया सुने प्यारी मैना

मन के मुंडेरवा पे बैठी  प्यारी मैंना
मनवाँ की बतिया सुने प्यारी मैना
दरद जिया के कोई नही जाने
मितवा बनी है मेरी प्यारी मैना।

अंखिया से झर- झर गिरे मोर अंसुवा
निरखि निरखि पोछे मोरि प्यारी मैना
ससुरा के पिजरा के कैदी मोर सपनवा
देहरी के दिया तले जरे मोर जियरा

मनवाँ के बतिया सुने प्यारी मैना।।

मइया के दुलरवा के तरसे मोरा हियरा
बिनु पखिया के घूमें एहि रे अंगनवा
आगे पीछे दिखत नही कोई हमेअपना
मइया काहे भेज देहु अपने से दुरवा

तनवा सहत सहत हार गइले मनवाँ
कब तक जडू मईया मुँहवा पर तलवा
हियरा जरे मईया दिन अरु रतिया......
खुनवां के असुंवा पी - जिये तोरी बिटीया
मनवाँ के बतिया सुने प्यारी मैना
           ****0****
















 

Monday, 21 September 2020

अन्तर्मन में भावों का सागर है ,मन नवरस का संगम है उर्मियाँ जब उद्वलित होती हैं तब गद्य या पद्य का प्रारम्भ होता है, और कविता भी भावों के अनरूप बहने लगती है।

कविता.....नवरस

  नवरस संचित होते मन में 
     भावोंं के स्फुरण होते
  सुरभित शब्द हार बनते उससे
      नव रस बिखरने लगते ।

  भाव निकलते जब उर से
   कलम सजग हो जाती
पन्ने शब्दों की अगवानी करते
  सरस् सरिल सरिता बहती।

 विविध भाव अंकुरित पन्नो  पर
      ममता की दरिया बहती
  डोरे डालते भ्रमर कलियों पर
  कभी दुश्मन पर तलवार निकलती ।

सजती  बारात  कभी  तारों  की 
   चाँद कभी आंगन मुस्काता
दिग दिगांत सुरभित हो इठलाता
    दृग से अनुराग छलकता
 शब्द  पंखुरी  पन्नों  पर झरती । 

  मन की  पीड़ा अधर तक  पहुंचती
     ह्रदय वेदना से चीख निकलती
 पन्ने  मुखर  कलम  संवाद  बनाते
      मसि मोती सम चमकती
 नवरस भाव गुंजित कविता  सजती।

            उर्मिला सिंह
   
   
  
  
     
 

Sunday, 13 September 2020

हिंदी की महत्ता

भारत माँ का मुकुट हिमालय है 
तो हिंदी मस्तक की बिंदी ।
पहचान हमारी अस्मिता हमारी 
मान हमारा है हिंदी ।

हिन्दी भाषा के विकास का इतिहास भारत में आज का नहीं सदियों पुराना है । भारत की राज भाषा हिंदी,विश्व की भाषाओं में अपना एक महत्वपूर्ण  स्थान रखती है।
हिन्दी भाषा को जानने के लिए यह जानना परम आवश्यक है कि हिन्दी शब्द का उद्गम कैसे हुआ ।
हिंदी शब्द संस्कृत के सिन्धु शब्द से उत्पन्न हुआ है।
और सिंधु , सिंध नदी के लिए कहा गया है।
यही सिंध शब्द ईरानी भाषा मे पहले हिंदू, फिर हिंदी और बाद में हिन्द के नाम से प्रचलित हुआ और इस प्रकार हिंदी का नामकरण हुआ ।
हिंदी का उद्भव संस्कृत से हुआ जो सदियों पुरानी और अत्यंत समृद्ध भाषा है। और इसी संस्कृत भाषा से हमारे वेद ,पुराण,मन्त्र आदी प्राचीन काव्य और महाकाव्य लिखे गए हैं।
हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है जिसे विश्व मे सबसे अधिक वैज्ञानिक माना गया है ।
हिंदी साहित्य का क्षेत्र बहुत ही परिष्कृत और विस्तृत है।
साथ साथ  हिंदी व्यवहारिक भाषा है। बच्चा जन्म लेने के
पश्चात सर्व प्रथम माँ शब्द का ही उच्चारण करता है ।
हिंदी भाषा में प्रत्येक रिश्तों/सम्बन्धों के लिए अलग अलग शब्द होते हैं।जबकि अन्य किसी भाषा में ऐसा नहीं मिलता।
हिंदी भाषा की 5 उप भाषाएँ हैं तथा कई प्रकार की बोलियाँ प्रचलित हैं। आज कल इंटरनेट पर भी हिंदी भाषा का बाहुल्य है। हिन्दी ऐसी भाषा है जो हमें सभी से जोड़ने का
प्रयत्न करती है । हिंदुस्तान के हर प्रदेश में हिंदी भाषा बोली जाती है भले ही टूटी फूटी क्यों न हो ।
विश्व में सबसे ज्यादा बोलने वाली भाषा हिन्दी ही है।
ऐसा मेरा मानना है।
युग प्रवर्तक भारतेन्दु हरीश चंद्र जी ने हिन्दी साहित्य के माध्यम से नव जागरण का शंखनाद किया।
उन्होने लिखा:
 "निज भाषा उन्नति है,
 सब उन्नति का मूल।
 बिनु निज भाषा ज्ञान के,
 मिटे न हिय का शूल ।"
 हमारे देश का दुर्भाग्य रहा है कि हिन्दी भाषा का जो स्थान होना चाहिए वो आज तक हिंदी भाषा को प्राप्त न हो सका।
 अतएव आप सभी से अनुरोध है कि जितना हो सके हिंदी भाषा के विकास हेतु कार्य करें।
 किसी भी देश की मातृ भाषा उस देश का श्रृंगार/गौरव होता है अतएव उस श्रृंगार को निरंतर सजाते संवारते रहें।
 जितना भी हो सके हमलोगों को हिंदी के विकास के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।
 हिंदी भाषा हमारी पहचान है, हमारी आन -बान- शान है।
 धन्यवाद...
 जय हिंद   .
 जय भारत...।।
                     .....   उर्मिला सिंह 

Tuesday, 8 September 2020

एक कहानी .....जिन्दगी की.... जिन्दगी , जो पतंग की तरह नीले आकाश में उड़ती है ,छूना चाहती है अम्बर को , पर डोर तो किसी और के हाथ में होती है , जितनी ढील मिलती है पतंग उसी हिसाब से उड़ती है । आज न जाने क्यों मन सोचने लगा कि सारी बंदिशें नारी के ही लिये क्यों? क्या पुरुष को अनुशासन, संस्कारों की जरूरत नही पड़ती। उनके ह्रदय की संवेदनाओं को जगाना जरूरी नही होता । इन्ही बातों के उधेड़ बुन में बैठी थी कि मेरी एक बचपन की सहेली का फोन आया " आ जाओ आज मेरे यहाँ शाम की चाय एक साथ पीतेें हैं" । विचारों को वहीं स्थगित कर के मैं अपनी सहेली के यहाँ पहुंची, वहाँ मेरी सहेली कुछ मायूस सी लगी। आगे बढ़ कर मैंने उसे गले लगाया तथा पूछा"कैसी हो आज ये खिलता चेहरा मुर्झाया सा क्यों है" । हल्की सी मुस्कान की एक पतली रेखा उसके अधरों पर खिंच गई। मुझे समझने में देर नही लगी कि कुछ तो गड़बड़ है। बात आगे बढ़ाने के लिये मैंने कहा ,"सुषमा चाय पिला यार फिर आराम से बात करतें हैं"। कुछ देर हम दोनों शांत बैठे रहे तभी चाय और गरमागरम पकोड़े भी आगये.... फिर क्या था हम दोनों चाय की चुस्कियों के साथ बातें करने लग गये । बातों का सिलसिला कुछ ऐसा चला कि समय का पता ही नही चला । तभी उसकी बेटी बाहर से आई ....! उसे देखते ही सुषमा बिफर पड़ी "इतनी देर क्यो ? नित्य तुम कुछ न कुछ बहाना बनाती हो , कभी ट्यूशन, कभी ट्रेनिंग आखिर करती क्या हो ,लड़कियों का इतना घूमना अच्छा नही होता तुम्हे दूसरे के घर जाना है इत्यादि इत्यादि.."..। मैं आवाक कभी उसे कभी उसकी लड़की को देखती रही । अन्त में मुझसे रहा नही गया मैने पूछ ही लिया " सुषमा! ...यही पश्न तुमने अपने लड़के से कभी पूछा ?शायद नही" .....उसने तपाक से उत्तर दिया "वह तो लड़का है कौन दूसरे के घर जाना है"... आश्चर्य चकित मत होइए ये घर - घर की कहानी है आज भी कितने घरों में यह सोच पल्लवित पुष्पित हो रही है। सुषमा की लड़की पर्स बैग ऐसे ही समानों का बिजनेस करती है फिर भी उसपर अंकुश और बेटा पढ़ रहा है पर स्वतंत्र । उसे मैंने समझाया और कहा की लड़की को उसकी जिन्दगी जीने दो उसके पर मत काटो उड़ान भरने दो......।सुषमा से गले मिलते हुवे मैं सोचती रही .......... नारी बंदिशों में कब तक जीती रहेगी -- कभी माँ बाप ने बन्दिशों का संस्कार नाम दे दिया-- कभी सास ससुर ने परम्पराओं एवम अनुशासन के नाम पर जंजीरों में जकड़ दिया , पतिदेव ने अपनी इक्छाओं , सपनो को समर्पित करवफ़ा का नाम दिया , बच्चे उससे भी दो कदम आगे नई एवम पुरानी सोच का अन्तर बता दिया। मैं सोच में ठगी ठगी सी नारी को महसूस करती रही। क्या विडम्बना है , .... ! जिन्दगी हमारी ,पर हमारी हर साँस पर दूसरों का कब्जा और हमने इन्ही सांसों को जिन्दगी का नाम दे दिया .......... आखिर क्यों......क्यों....... 🌷उर्मिला सिंह

चेहरे की झुर्रियां......

मुफ्त में अनुभव जिन्दगी ने दिया नही 
पत्थरों की तरह घिस घिस के सिखाया है !!

चेहरी की झुर्रियाँ कहती जिसे दुनिया
जिम्मेदारियों की तपन से तप के पाया है !!

हौसला हार माना नही ,आज भी जवाँ है
तूफानों को हरा हौसलों ने जगह पाया है

गेसुओं में चमकती चाँदनी उम्र-ए खिताब नही
अनगिनित ख़्वाबों को जला कर के चमकाया है!!

                      🌷उर्मिला सिंह






 
 
 

Sunday, 6 September 2020

गुरु की महत्ता....

गुरु की महत्ता....
****0*****

मातृ  कोख से जब  बच्चे ने जन्म लिया
माता की  शिक्षा  का तब  से प्रारम्भ हुआ
प्रथम गुरु ,माता दुग्ध पान करना जिसने....
बच्चे को अपनी स्निग्ध ममता से सिखलाया ।।


प्रथम पाठशाला सबकी घर होती 
जहां संस्कारों  की शिक्षा  मिलती
बचपन की आधार शिला सुदृढ़  हो...
इसी लिए आदर सम्मान की घोटी देती।।


दूजे शिक्षक पाठशाला में मिलते
शिक्षा दे कर जीवन सुरभित करते
सर्वागीण विकास का मंत्र फूकते जीवन में...
जीवन के अंधेरों में प्रकाश बन राह दिखाते।।

स्वयम् से स्वयम का परिचय करवाते
आत्म विश्वास की ज्योति जला कर
जग में संघर्षों से लड़ना सीखलाते
बलिदान, त्याग का पाठ पढ़ा कर
देश पर मर मिटने का भाव जगाते।।

कर्म करे जो धर्म संगत,होता वही महान
गुरु देव की शिक्षा से मिलता है यह ज्ञान
 प्रकाश पुंज गुरु को नमन सदा करते...
 जिनका संचित ज्ञान हमे नित प्रेणना देते।

                  *****0*****
                     उर्मिला सिंह


Friday, 4 September 2020

गजल---हौसले की बात कर...

जिन्दगी  तूँ  हारने की न बात कर
अभी हौसले में दम है हौसले की बात कर।

चक्रवात उठे या तूफान डर के जीना क्या
हमें संघर्षों की आदत है संघर्षों की बात कर।

तिमिर आक्छादित हो भले ही गगन में
अवसान इसका भी होगा इंतज़ार की बात कर।

नाउम्मिदियों के सैलाब में तैरते पत्ते को देखतें हैं
आज में जीना आता है खुशनुमा आज की बात कर।

काफ़िला दर्द का चेहरे पे आके गुज़र जाता है
जब्त करते है मुस्कुराहटों से,खिलखिलाने की बात कर।

अवसादों और तन्हाइयों से उकताने की न बात कर
जीवन में होरहेे प्रहार को हिम्मत से झेलने की बात कर।।


              *******0*******
                                    उर्मिला सिंह



Sunday, 30 August 2020

गज़ल

वक्त का इंतज़ार कर वक्त गूँगा नही मौन होता है!
वक्त की बोली जब निकले पूरी ललकार से निकले!

रण में विजयी होना है गर लक्ष्य साध कर निकलें
बुलंद हौसलों में अपने  विजय की धार से निकलें!!

अभिमानी ताकत फ़रिश्तों को भी शैतान बनाती है
दिलों पर राज करना हो ,नम्रता के शृंगार से निकलें!

चिराग तूफ़ानों में जला सको तो राहों पे आगे बढ़ो
बचाना है गर गद्दारों से,तूफ़ान में पतवार  से निकलो! 


उसूलों की ज़मीन बंजर होगई है ज़माने में 
 नई पौध के वास्ते,उसूलों की बीज लेके निकलो!

           ।।।     उर्मिला सिंह
                  








Monday, 24 August 2020

बाढ़ की विभीषका दानव की तरह मुंह फैलाये जन जीवन को त्रस्त कर रही है।उस समय की मनःस्थिति को चित्रित करती हुई रचना.....

कहीं बारिष का कहर 
कहीं सूखे से त्रस्त जीवन
तेरी माया तूं ही जाने भगवन
कौन समझा ग़रीबी का सफऱ।।

झोपड़ी कच्चे मकान ढह गये
दाने-दाने को सब तरस रहे
हर सांस इस सैलाब में बह रही
नज़र आता नही किनारा कोई।।

उफ़नती नदिया गहराता संकट
दिल डूबता जाता है प्रति पल
कैसे बचाऊं बहती गाय की बछिया
सिर पर बैठी अपनी छोटी सी मुनिया।।

मुट्ठी भर चने सत्तू की पोटलीसाथ लाई हूँ
गहराते तिमिर में हर क्षण डूबती जा रही हूँ
सामने से बहती लाश किसी बच्चे की दिखी
सभी की सांस पल भर को थम सी गई.......।।


बेजान होगई है जिन्दगी सबकी
विस्मृति होगई है सावन कजली
बचे भी तो अन्न के दानों से महरूम हो जाएंगे
बह गईं खुशियां हजारों परिवार की
बच गई बदनसीबी ही बदनीसीबी सबकी।।
          *****0*****
         उर्मिला सिंग

Wednesday, 19 August 2020

फुटपाथ बिछौना है....

जहां फुटपाथ बिछोना,आसमां छत है
       वे जिन्दगी की क्या बात करे।

उम्र तमाम हुई ,तन में साँस अभी बाकी है
आंधी पानी ठंढ सहे ,खेल मौत का बाकी है
सूरज का भी गुस्सा झेले, अपनो  की उपेक्षा.....
हर मौसम ने उजाड़ा, औरों की ठोकर बाकी है।

जहां फुटपाथ बिछौना आसमां छत है
    वे जिन्दगी की क्या बात करे।

काश हमारे भी आँगन में,सूर्य मुखी खिलता
तन की थकन मिटाने को,कोई बिछौना होता
पांव के नीचे धरती सर पर  छत  अम्बर का.....
किस्मत में 'तूँ' सूखी रोटी नमक प्याज ही लिखता।

       जहां  पेट भूखे,सोने का आदी है
        वे  जिन्दगी की क्या बात करे।

यह दुनिया जिन्दी लाशों से बनी दुनियां है
जहाँ मौत का कुंआ,होती बदबूदार गलियां हैं
जहाँ भूख बिलबिलाती ,मौत ही एक दवा है
यहांअग्नि जरूरी नही,क्षुधा,अग्नि,से जलती चिता है।

    जहां सिकुड़ी हुई जिन्दगी सासे गिनती है
         वे सपनो की क्या बात करें।।
        

                      उर्मिला सिंह




Monday, 17 August 2020

जीवन क्या होता है.....

मर कर किसने देखा है जीवन क्या होता है
जीवन जी कर देखो जीवन गुलजार होता है।।

खिलता है फूल काटों में काटों की फिक्र नही करता
सबके  सुख -दुख में सदा भागीदार होता है।।

धूप -छाँव सुख-दुख जीवन-मरण एक दूसरे के पूरक हैं
इनसे डरना कैसा ये तो जीने की राहों का यार होता है।।

माना कि आदर्शो की राहोँ में दुश्वारियां बहुत हैं 
चल कर तो देखो जीवन संतुष्ठियों का भरमार होता है।।

देशभक्ति से बढ़कर धर्म नही,देश प्रेम से दूजा प्रेम नही
इस प्रेम में जो डूबा वह इस जन्म का अवतार होता है।।

                   उर्मिला सिंह










 

 
 




Friday, 14 August 2020

बड़ा नीक लागे हमार भारत देशवा.....

बड़ा नीक लागे ,हमार भारत देसवा...

गंगा बहत हैं , जमुना बहत हैं..
और  बहै सरयू क  निर्मल धारा....
बड़ा नीक लागै.....

सिरवा पे सोहेला मुकुट हिमालय...
अरे  पउवॉ पखारे हिन्द  सागरवा...
 बड़ा नीक लागै ....

भारत  देसवा क वीर  महतारी....
ओकरे  दुधवा में बहै देशभक्ति क ओजवा...
बडा नीक लागै ......

देशवा के खातिर आपन जिनगी लुटइलैं.....
मां भारती  खातिर सिरवा कटइलैं...
तिरंगा के खातिर हो गइलन कितने शहीदवा.....
बड़ा नीक लागै ....

अलग अलग  बोली , अलग अलग भाषा....
गीता , रामायण ,महाभारत पढै सब ....
अरे पंडित उच्चारें  पोथी पतरा और  वेदवा......
बड़ा नीक लागै , हमार भारत देशवा ......


छब्बीस जनवरी ,पन्द्रह अगस्तवा.....
लागेला हमके  सबसे नीक त्योहरवा...
तिरंगा फैलाई के गाइला जनगड़ मन...
कहीला  'जय भारत माता,जय भारत देशवा....
बड़ा नीक लागै ,हमार भारत देशवा.....

               ****0****                              

Friday, 7 August 2020

व्यथा के पन्नो पर......

व्यथा के पन्नो पर......

सदियों के बाद....
समझ में आई बात
व्यथा के पन्नों पर
किसने लिख दी रात।।

पत्थर की  दीवारों पे
किसने नाजुक फूल उकेरे
तन्हाई की भींगी रातों में
क्यों यादों के मोती चमके।।

कुछ लाल कनेर सरीखे
आशाओं  के  स्वप्न पले
व्यथित ह्रदय समझ न पाया
कब लहरों के संग बहे।।

उर की मौन व्यथा पन्नो ने समझा
मन के उद्गारों को शब्दों ने अर्थ दिया
मन्द मन्द अधरों की मुस्कानों ने
मुझसे जीवन का सत्य कहा।
           *****0****
                      उर्मिला सिंह

इंसानियत का उजाला हो तो बेहतर है.....

दिल की गलियों में इंसानियत का उजाला हो तो बेहतर है
करुणा,प्रेम रस से ह्रदय सिंचित हो तो बेहतर है।

कलह से भरा घर भला खुशियों से आबाद कहाँ होता है
रिश्तों में खुसबू-ए वफ़ा त्याग की बुनियाद हो तो बेहतर है।

किसी के अवगुणों की चर्चा में वक्त जाया नही करते
अपनी कमियों पर  भी एक नजर डालो तो बेहतर है।

ख्वाइशों के चक्रव्यूह में उलझना नादानी के सिवा कुछ नही
सामर्थ देख कर अपनी गठरी बाधते तो बेहतर है।

गुज़रे वक्त के दामन पर लिखी कहानियां राहें सुझाती हैं
सम्भल कर चलते ,गद्दार धोखे बाजों से तो बेहतर है।।

खामोशियाँ भी तन्हाइयों से बहुत कुछ बता जाती हैं
बस समझने वाला प्यारा सा एक दिल हो तो बेहतर है।।

               उर्मिला सिंह



Thursday, 6 August 2020

जिह्वा पर प्रभु नाम रहे.......

जिह्वा पर प्रभु  नाम  रहें  , नैनो में  रघुनाथ
सिय की छवि ह्रद में बसे, लखन हनु रहें साथ।।

सत्कर्मों में मन लिप्त रहे,जीवन का हो ध्येय
दीन  दुखी के  कष्ट हरें, कभी न सोचे हेय।। 

प्रीत डोर ऐसी बन्धे ,जैसे चाँद चकोर
दूर से निरखत रहें,प्रीत करें पुरजोर।।

मिट्टी  चन्दन है  देश की , माथे  लेउ  लगाय
देश हित प्राण उत्सर्ग हो,जन्म सफल होजाय।।

सुख दुख खेल जीवन का,फँसा हुआ हर कोय
कर्म क्षेत्र यहीं तुम्हारा ,बिन कर्म मुक्ति ना होय ।।      
                   *****0*****
                                        उर्मिला सिंह          


Tuesday, 4 August 2020

पलके बिछी हैं राहों में,आज सिया राम आएंगे.....

 सजी है अयोध्या आज , राजा राम आएंगे...
 हजारों दीप जगमगाएंगे , राजा राम आएंगे !

 अयोध्या  के कण - कण में  राम बसते हैं...
 ह्रदय में सिया राम करुना निधान बसतें है !
 पर्ण कुटी के बनवासी,सिंहासन पर सुशोभित होंगे..
 सिया राम की जय कार से,आनन्दित नर नारी होंगे !!
     
  हजारों दीप जगमगायेंगे , राजा राम आएंगे...

 बन-बागों में बसन्त बिगरे,झालर बन पुष्प बिहसेगे ..
आस्थाओं की इटों से , शिलान्यास का पूजन करेंगे !
 कार सेवकों के उत्सर्ग की गाथाएं ,हर ईंट सुनाएगा.
 जीवन मुल्यों का समावेश कर राम राज्य आएगा।।

  हजारों दीप जगमगाएंगे , राजा राम आएंगे......
      
 मर्यादा की बुनियाद ,विश्वासों की  सीमेंट लगेगी..
 राम नाम की महिमा का पत्थर-पत्थर उद्घोष करेगें!
 शिल्पकारों की कारीगरी हमारी संस्कृति उकेरेगे...
  विश्व को मर्यादापुरुषोत्तम की अतुल गाथा बताएंगे!!
       
  हजारों दीप जगमगाएंगे , राजा राम आएंगे....

  सरयू का यह नीर नहीं , भावों का उद्गम सागर है..
  झूमती हर्षित,सरयू की लहरे,श्री राम आगमन है!
  वर्षो की तपस्या साकार हुई, आज श्रीराम आएंगे....
  सिया लखन समेत रघुनन्दन,नैन निहारी अघाएँगे

   हजारो दीप जगमगाएंगे ,आज राजा रामआएंगे....
   राहों में पलके बिछाएं हैं , आज सिया राम आएंगे!!

                                        उर्मिला सिंह
       
       
       
        
       
      
    
        
        
      
      
      
     
     

Sunday, 2 August 2020

स्वासों के रहते तुम अपना पद चिन्ह बना दो....

स्वासों के रहते तुम अपना पद चिह्न बना दो....

 कर के कुछ ऐसा जग में दिखला दो......
 हर दिल में तुम अपनी पहचान बना लो
ओरों के पदचिन्हों पर चलने के आदी हो.....
स्वासों के रहते ही तुम अपना पद चिन्ह बना दो।।
 
 रेत के टीले सा कर्म नही हो .....
 जो आज रहे कल  ढ़ह जाए......
 खुशबू उसकी ऐसी हो
 जन मानस में रच बस जाए
 उस खुसबू से पद चिन्ह बनेगा तेरा
 वर्षों तक जग याद रखेगा उसको।।
 
  स्वासों के रहते तुम अपना पद चिन्ह बना दो।।

                        उर्मिला सिंह
  


 


Friday, 31 July 2020

मित्रता....

कुछ दिनों पहले मैने एक
मुरझाए पौधे को देखा,
उसे देखती रही ...
बिना  पलक झपकाए ।
ऐसा लगा मानो वो मुझसे ...
कुछ कहना चाह रहा हो ,
कुछ पल यूँ ही बैठी रही...
फिर लगा धीमी-धीमी....
आवाज आरही है ।
मैंने उसे पहले पानी पिलाया...
उसमें खाद पानी ...
नित्य के आदत में शामिल होगया।
देखते देखते पौधे के चेहरे पर..
हरियाली छा गई ,
मैं नित्य उससे बाते करती ...
वो  खुश हो जाता  ।
एक दिन उसने मुझसे कहा.....
"मित्र बड़ा होकर मैं....
अपनी शाख़ों पर  पुष्प खिलाउँगा...
तुम्हारे घर को.....
खुशबू से भर दूँगा" !
रंग बिरंगी तितलियों से...
 तुम दोस्ती करना....
शाख़ों पर चिड़ियों का ....
कलरव गान तुम्हे ...
नित जगायेगा" ....
मैं हँस पडी....!!
एक दिन सो कर उठी तो....
खिड़की के पास से...
हवाके झोंको से मीठी-मीठी
खुसबू आरही थी.....।
में आँख मलते - मलते
अपने उस प्यारे ...
मित्र के पास पहुची....
मैंने उससे हँस के कहा...
"मित्र तुमने वादा पूरा कर दिया" !!
 उसने खुशी से टहनियां हिलाया...
 मुस्कुरा कर बोला.....
" जो वादा न निभाये ...
 वो दोस्त कैसा..!
 जो रहम दिल न हो
  वो इंसान कैसा...."!!

         उर्मिला सिंह



Monday, 27 July 2020

कभी सड़को पे हंगामा.......J

कभी सड़कों पे हंगामा कहीं नफरत की आवाजे,
तुझी से पूछती भगवन इंसानी संस्कृति क्या है!

 
किसी के टूटते ख्वाब कोई सिसकीयों को रोकता
जो आदी है उजालों के उन्हें मालूम नही तीरगी क्या है!

दौलत,ओढ़न दौलत,बिछावन दौलत जिन्दगी जिसकी ,
वो क्या जाने भूखे पेट  सोने वालों की बेबसी क्या है!!

सीना ठोक कर जो देश भक्त होने का अभिमान करते 
वही दुश्मनों का गुणगान करते,बताओ मजबूरी क्या है!!

तोहमत ही तोहमत लगाते एक दूसरे पर हमेशा
कभी आईने से पूछो तुम्हारे चेहरे की सच्चाई क्या है!!

                   उर्मिला सिंह







Friday, 24 July 2020

बारिष की फुहारें.... बचपन की यादें...

बारिष का मौसम 
कागज की नाव,
ढूढू कहाँ बचपन ,
वो बचपन का गाँव!

सपने  हुवे जवाँ 
बचपन भूलता गया,
गुड़ियों  का संग  भी 
 छूटता गया!

दुनियाँ के झमेले में 
ऐसे गुम हुवे
बस  सफ़रे जिन्दगी 
तय करते रहे!

देख बूंदों की झड़ी
यादों में कोंध जाती
पेड़ की शाख़ों पर 
पड़ी झूले की कड़ी

मन करता बच्ची बन 
बारिष में भिगूँ......
समझाए कोई मुझको
मन को कैसे मैं रोकूँ!

भीगना गिर के उठना
छपाक-छपाक खेलना
भुलाये नही भूलती ...
वो मीठी फुहारें
सतरंगी बहारे
वो कागज की कश्ती...
वो गलियों की नदिया।।
 
   उर्मिला सिंह
 

           

               
               
               
               
               



















Tuesday, 21 July 2020

सावन महीने को शिव जी की महिमा से जोड़ कर याद किया जाता है, त्योहारों की शुरुवात इसी माह से होती है ,कृषक की खुशियां बारिष पर निर्भर होती हैं तो बहनों की खुशियां भाई को राखी बांध कर मिलती है। सावन माह आनन्द का महीना है।

काले मेघा घिर-घिर आये...
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काले मेघा घिर-घिर आये.....
 बिन बरसे मत जाना
 रात है काली  दिल में उदासी 
 नैना बरसे मत जाना।।

सोंधी मिट्टी इत्र सम महके 
तेरे आने से खुशिया बरसे
ताल ,तलैयों के दिन फिर आये
नदिया हर्षे मत जाना।।

बाग बगीचा इतराये 
डाली डाली झूमें,
रंगबिरंगी तितली घूमें
लहराती मधुर बयार मेघा मत जाना।।

अधखिली कलियां खिली
फूलों की मुस्काने प्रीत भरी
मनचले भ्रमर बागों में फेरी डालें
गोरी को नईहर की याद सताए
बिरना नही आये मेघ मत जाना।।

खेतों में रोपे बीज धान के
नयन प्रतीक्षा रत तेरे आगमन के
नवांकुर उगने को आतुर
सपने पूरे होने को व्याकुल
तुझे देख अन्नदाता प्रमुदित होजाये
कृषकों के जीवन आधार मेघा मत जाना।।

काले मेघा घिर-घिर आये ......
बिन बरसे मत जाना........।।

           .          उर्मिला सिंह
          

              


 



Monday, 20 July 2020

सावन गीत.....



सावन के गीत ,गाँव में सावनी कजरी  पेड़ों की डाली ,झूले सभी करौना की मार से पीडित उदास खड़े एक दूसरों को गमगीन नजरों से देख रहें हैं। 

इन्ही भावों के साथ एक छोटी रचना प्रस्तुत है.......

गरजत बरसत बदरा आये             
मेघ मल्हार ....सुनाये
सनन -सनन पवन बहे
रिस रिस जिया रिसाये
कल-कल नदिया धुन छेड़े
सावन मधुर-मधुर गाये।।

बैरी करौना  दुश्मन हो गई
सूनी हो गई झूले की डाली
कजली ,तीज सूनी भई
त्योहारों पर छाई उदासी
मन ही मन सोच रहे नर नारी
जीवन में कैसी विषम घड़ी आई।।
  🌳🌳☘️☘️🌿🌿
                       उर्मिला सिंह

Sunday, 19 July 2020

संदेश......

नित्य सबेरे लिया करो, परमात्मा का नाम
कष्ट हरेंगे प्रभु तम्हारे ,मत भूलो तुम इंसान।।

पूजा पाठ से ज्यादा ,उत्तम होता शुभ कर्म
संदेश यही है धर्म का ,यही है गीता मर्म!!

मीठी  बोली  बोल के ,दिल  सबका लो जीत
चन्द दिनो के पाहुन हो, कर लो सबसे प्रीत !!

ये जगत नाटक मंच है,हम सब हैं अदाकार 
स्वांग तेरा देख रही, ऊपर से सरकार।।
                उर्मिला सिंह

Saturday, 18 July 2020

याचना.......

प्रभु तेरा  साथ  चाहिये 
जीवन की सौगात चाहिए
हंसते हंसते दम निकले
ऐसा तेरा अनुराग चाहिए।।

कलुषता मिटा सके इंसान की
ऐसा मुझे वरदान चाहिए।
गंगा सा पावन मन हो सके
ऐसा निर्मल संस्कार चाहिए।।

पत्थर दिल भी पिघला सके
वाणी में वो मिठास चाहिए
संवेदनाओं का सागर हो ह्रदय
अधरों पर यही विश्वास चाहिये

 हर देहरी पर प्रीत दीपक जले
 सुचिता,सज्ञान की गंगा बहे
 जीवन से 'मैं'शब्द मिटा सकूँ
  ऐसा अनुपम भाव चाहिए।।

   देशभक्ति से लबरेज हर इंसान हो
   ईर्ष्या द्वेष का ह्रदय से अवसान हो
   बड़े संघर्षों से पाई है ये आजादी.....
  देश का मस्तक सर्वदा देदीप्यमान चाहिए

                               उर्मिला सिंह
   
 
 




Friday, 17 July 2020

गांव की ओर चलते हैं......

मन ने कहा.....

चलो कुछ दिन  के लिये
गाँव की ओर चलते हैं...
जंहा आज भी नीम के  नीचे
एक खटिया पड़ी होगी !
जहाँ सूरज भोर में ...
शाख़ों के मध्य  से...
झांकता होगा  !
जहां किरणे पत्तियों की चलनी से
छन- छन के पड़ेगी तन-मन  पर !
मीठी - मीठी भोर ....
मीठी गुड़ की चाय....

चलो कुछ दिन  के  लिए...
गांव की ओर चलतें हैं।

शाम होते ही ..
बदल जाता है माहौल..
थके निढाल से बापू..
जहां आकर खटिया पर से
गुड़ और एक लोटे पानी की
चाह रखते  हैं !
जहाँ सूरज के लुप्त होते ही...
चाँद झांकने लगता है !

चलो कुछ दिन के लिए ..
गाँव की ओर चलते हैं !

आज भी सभी कुछ वैसा ही होगा
कुछ बदला होगा तो सड़कें,
पनघट की जगह -
हैंडपम्प ने ले लिया होगा !
पगडंडियाँ देती नही होंगी दिखाई
वही राम - राम भैया कहना...
सभी कुछ वैसा ही होगा !

चलो कुछ दिन  के लिये...
गांव की ओर चलते हैं !

हर रिश्ते जी भर के जीतें हैं...
जहाँ रिश्तों में जीवन होता है..
जहाँ  मिट्टी में कर्म की खुशबू-
आशा, विश्वास ,आस्था का---
अद्भुत संयोग होता है !
जहां प्राचीन संस्कृति की 
आज भी झलक मिलती है !

चलो कुछ दिन के लिये...
गांव की ओर चलते हैं।।

       ***0***
                 🌷उर्मिला सिंह

Thursday, 16 July 2020

चाटुकारिता .......युगों युगों से एक ऐसी फलती फूलती प्रजाति है जो शदियों से रही है,इस प्रजाति को ' चाटुकार ' शब्द के नाम से जाना जाता है...ये प्रजाति हर जगह पाई जाती है चाहे राजनीति का गलियारा हो चाहे राजा महाराजा का दरबार हो या कारपोरेट का कार्यालय हो... प्रसंशा अच्छी बात है परन्तु गलत बात की प्रसंशा चाटुकारिता ही कही जाएगी ,इस बषय पर प्रस्तुत है एक छोटी से रचना :-

चाटुकारिता.....

चाटुकारिता की कला भी होती क्या कमाल है
सदियों से चाटुकार इस फन के उस्ताद होते हैं 
नख से शिख,तलवे से दिमाग तक चाटते रहतेहैं
नेताओं की कदम बोसी से  मालामाल होते हैं।।

चाटुकारों की न कोई धर्म न कोई जात होती है
अधरों पर मीठी मुस्कान आंखों में चाल होती है
जीहुजूरी में संलग्ननता ही इनका धर्म ईमान होता है
चापलूसी की रोटी में ही इन्हें गर्व का आभास होता है।।

चलते हैं सीना तान के बाते बड़बोली करते हैं ये
चाटुकारिता के दम पर ही इनकी शान होती है
माखन की टिक्की सी फिसलती इनकी ज़ुबान होती है
बड़े दमदार नेताओं के सिपाहसालार होतें हैं ये।।

चाटुकारिता भी जरूरी हो गई आज के परिवेश में
राजनीति से ऑफिस तक ग्रसित सभी इस रोग से
कौन सच्चा कौन झूठा हर चेहरे पर झीना आवरण है
उठा कर तो देखो भीतर छुपा इंसानियत का दुश्मन है।।

                         उर्मिला सिंह
                  






















                              
                                
                       





श्रवण माह का महीना अतुल्य है, श्रवण माह का विशेष महत्व होता है।एक तरह से कहा जाय तो सावन माह शिव जी का महीना कहा जाय तो अतिशयोक्ति नही होगी।


शिव जी की स्तुति
****************
नर कपाल कर ,मुण्डमाल गल 
,व्याघ्र चर्म तन साजे
अनन्त अखण्ड ,भोले भंडारी ,
भेद न तेरा कोई जाने
जय शिव शंकर जय गंगाधर 
जय अविनाशी सुखकारी
जय रामेश्वर ,जय नागेश्वर
 हे देवों के देव हे महेश त्रिपुरारी  
 हे विश्वनाथ!काशी पति 
 भक्तिदान दो मम ह्रदय निवासी।
जय शशि शेखर जय डमरूधर
 जयमृत्यंजय अविकारी
प्रेम भक्ति से तन मन पावन,
चित्त करो पूर्ण प्रकाशित
पूर्ण ज्ञान पूर्ण भक्ति हो 
निशदिन चरणों में  तेरे अविनाशी
ॐ नमः शिवाय,हर हर महादेव धुन गूँजे
विह्वल मन से धरा पुकारे
 हे देवो के देव महादेव कल्याणकारी।।
                                   उर्मिला सिंह
     

Tuesday, 14 July 2020

सावन की कजरी.....

अरे रामा बुंदिया गिरै चहुंओर..
भींजत मोरि अंगिया  रे हरी..
          छैल छबीला बदरा...गरजे
          तिरछी नजरिया बिजुरी चमके
          
अरे रामा  पपीहा बोले सारी रात
बदरिया कारी रे हरी....।।

        झूम रही फूलन की डाली..
        बुंदिया बिखरे पाती-पाती..
          
अरे रमा रिमझिम बरसे मतवाली
बदरिया कारी रे हरी ........।।

             नाचत मोर पंख फैलाये...
             सारी  रात कोयलिया गाये...
             
 अरे रामा मनवाँ लहर लहराई 
 बदरिया करी  रे हरी......।।
 
               ताल तलैया लेत अगड़ाई...
               धानी चुनरिया धरा मुस्काई...
               
  अरे रामा सूझे न साँझ,भिनसारी
  बदरिया कारी रे हरी .......।।

अरे रामा बुंदिया गिरे चहुंओर 
भीजैे मोरी सारी रे हरी......।।

                    उर्मिला सिंह
                 


        
               


          

Saturday, 11 July 2020

अभिशाप....

प्रकृत से छेड़छाड़ जितना 
मानव करता गया
उतना ही जीवन उसका 
अभिशापित होता गया ।

निर्मल गंगा मैली हुई 
हवाओं में विष घुलता गया
पराजित होने लगा इंसान
जब से मनमानी करने लगा ।

ऊँची आकांक्षाओं के वशीभूत
धरती से वृक्ष कटने लगा
ये कैसे दिन आगये .....
तपती दोपहरी में इंसान
छाया को तरसने लगा।

तम जरूरत से जियादा 
अँधियारा दिखा रहा
प्रकृति के अभिशाप का 
असर गहरा दिख रहा
सूरज भी न जानें क्यों .....
अब साँवला नजर आने लगा ।

निर्दयता का तांडव 
हो रहा चहुं ओर हैं
प्रजातन्त्र मुँह छुपाये रो रहा
फिर भी आश की डाली 
मुरझाई नही.....
नव विहान की किरण-का  
प्रतीक्षित  संसार  है ।।
   ***0***
                  उर्मिला सिंह





Sunday, 5 July 2020

विकल मन पूछता है......

विकल मन पूछता है......

कहाँ गए पहले  से दिन
कहाँ गई वो शामें
कहां गए वो हसीं नज़ारे
क्यों लगते गमगीन चाँद सितारे।।

विकल मन पूछता है......

दिखती हैं बस सुनी सड़कें
होठों पर हैं सबके तालें
मायूसी ही मायूसी का आलम
क्यों वक्त के कैदी होगये हम।

विकल मन पूछता है.......

सखियों के संग की मस्ती
बातों में मस्ती की खुमारी
खो गए कहीं एक दूसरे के बिन
अब तो खाली खाली लगते दिन।।

विकल मन पूछता है.......

यूँ तो बाते होती रहती हैं 
वाट्सप पर अंगुलिया चलती  हैं
शब्द शब्द आपस में बाते करते हैं
हम सब अहसासों में खोये रहतें हैं

विकल मन पूछता है.......
   ******0******


       उर्मिला सिंह


Saturday, 4 July 2020

सरहद.......

देश की .सरहद...पावन धाम है
उसके कण कण में 
भासितशहीदों की सांस है।।
 देश प्रेम के अमृत का 
 जब योद्धाओं ने पान किया
  सारे रिश्ते बौने होगये
 बन्दे मातरम बस याद रहा।।
 सरहद की रक्षा सैनिक का 
 एक मात्र ध्येय बना
  पावस बसन्त  पतझड़ या हो ग्रीष्म
  सब उनके लिए समान हुवा।।
जीवन के सुख दुख सरहद से जुड़ जातें हैं
  रातों की नीद दिल का चैन
  सभी कुर्बान देश के लिए कर जातें हैं।।
               ****0****
                      उर्मिला सिंह

   
  

वीर रस की रचना...छेड़ो मत शेरों को .......

छेड़ो मत शेरो को दहाड़ सुन कर मर जाओगे ,
यहां शौर्य से अग्नि बरसती है भष्मीभूत हो जाओगे।
मित्र बन कर भारत आये कुदृष्टि डालते पावन धरती पर,
धोखेबाजी नस नस में तेरे पैरों से कुचले जाओगे।।

 बड़बोली बन्द करो कीड़े मकोड़े खाने वालों,
 मानवता के दुश्मन तुम करोंना  फैलाने वालों।
 विस्तारवाद की नीति तुम्हारी तुमको ही ले डूबेगी,
 गलवान हमारा है हमारा रहेगा नापाक इरादे वालों।।

  
  देश की सम्प्रभुता से समझौता कायर  करते हैं,
  हिन्द के वासी राणा के वंसज जान न्योछावर करते हैं।
  दोस्तो के दोस्त हैं हम दुश्मन के काल बन जाते है,
 आँख दिखाने वालों की आंख निकाला लिया करतें हैं।।
  
 चीन तूने!आरम्भ देखा है प्रचण्ड वेग अभी बाकी है,
 प्रबल वेग से खनेकेगी जब तलवारे धङकन रुक जाएगी।
 धरती से अम्बर तक गूँजेगा जब हर-हर महादेव का नारा,
 तेरे लहू की प्यासी,माँ भारती की प्यास बुझाई जाएगी।।
                             
                             ****0****
                                   उर्मिला सिंह
                                               
 
  
   
   
   

  






 
 
 



  

 
 


 




Wednesday, 1 July 2020

जिंदगी से दूर होने लगते हैं......

जिन्दगी से हम दूर होने लगते ........ जब.......

हम  अपनी  आदतों के  वश में  हो जातें हैं।
जिन्दगी में कुछ नयापन शामिल नहीं  करते
भावनाओं को समझ कर भी अनजान होतें हैं।
या  स्वाभिमान को कुचलता देखते रहते हैं।।

तब जिन्दगी. से हम दूर होने लगते........हैं ।


जब किताबों का पढ़ना बन्द होने लगता है ।
जब ख्वाबों का कारवां दम तोड़ने लगता है ।
मन की आवाजों की गूंज जब देती नही सुनाई,
जब  खुदबखुद  आंखे नम होने लगती है ।।

तब जिन्दगी से हम दूर होने लगते........ हैं ।

जीवन रंग विहीन  हो स्वयम से जब दूर होने लगताहै।  
अपने काम से जब मन स्वयम असन्तुष्ट रहने लगता है।
मन की दशा जब कागज पर उकेरे मोर सी होती,
जो बरसात तो देखता पर पँख फैला नाच नहीं सकता ।।

तब जिन्दगी से हम दूर होने लगते हैं......... ।

                   🌷उर्मिला सिंह 












Monday, 29 June 2020

बिखरे मोती....

बिखरे मोती......

बिखरे मोती.......

अंधेरे को रोशनी में नफ़रत को प्यार में ढाल कर तो देखो;
क्रोध में शीतलता ,भक्ति से ज्ञान जरा अर्जित 
करके तो देखो;
 
दृढ़ता और शालीनता के बृक्ष की छाओं में
 बैठ कर तो देखो;
 सफलता कदमो को चूमेंगी धैर्य की चादर पलभर  ओढ़ कर तो देखो;

वाणी में मधुरता चेहरे पर खुशमिजाजी का 
भाव लाकर तो देखो;
जिन्दगी कभी दूसरों के लिये अर्पित कर के तो देखो ;

अभिमान को त्याग, कभी झुक कर  ह्रदय में सकूँन। खोजो;
जिन्दगी का मोती  जिंदगी के सागर में  ढूढ कर तो देखो।

                           #उर्मिल

Saturday, 27 June 2020

कुछ मन के भाव पन्नो पर बिखर गए......

सारा जग मधुबन लगता है।
  जब प्यार तुम्हारा मिलता है।
  बिना प्यार कुवारी लगती बहुरिया,
  मन पीड़ा का सागर लगता है।।
      *****0****

  अपनी वाणी प्रेम की वाणी,
  जब जग में हो जाए सबकी
  तब इंसा का दिल प्रेम सभा हो जाए   
  दर्द पराया भी अपना हो जाए।।
          *****0*****

   नयनों में स्वप्न सजे हाँथों में मेहदी रचे।
   स्वप्न न कोई हो अधूरे ऐसा कोई मीत बने।।
   जब नयन शर्मीले झुक- झुक जाए......
   तब मुस्काते अधरों पर प्यार के फूल खिले।।
                 ****0*****

   मन को जाने कैसा रोग  लगा  क्या बतलाऊँ।
   बिन उजास के उजहास लगे खुद से शरमाऊं।।
   जेठ लगे सावन भादों जैसे धूप लगे सांझ बसन्ती।
   पाती प्रिय की पल-पल ह्रदय लगाऊँ मुस्काउं।।
                 *****0*****

    सावन के झूलों को तरसे पेड़ों की डाली।
    द्वार  बुहारे  आ -आ कर के पुरवाई।।
    कब पायल छनके कब उड़े चुनरिया धानी,
    गालों पर हाथ रखे सोचे गोरी मतवाली।।
                    *****0*****
                          उर्मिला सिंह

   
   
  
   
   
    
    
   
       

Friday, 26 June 2020

गुलदस्ता.....

दुनियां की इन संकरी गलियों से बेदाग गुज़र जाते तो-
अच्छा था,
नेताओं के, अल्फाजों ,लहजों में सलीका आ जाये तो-
अच्छा था।।

ऐ दिल ! मुश्किल है बहुत  जीना ,नफ़रत की ताकत क्षिण होती जाती है,
कौन है अपना कौन पराया दिल बिन समझे रह जाये तो- अच्छा था।।

ख़ामोश निगाहें खामोश हो तुम, खामोशी भी कुछ कहने को मचलती,
इश्क़ की दरिया  में डूब के दिल निकल जाये तो -अच्छा था।।

काँच की कतरनं जैसी है पूरी खुदाई ,कौन करे जख्मों की निगरानी,
जमाने के हर दर्द को हंस -हस के ये दिल सह जाये तो-
अच्छा था।।

लहरों पे सवार जिन्दगी यूँ ही पल-पल गुज़रती जाती है 
आवाज किनारों से देकर के कोई बुला ले तो -अच्छा
 था।
                   ****0****0****
                                    उर्मिला सिंह



Thursday, 25 June 2020

सपना बड़ा था रात छोटी होगई.....

सपना बड़ा था रात छोटी पड़ गई।
ख्वाब हकीकत में बदलते बदलते रह गया।।

कांटे सूख कर ही टूटते हैं।
फूल क्यो खुश होकर बिखरते हैं?

सच्चाई पर चलने वालों को क्यो लोग समझते नही।
झूठ फरेब करने वाले क्यों सीना ठोंक कर चलते हैं?

काश कभी हसीन ख्वाब मेरे रूबरू होते।
प्रभाती किरणों की तरह मुझसे मिल लिए होते।।

उम्मीद कभी तुम भी ऑ कर पीठ थपथपाती।
तसल्ली की पंखुरियों से दामन महका जाती।।

            *****0*****0*****

                     उर्मिला सिंह

 

Monday, 22 June 2020

बहुत दिनों से रोये नही हम........

बहुत  दिनों से रोये नही ,क्या पत्थर के होगये हम
लाखों सदमे हजारों गम फिर भी होती नही पलके नम।।

इल्जाम लगें हैं  बहुत पर किस-किस को समझाएं हम
इल्जामों की बस्ती में एहसास को बारहा तरसे हम।।

आंसुओं को मोती कहती है ये दुनिया, जाने- ज़िगर
अश्कों के मोती पलकों के साये में छुपाये रखते हम।।
 
जितना खुलते हैं उतनी गिरह पड़ती जाती बेवजह
अब तो ये आलम है ख़ुद से बात करने सेें कतराते हम।।

यादें वादों की मृगतृष्णा के जाल में फंसे भटकते रहे हम जीवन का शाश्वत सत्य समझ सारी उम्र रहे जीते हम।।

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                                                      उर्मिला सिंह,



 


Saturday, 20 June 2020

अनवरत प्रतीक्षा.....

प्रतीक्षा के सन्नाटे में.....
आगमन की गुंजित आहटें
सुनने को तरसते कर्ण
चौकाती पल पल.....
उम्मीदों की किरण
पर तुम न आये.....

पिता की वात्सल्य की पुकारें
मां की ममता की डोर .....
समय के साथ कमजोर पड़ती गई
प्रतीक्षा की सारे आशाएं
दीवारों से टकरा कर जख्मी हो गए
पर तुम न आये.....

आज खण्डहर में परिवर्तित घर.....से
रात के सन्नाटे में ......
बेटे के पैरों की आहट सुनने को.....
 दर्द से कराहती एक आवाज .....
 गूंजती है.......
 बिलखती मां के आँसूं 
 आखिरी सांस तक पूछती रही.....
 पर तुम न आये.......
  *****0*****
              उर्मिला सिंह
 




Thursday, 18 June 2020

ह्रदय में जल रही ज्वाला......

आंखों से निकलती चिंगारियां..ह्रदय में जल रही ज्वाला,
 भारत मां के सपूत तुम्हारा फन कुचलने के लिए तैय्यार हैं।

गरजते शेर के सामने,अपनी हस्ती मिटाने चीन तुम आगये 
भारत मां के सपूत ,तेरी अर्थी बिछाने के लिए तैय्यार हैं।। 
                
ओ फरेबी !गलवन से आंखे हटा लेह लद्दाख  हमारा है।
भारत तेरी दम्भ की शिला को गलाने के लिए तैय्यार है।। 

कमतर समझने की भूल मत करना ये आज का भारत है
भारत का कणकण तुम बौनो को धूल चटाने के लिए तैय्यार है।।

यहां की मिट्टी राणा प्रताप,पृथ्वीराज की कहती कहानी है
देश की रक्षा हेतु देशवासी जान हथेली पर लिये तैय्यार है।।

बता देंगे हिन्द के सिपाही कि आग से खेलोगे तो फ़ना होंगे
ऊँची पहाड़ियों  खून से रंगोली बनाने के लिए तैय्यार हैं।।
                  *****0****0*****

                      जै भारत जै हिन्द       
                      
                                उर्मिला सिंह                                  
                   

Tuesday, 16 June 2020

चमकते चाँद तारे हमारे थे.......

बचपन में चमकते चाँद तारे हमारे थे !
महकते फूल, तितिलियों  के नज़ारे हमारे थे!!

रूठना मनाना रो के गले लग जाते थे हम!
ऐसा था वो जमाना, ऐसे  दोस्त हमारे थे!!

जरूरते कम थी प्यार की धूप ज्यादा !
खुशियों से चहकते हरपल चेहरे हमारे थे!!

बेफ़िक्र  सा जीवन  बस्ते का बोझ कन्धे पर!
पीछे छोड़ आये जो मधुरिम जीवन हमारे थे!!

मंजर धुंधले होगये स्वार्थ की कश्ती पर बैठें!
खो गया, खो खो, कबद्दी  खेल जो हमारे थे!!

मशीन बन गई जिन्दगी ख़्वाइशों की दौड में!
धरोहर बन गये बीते जमाने जो कभी हमारे थे!!
                   *****0*****
                       उर्मिला सिंह

Friday, 12 June 2020

कुछ न कहिये ज़नाब स्वतन्त्र हैं हम.....

कुछ न कहिये जनाब  स्वतंत्र हैं  - हम........ !
     
       बोलने की आजादी है --तो
       नफ़रत फैलाने की स्वतन्त्रता---- भी
       लिखने पर कोई रोक टोक नही --तो
       शब्दों की गरिमा भी समाप्ति की.....
       देहरी पर सांसे गिनती दम तोड़ रही है.......
       
       कुछ न कहिये जनाब  स्वतन्त्र हैं --हम........!

        बच्चे हैं तो क्या हुआ, स्वतंत्र हैं --हम
        मां बाप का कहना क्यों माने.....
        अपनी मर्जी के मालिक हैं -- हम
        हमें पालना जिम्मेदारी है उनकी...
        आखिर बच्चे तो उनके ही हैं --हम।

        कुछ न कहिये ज़नाब स्वतन्त्र हैं --हम.......!
        
       गुरु शिष्य का नाता पुस्तकों में होता है...
       आदर भाव तो बस सिक्कों से होता है।
       भावी समाज का निर्माण हमसे होता है...
       संसद से समाज तक  स्वतन्त्रता का परचम....
       लहराते  धर्म नीति की धज्जिया उडातें ...
       स्वतन्त्र  भारत के स्वतन्त्र नागरिक हैं --हम !
       
       कुछ न कहिये ज़नाब स्वतन्त्र हैं-- हम......!

      त्रस्त सभी इस स्वतन्त्रता से....
       पर आवाज उठाये कौन....!
      स्वतन्त्रता को सीमित करने की ....
      नकेल पहनाए कौन.....!!
                      
                 ****0****
                                       उर्मिला सिंह
      


      
    
   
        
        
                                  
        

           

Wednesday, 10 June 2020

शब्द जब धार बनाते हैं...... तब कविता कविता कहलाती है।

प्रातः नमन......

मन में दहकते जब शोले हों   
भाओं से टकराते जब मेले हों                                
चिनगारी बन शब्दों से निकल,
 पन्नो पे उतरने  लग जाती है ;
 तब कविता- कविता कहलाती है !

जब मन की पीड़ा  चुभने लगती है ,
जब  तन्हाई  ही  तन्हाई  होती   है ,
जब शब्दो  का  सम्बल  ले  कर के ,
मन  की  गांठे  खुलने  लगती   हैं ;
तब कविता - कविता कहलाती है !

जब भूखा - नंगा बचपन भीख मांगता है ,
चौराहो पर नारी अस्मत लूटी जाती है,
 कानून महज मजाक  बन  रहजाता  है ,
 आँखों से टपकते विद्रोह जब शब्द बनाते है ;
 तब कविता - कविता ....... कहलाती  है  !

राजनीती में जब धर्म-जाति को बाटा जाता है
सिंहासन के आगे जब देश गौड़ हो जाता  है ,
युवा जहाँ ख्वाबों की लाश लिये फिरते हैं ,
उनकी आहों से जब शब्द  ......धार बनातेहै,
तब  कविता - कविता ...... कहलाती  है ।
                     *********
                   
                       🌷उर्मिला सिंह

Friday, 5 June 2020

इंसानियत......

पशुता के झंझावत में दुर्बल होती गाँधी, बुद्ध,की बोली है
कदम-कदम पर लगती यहां अब इंसानियत की बोली है।

संवेदनाओं का सागर सूख गया दया धर्म दफ़्न हुवा
गली,चौराहों पर दिखते अमानवीय इंसानो की टोली है।

जीवन संवेदन हीन हुवा मानवता का नमो निशान मिटा
तृष्णा कैदी मानव,जला रहा प्रेम दया करुणा की होली है

इंसानियत हैवानियत में बदली, क्रूरता का हो रहा तांडव
भावोंं में दुर्भावना विकसित,ये कैसी विषैली हवा चलीहै।

खो रहा जीवन संगीत अनुभव,संकल्प ,दिशा हीन हुए
बर्बरता के ठहाके,सिसक रही इन्सानियत की डोली है।
                 ,*****0*****0*****
                                     उर्मिला सिंह







Monday, 1 June 2020

सतरंगी दुनिया से नाता तोड़ चले......

सपनों की दुनियाँ से चल लौट चले,
 अब चाँद सितारों से नाता तोड़ चले!

 पश्नों की अनबूझ पहेली है ये जीवन,
 उलझे सुलझे मोह के धागे तोड़ चले!

मौन की  भाषा  समझ सका ना कोई,
भावों का दर्द  छुपाये मुखडा मोड़ चले!

सतरंगी दुनिया सतरंगी  हैं लोग यहाँ,
 दिल का अश्कों से नाता जोड़ चले!

कब होगा इन गलियों में फिर आना
हँस कर सब रिस्ता नाता  छोड़ चले!

                            # उर्मिल




Sunday, 31 May 2020

रात के निमंत्रण पर....

रात के निमन्त्रण पर
तारे छा गए अम्बर पर
चाँद  भी रुक न  पाया
जब चाँदनी ने ......
आकर जाम छलकाया।।

इश्क की दस्तक हुई
पवन ने मीठी सुर छेड़ी
 रात मुस्कुरा उठी......
 दिलों में हलचल हुई...
 ख़ामोश आंखे मदहोश सी....
 रात की दहलीज पर....
 दो फूल घायल.....
 निः शब्द ......
   ***0***
   उर्मिला सिंह
 
     
            

Saturday, 30 May 2020

दीप शिखा का प्रणयी शलभ हूँ.....

  मैं प्रीत से  सम्मोहित  शलभ हूँ
   दीपशिखा का प्रणयी शलभ हूँ।

    स्वर्णिम रूप से घायल ये दृग मेरे
    प्रीत के रंग से रंगें ये मृदु पंख मेरे    
    मिलन की आस संजोये मन में .....  
    प्रदक्षिणा रत रहता निरन्तर लौ के ।
                                           
       दीपशिखा का प्रणयी शलभ हूँ।
       
     दीप! तेरी लौ को जलते देख के 
    आलिंगनबद्ध की ह्रदय में चाह लेके
     मधुर मिलन में मिट जाना ध्येय मेरा
     है तुम्हारी प्रीत का यही समर्पण मेरा ।
     
      मैं दीप शिखा का  प्रणयी शलभ हूँ।

       मिलन, विरह होते  कहाँ  प्रीत में
       प्रतिदान मांगता कहा ह्रदय प्रीत में
       तुम्हारे अंकपास में चिरसमाधि होगी
       मिलन की वही प्रारम्भ और अंत होगा।

       मैं दीप शिखा तेरा प्रणयी शलभ हूँ।
                  *****0*****
                   उर्मिला सिंह
       

                                         

Wednesday, 27 May 2020

इंसानी छाप....

हे प्रभू जब तुम अवतरित हुवे
तो अपनी मुरली की छाप छोड़ गए
माटी अपनी छाप छोड़ जाती है
पक्षी भी जहां से उड़तें हैं वहां --
अपना पंख छोड़ देते हैं.......
फूल पवन में अपनी सुगन्ध छोड़ देता है।

लहरे छाप के रूप में ......
शंख ,सीपियों को छोड़ जाती हैं।
मछली पानी में अपनी गन्ध छोड़ देती है
पर एक इंसान ही ऐसा जीव ......है 
जिसके रचयिता भी तुम्ही ........
जीवन देने वाले भी तुम्ही .......
करुणा सत्कार दया सभी कुछ .....
उपहार स्वरूप तुम्हारे द्वारा ही प्रदत्त है
परन्तु मनुष्य अपनी .....
मनुष्यता का छाप क्यों नही छोड़ पाता....
मनुष्य होने की अपनीसुगन्ध कहीं.....
क्यों नही बिखेर पाता......
क्यों नही बिखेर पाता......।
   ****** 0******
                    उर्मिला सिंह




Tuesday, 26 May 2020

गतांक से आगे.......चुटकी भर सिंदूर.......

चुटकी भर सिन्दूर.....

गतांक से आगे.......
परीक्षा समाप्त होते ही  क्षात्रावास से  क्षात्राएँ  धीरे धीरे घर जाने लगी। छात्रावास खाली होरहा था। कुछ लड़कियों की परीक्षा समाप्त नही हुई थी बस वही रह गईं थी।
         हमने भी सभी से विदा लिया क्योंकि हमारा आखिरी साल था। बी .ए. अन्तिम वर्ष की परीक्षा समाप्त कर मैने भी घर जाने की तैयारी कर ली थी । न जाने कब मिलें न मिले अश्रुपूर्ण नेत्रों से हम सभी एक दूसरे के गले लग रहे थे। परन्तु उस भीड़ में देवकी मुझे दिखाई न पड़ी ।  मन ने कहा "चलो रूम में जाकर मिल आतें हैं..."
 परन्तु न जाने क्या सोच कर मेरे  कदम रुक गए ।गाड़ी में अपना  समान रखवा ही रही थी  तभी मेरी कुछ सहेलियों ने कहा"उर्मिल तुम्हारी देवकी आरही है " हमने भी उसी लहज़े में हंसते हुवे कहा "अच्छा तो तुम सभी को क्यों जलन होरही है " ....गमगीन वतावरण , हंसी के ठहाकों से गूंज उठा ..... !  विद्यार्थी जीवन  कितना आनंदमय होता है अब सोचती हूँ   ...  
 
"गुज़र गये वो अच्छे दिन थे ,जो कभी लौट के नहीं आएंगे"
 
वो हंसी,वो मस्ती ,प्यार तकरार सभी स्वप्नवत हो गये......

 अरे! कहाँ मन भावनाओं में बह गया......
       
 देवकी को देखते ही मेरा चेहरा खिल उठा,मानो मेरी आंखों को उसी का इंतजार था। वह धीरे- धीरे अपने आंसुओंं को छुपाते हुए  मेरे करीब आई , मैंने स्नेह से उसे बांहो में भर लिया,बस क्या था उसके सब्र का बांध टूट गया .......
वो सिसक-सिसक कर रोती रही .....
मैंने उसे बहुत चुप कराया पर....  
 सिसकते-सिसकते उसने कहा.......
 "दी ...आज के बाद मेरी आंखों में आंसू नही दिखें गे आपने जैसा बनने को कहा है मैं वैसा ही बन कर दिखाउंगी विश्वास करिये मेरा".....। 
 एक लिफाफा मुझे पकड़ा कर पैर छूकर चली गई......... मैं उसे जाते हुवे देखती रही .....
 जब मेरी सहेलियों ने कहा "अरे भई हम भी आपके हैं,
 निगाहें करम इधर भी कीजिये....."और पुनः बोझिल वातावरण ......मुस्कुराहटों में बदल गया।
 
इस तरह से छात्रावास का सुनहरा  समय अतीत के गर्भ में छुप गया.... और हम भी अपने परिवार के साथ समय व्यतीत करने  लगे।
 आगे पढ़ने की इक्छा होती तो दादी ,चाचा वगैरह मना करते क्योंकि उस समय लड़कियों को ज़्यादा पढाने के पक्ष में समाज नही था,खास कर राजपूत समाज ....। 
खैर वक्त बीतता गया  समय के सांचे में मैं भी ढलती गई। फिर इसी बीच एक दिन मेरी भी शादी होगई, सभी यादें पुरानी होने लगी तमाम खट्टी मीठी यादों को समेटे न जाने कितने वर्ष बीत गए पर देवकी को भूलना आसान नही था उससे जुड़े  प्रश्न मेरा पीछा गाहे बेगाहे करते रहते  थे।

    हमारे पति ने भी सर्विस जॉइन कर ली । उनके। साथ साथ हम भी कानपुर ,मध्य प्रदेश हिंडाल्को इत्यादि जगहों में घूमते रहे।
    तत्पश्चात  ओ एन जी सी , देहरादून में जॉइन किया...।
इसी बीच  बच्चे भी बड़े होगये ....और जगंह -जगंह शिक्षा ग्रहड़ करने लगे ....।
एक दिन हमारे चाचा जी का  गाँव से एक पत्र आया उसे जब खोला तो प्रसन्नता का ठिकाना नही था उसमें देवकी का भी पत्र मिला उस छोटे से पत्र में देवकी ने बहुत कुछ लिख दिया था....।
उसने मेरी एक सहेली से मेरे गांव का पता ले लिया था इतने दिनों के बाद उसका ये पत्र पाकर  मैं खुसी से झूम उठी परन्तु उस पत्र में उसने सिर्फ लिखा था"दी यह पत्र मैंने चाचा जी को लिखा है आप कहाँ हैं मुझे पता नही परन्तु आप से मिलूंगी जरूर एक दिन.....,
आपकी देवकी अपने पैरों पर खड़ी हो गई है ....
शायद मेरी सजा ही मेरे लिए वरदान होगई"....
बस इसके आगे कुछ भी नही।न अता न पता.....
मेरे समझ में नही आरहा था की ऐसी क्या बात हो गई।
     खैर दिन गुज़रते रहे हम भी अपने पारिवारिक दायित्वों को बखूबी निभाते हुए में व्यस्त हो गये .....
 मेरे पतिदेव भी यदा कदा पूछ लिया करते थे की भाई तुम्हारी सहेली का क्या हुआ ? मैं मुस्कुरा कर टाल दिया करती  थी........
        
समय अपनी रफ़्तार से चल रहा था ....
        
हम भी उसी की धार में बह रहे थे.....

हमारी पड़ोसन की लड़की की शादी पक्की हुई...  प्रत्येक रस्म पर हम पूरे परिवार सहित आमन्त्रित होते थे। उनके घर लड़की की शादी का संगीत था,बाहर वाले मेहमान भी आरहे थे  एक तो देहरादून घूमने का शौक दूसरे शादी सोने पर सुहागा।
            उनके ड्राइंग रूम में संगीत चल रहा था  सभी गाने बजाने में मस्त थे तभी बाहर से कई लोगों की एक साथ हंसने की आवाज सुनाई पड़ी .....
 गाते -गाते हम सभी का ध्यान शोर की तरफ आकर्षित हुआ  तो देखा कि  मिसेज मिश्रा के संग एक 55- 60 साल की ओरत सौम्य चेहरा गम्भीरतायुक्त आंखे  उसके साथ एक युवक हंसता हुवा चला आरहा है एकाएक सभी की आंखे उन अजनबी चेहरों पर ठिठक गई....।
           मैने भी पलके उठा कर देखा....और  देखती रह गई कुछ देर तक.....जाना -  पहचाना  सा चेहरा लगा फिर किसी से बात करने लगी पर.......ये क्या वह तो सभी को छोड़ मेरे ही पास चली आरही थी एक मिनट को तो मैं भी स्तब्ध रह गई......
            परन्तु दूसरे ही पल उन्हें झुकते देख सभी कुछ चल चित्र की भांति सामने आगया वह कोई और नही मेरी प्रिय देवकी थी। खुशी की तो पूछिये मत सभी लोग इस दृश्य को देख ठगे रह गए। उसने - अपने साथ के युवक से मेरा परिचय कराया और बताया दी यह मेरा बेटा है  उस युवक ने पैर छू कर अभिवादन किया  और कहा "आप उर्मिल मासी हैं न, मां आपकी बाते किया करती थीँ "  मैंने हंस कर  प्यार से उसके सिर पर हाथ फेर करआशिर्वाद दिया 
         
हजारों प्रश्न मन में थे परन्तु.........।
         
        गीत- संगीत  चलता रहा .....
        हम सभी चाय नास्ता कर रहे थे साथ ही साथ बातों का भी दौर चलता रहा ...। देवकी ने मुझ से पूछा" पूछेंगी नही दी कि ये लड़का तुम्हारा है"मैंने हंस दिया उसका दूसरा पश्न था" दी आज मैं आपके पास रहूंगी" मैंने कहा ये तो मेरे लिए सौभाग्य की बात है।
           प्रोग्राम समाप्त होते ही "सजल" जो उसके लड़के का नाम था अपने दोस्त के यहां देवकी से पूछ कर मिसेज मिश्रा के लड़के के साथ चला गया।हम देवकी को अपने घर ले आये। रात्रि का भोजन उन्हीं के घर होगया था....
           
                 बस रात तो अपनी थी पतिदेव भी देवकी से बातें करके चले गए। बगैर किसी प्रस्तवना के देवीकी ने बोलना शुरू किया "दी यह बेटा मुझे भगवान का दिया हुआ उपहार है..... ,आज भी वो बरसात की  रात मुझे याद है जब मैंने एक युवती को पानी में भीगते हुए अपने गेट के पास  गोद में बच्चे को आँचल से छुपाये ठंढ से कांप रही थी," बरामदे में बैठी मैं किताब पढ़ रही थी अचानक मेरी निगाह गेट पर गई मैंने चौकीदार को बुला कर उस औरत को अंदर बुलाया ,मैंने उसे गौर से देखा और कहा कि इतने पानी में छोटे बच्चे को लेकर यहां क्या कर रही हो उसने कहा " मैं इस संसार में अकेली हूँ पति की दुर्घटना में मौत हो गई जहां रहती थी मकान मालिक ने निकाल दिया  ,मैडम क्या आप मुझे अपने घर में रक्खें गी मैं "आपका सभी काम करूँगी,"  मैने उसका नाम पूछा उसने कल्याणी बताया बस यही उसका परिचय था बगैर उसके विषय में ज्यादा जाने  समझे हां कर दिया।
                 
मैंने सोचा क्या लेके जाएगी मेरे पास है ही क्या और वह मेरे पास ही रहने लगी कुछ कपड़े मां बेटा के लिए खरीद दिया।
बस यहीं से पतझड़ सरीखे मन में बसन्त का आगमन हुआ,
पहले कॉलेज से घर लौटने के लिए एक -एक कदम भारी होता था पर अब.........घर पहुंचने को आतुर.....। 
खुशियों के दिन पंख लगा कर उड़ रहे थे तभी कल्याणी बीमार पड़ी ...... डॉक्टरों को दिखाया पर केंसर की आखिरी स्टेज बताया.....
मेरी खुशियों के पंख एक बार पुनः लहू-लुहान हो रहे थे......
और एक दिन ऐसा आया जब रुपया पैसा कुछ भी उसे बचा नही सके और वह अनन्त में विलीन हो गई।
मैं सजल को सीने से लगाए किंकर्तव्यविमूढ़ सी बैठी रही
जब सजल मां को पूछता तो मैं फफककर रो उठती क्या बताती उसे मेरी बदनसीबी ने उसे भी अपने हाँथों डंस लिया। मुझे बड़ी मां कहता उसका नाम  एक अच्छे स्कूल में लिखवा दिया  एक आया रक्खा पर कॉलेज से आने के बाद पूरा समय उसी के साथ बीतता।आज वह अच्छे पद पर है बाहर जाने का भी ऑफर आया पर बड़ी मां को छोड कर उसे कहीं जाना स्वीकार  नही .....बहू के भी पांव भारी हैं ।बहू से बेटी जैसा  प्यार पा कर निहाल हो जाती हूँ"बस यही कहानी है  "ममत्व का सुख पाकर चुटकी भर सिन्दूर की सजा भूल गई दीदी"..........

                                                   उर्मिला सिंह