मेरे गीतों को सुन हौले से मुस्का देना
मन की उलझी गाँठों को सुलझा देना!
विस्वासों की छाँवों में हो बसेरा अपना
छलके जो कभी अश्क पलकों से उठा लेना!
जब अनजानी राहें ,घनघोर अन्धेरा हो
विश्वास, का दीप इन नयनों में जला देना!
जख्मों के गुलाब बिक़तें हैं इस नगरी में...
मलहम की हो कोई दुकान बता देना!
कामना की शाखों पर बैठें हैं मौन
अन्तर्मन की गूंज सुनाई दे, वो तरक़ीब बता देना!
उर्मिला सिंह
प्रेरक सृजन दी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
हार्दिक आभार प्रिय कुसुम जी
Deleteबहुत खूबसूरत सृजन
ReplyDeleteशुक्रिया भारती दास जी
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना आदरणीया
ReplyDeleteहार्दिक आभार अभिलाषा जी
Deleteहार्दिक धन्यवाद कामनी जी हमारी रचना को मंच पर रखने के लिए।
ReplyDeleteजख्मों के गुलाब बिक़तें हैं इस नगरी में...
ReplyDeleteमलहम की हो कोई दुकान बता देना!//
क्या बात है प्रिय उर्मि दीदी!! विकल मन की मर्मांतक अभिव्यक्ति मन को छू गई 🙏♥️
प्रिय बहन हार्दिक धन्यवाद बहुत दिनों के बाद आपको पोस्ट पर देखा अच्छा लगा...
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