Thursday, 24 October 2024

जीवन का यथार्थ

जीवन का यथार्थ.....

🍁🍁🍁🍁🍁

शाम का समय.....

ढलते सूरज की लालिमा....

आहिस्ता- आहिस्ता......

समुन्द्र के आगोश में.....

विलीन होने लगा......

देखते -देखते.....

अदृश्य होगया........

जिन्दगी भी कुछ ऐसी ही है.......

मृत्युं के आगोश में लुप्त होती ....

इंसान के वश में नही रोक पाना.....

लाचार ....बिचारा सा......इंसान

फिर भी गर्व की झाड़ियों में अटकता.....

अहम के मैले वस्त्रों  में

सत्य असत्य के झूले में झूलता....

जीवन की अनमोल घड़ियां गवांता......

जीवन की उलझनों में उलझा

सुलझाने की कोशिश में 

पाप पुण्य की परिधि की...

जंजीरों में जकड़ा

निरंतर प्रयत्नशील

अंत समय पछताता हाथ मलता.......

कर्मों का बोझ सर पर लिए अनन्त में.....

विलीन हो जाता......

जीवन का यथार्थ यही है.....शायद

जो हम समझ नही पाते हैं.......


  🌷उर्मिला सिंह



4 comments:

  1. जीवन का यथार्थ अगर समझ ही पाते तो जीवन की सारी समस्याओं का समाधान मिल जाता शायद...।
    सुंदर अभिव्यक्ति दी।
    सादर प्रणाम।
    ---
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ अक्टूबर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. जीवन का यथार्थ तो अमरता है पर नश्वरता को समझने से ही समझ में आती है

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  3. बेहतरीन पंक्तियाँ

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