सुस्त कदम मेरे....
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चलते चलते,....
रुक जाते ....
एक मोड पर ये
थके थके, रुके रुके
अलसाए ...
सोचों में हैं खोए
कौन डगर जाऊं
कुछ समझ न पाए
ये सुस्त कदम मेरे।
पांवों की सुस्ती
दिल दिमाग पर छाती
हर राह यहां अब
लगती है बेगानी
जर्जर नैया
डोल रही
भव सागर में
ना कोई खेवैया
सोच में डूबी
नश्वर काया ....
तेरा मेरा बहुत किया
क्या पाया क्या खोया
इस जग से
सिर धुन धुन पछताता क्यों
सुस्त थके ...कदम मेरे....
उर्मिला सिंह
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मान्यवर
Deleteवाह
ReplyDeleteआभार आपका
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