हमदर्द.... ..
अश्कों को हमदर्द बना
दर्द गले लगातें हैं
मुझसे मत पूछो दुनिया वालों
अधरों पर मुस्काने
किस तरह सजातें हैं।।
फूलों की चाहत में
काटों को भूल गए
आहों ने जब याद दिलाया
सन्नाटों से समझौता कर बैठे।।
सन्देह के घेरे में जज्बात रहे
लम्हे अपने,अपने न रहे
फरियादी फरियाद करे किससे
जब कातिल ही जज की ......
कुर्सी पर आसीन रहे....
लफ्जों में पिरोतें हैं
एहसासों के मोती
संकरी दिल की गलियों में
कौन लगाता कीमत इनकी।।
निद्र वाटिका में
अभिलाषाएं मचलती
जीवन से जीवन की दूरी
दूर नही कर पाती हैं....
फिर भी देहरी पर
उम्मीदों के दीप जलाती है।।
उर्मिला सिंह
हृदयस्पर्शी नज़्म दी।
ReplyDeleteसादर।
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नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ९ दिसम्बर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मान्यवर
Deleteहार्दिक धन्यवाद आपका
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मान्यवर
Deleteबहुत सुंदर
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