अंतर्गगन का परत दर परत अँधेरा हटा, ज्ञान बीज अंकुरित होने लगा है
सम्पुटित उर कमल को हौले हौले छू के
रश्मियाँ खिलाने लगी
दिल- के शाखों की झूमने लगी आज डारी डारी
चहचहाता है मन का पक्षी ,उल्लसित लगने लगा है सबेरा
ऊर्जा कीअटखेलियों से सुधा सिचित हो गया हृदय कोना कोना
खुल गई दिल की खिडकियाँ सुरभित पवन का आया झकोरा
दिशाओं ने मधुर विमल सन्देशा है भेजा
आज आनन्द जल से नयन है छलकते विकल मन प्राण आज कैसा ये विश्राम पाया!
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