कविता
मै विधाता की रचना ,सशक्त नारी हूँ;
करुणा ममता क्षमा अंचल में पलते मेरे;
मैं भीरु नही रण चण्डी दुर्गा काली हूँ !
है विद्या बुद्धि , सरस्वती का वरदान मुझे;
पुरुषों के समक्ष खड़े रहने का आधीकर मुझे!
अगणित सीमाओं में बंधी खुद की राह बनाया;
आत्मबल साहस से ये मुकाम पाया हमने!
कितनी गाँठे खोली कितनी जंजीरे तोड़ी है;
संघर्षो से जूझते हर धर्म है निभाया हमने!
दिल का दर्द छुपा ,घूट पिया अश्कों का है;
आन पे जब आँच पड़ी शमशीर निकाला हमने!
समुन्दर जैसी खारी ,पर पावन गंगा जल मै हूँ ;
पति की अंकशायनी पर सहचरी भी मैं हूँ !
दहेज की बलि वेदी पे उत्सर्ग करूँ स्वयं को;
इतनी लाचार नही,नव युग की शक्ति,चण्डी मै हूँ!
#उर्मिल#
दहेज की बलि वेदी पे उत्सर्ग करूँ स्वयं को;
ReplyDeleteइतनी लाचार नही,नव युग की शक्ति,चण्डी मै हूँ!वाह!!! आदरणीय उर्मिला जी सचमुच शक्तिरूपा नारी अपनी बहुत सी समस्याएं खुद ही हल कर पाने में सर्वांग सक्षम है | बहुत प्यारा जयघोष !!!!!!! सादर शुभकामनाएं
स्नेहिल धन्यवाद प्रिय रेणू।
Deleteधन्यवाद प्रिय रेनू।
Deleteदी ब्लॉग पर आपका स्वागत,
ReplyDeleteसशक्त रचना नारी सशक्तिकरण का आह्वान करती।
आभार प्रिय कुसुम ।
Deleteआज पञ्च लिंक पर सजी रचना को फिर से पढ़कर अच्छा लगा उर्मि दीदी | बधाई स्वीकार करें | सादर
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