सुलझते उलझते
जिन्दगी गुजरती रही
कभी तुम रूठते
कभी हम रूठते
कभी हम झुकते
कभी तुम झुकते
जिन्दगी इसी फार्मूले
पर चलती रही
न जाने क्या था तुममे
न जाने क्या था हममें
मन के आकाश में,
एक साथ परिंदे से उड़ते रहे!
मनाते दुलराते
लड़ते झगड़ते
प्रेम सागर में डूबते रहे
उम्र का ये पड़ाव
युवाअवस्था से भी,
सुखद लगने लगे!
***0***
🌷ऊर्मिला सिंह
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