जिन्दगी ख़फ़ा तुझसे अब सारे नजारे हो गये
उम्र की देहरी पे रुकने को जब मजबूर हो गये!
बेपरवाह जिंदगी हौसलों की कश्ती ले चली थी
जिस जगह पर रुक गई वही किनारे होगये!!
गरीबी की चक्की में पिसते रहे ता उम्र हम
बच्चे हमारे स्कूल जाने को तरसते रहगये!!
सरेआम ज़मीर की बोली लगती है अब यहाँ
चन्द सिक्को पे डोलते ईमान देखते रहगये !
इस दौर को कोसना भी लाजमी होता नही
हर दौर में जयचन्द विभीषण को झेलते रहगये!!
धर्म को खेल बना इन्सान को लड़ाती रही सियासत
सियासत में नेता भी इन्सान से हैवान बनके रहगये!!
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🌷उर्मिला सिंह
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