भावों की कश्ती...
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तारोंकी झिलमिल छाया में भावों की नाव चलाती हूँ
गहन अन्धेरी रातों में आशाओं के दीप जलाती हूँ
मन वीणा प्रकृति के मृदुल स्पर्श से झंकृत होती जब,
झनकार ह्रदय के तारों की अम्बर तक पहुँचाती हूँ!!
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ऊर्मिला सिंह
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