नजाने कितने बच्चे फुट पाथों पर पैदा होते , बड़े होते और वहीं मर जाते हैं। यही उनके जीवन की सच्चाई है ।सरकारें आती हैं , चली जाती है, उम्मीदे बंधाती हैं और तोड़ती है । परन्तु उनके जीवन में रत्ती भर भी फर्क नही आता है.....।
इसी तथ्य से आहत ये चंद पक्तियाँ :-
बचपन फुटपाथों पर बिताती है जिन्दगी..
दर्द, के कालिखो में जीती रहती जिन्दगी..
फिर भी उम्मीदों का सहारा लेती है जिन्दगी..
उम्मीदों से ही बार - बार छली जाती है जिन्दगी!!
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🌷उर्मिला सिंह
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