ख़ामोशी.....ख़ामोशी.....बस......ख़ामोशी
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कुछ टूटा.....कोई आवाज नहीं.....बेइंतहा दर्द पर आह नहीं
सिर्फ और सिर्फ एक ख़ामोशी......ख़ामोशी........
अश्क झरे आंखो से पर अधरो से सिसकी भी नहीं.....
दिल का दर्द कहें किससे ख़ामोश हुई जिन्दगी सारी.....
खामोशियों के जाल में जकड़ी है जिन्दगी.......
तुम क्या रूठे दुनिया रूठ गई मेरी.........
पर आत्मा मेरी सरहद पर भटकती रहती है
जहां तुम शहीद हुए थे........
शरीर ही हमारा है आत्मा तो तुम्हीं में बसती थी....
शहीद की अर्धांगिनी विधवा होती नहीं.....
ललाट का सिंदुर भले मिट जाता है ......
पर देश भक्ति की लालिमा से पत्नी का .....
भाल चमकता रहता है सदा .....
खामोशियों के आवरण से ढका
उसकी वीर गाथा सुनाता रहेगा सदा....
🌷उर्मिला सिंह
वाह!!लाजवाब!!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यावाद आपका
Deleteखामोसी में भी बहुत कुछ कह जाना एक विशिष्ट कला को प्रदर्शित करता है....
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ...
हार्दिक धन्यावाद आपका
Deleteवाह बेहतरीन रचना दी
ReplyDeleteस्नेहिल धन्यवाद प्रिय अनुराधा!
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