वृद्ध आश्रमों में माँ बाप नई पीढ़ी की सोच
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अजब दस्तूर है ,
अब इस जहाँ का ,
ज़िन्दगी आखिरी सीढ़ियों पर ,
माँगती है सहारा ,
वृद्ध आश्रमों का ।
जिन्हें कलेजे से लगाया ,
आँखों में बसाया ,
ममता नें हर ,
मंदिर-मस्जिदों के चौकठ पर,
दुआओं के लिए आँचल को फैलाया,
वहीँ हो गए आज बेगाने क्यों ?
ये कैसी विडम्बना है ?
ये कैसी हवा है ?
जिन बाँहों नें झुलाया,
थपकियाँ देकर सुलाया ,
तुम्हे सुखी देखने को ,
दुःख को भी गले लगाया;
उन्ही को तुमने ,
तूफानों के हवाले कर दिया।
निर्दयता की तलवार ने ,
भावनाओं का क़त्ल कर दिया ;
ममता को बक्शा नहीं ,
सूली पे चढ़ा दिया ।
उड़ा डाली धज्जियाँ ,
भारत की संस्कृति-संस्कार की।
जीवन गुजारा था जो तुमने ,
जिनकी छत्र-छाया में ,
वो कीमत माँगते नहीं ,
अपने दूध की तुमसे ,
केवल प्यार माँगते है,
सम्मान माँगते है ;
कुछ दिन तुम्हारे साथ ;
जीने का --अधिकार माँगते हैं।
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आज के नवयुवक नवयुवतियों को समर्पित है!
बहुत ही सुन्दर और मार्मिक रचना.
ReplyDelete...
अद्भुत...
बेहद हृदयस्पर्शी
ReplyDeleteआभार आपका अनुराधा जी
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