हमें भी लबों से मुस्कुराना आगया शायद!
नफ़रतों से रिस्ता निभाना आगया शायद!!
दोस्ती गुलशन हैं फूलों का जाना था हमने!
खार से भी दामन सजाना आगया शायद!!
दिखाते आईना जो ,खुद को खुदा समझते!
हमें पत्थरों से भी टकराना आगया शायद!!
ग़जल गीतों में बिखर जाता है दर्द जब !
आसुओं को भी रंग बदलना आगया शायद!
लम्हा लम्हा वक्त तन्हाइयों का बढ़ता रहा
वक्त के सलीब पर लटकना आगया शायद!!
कई रंगों के मंजर आंखों में घूम जाता हैं!
एहसासों को दर्द में जीना आगया शायद!!
#उर्मील
वाह सुंदर ग़ज़ल...
ReplyDelete"एहसासों को दर्द में जीना आगया शायद..."
उत्तम रचना.....
हार्दिक धन्य वाद पम्मीजी इस रचना को मंच पर शामिल करने के लिए...
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन आदरणीया दीदी जी
ReplyDeleteसादर
स्नेहिल धन्य वाद प्रिय अनिता
Deleteबहुत उम्दा दी बेमिसाल सृजन। बहुत सुंदर ग़ज़ल।
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया प्रिय कुसुम
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब गजल।
हार्दिक धन्य वाद सुधा जी
ReplyDeleteAmazing Keep Writing Amazing Content
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत ही लाजवाब गजल।
Nanne Parmar
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हार्दिक धन्य वाद Nanne Parmar ji
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