जो कहना है कहो औरत में धधकता महाक्रोश है
औरत प्रेम वात्सल्य का सतत कोष है
तो वह दुर्गा, चंडी का मुखर रोष भी है
वह बिलखती रोती सीता सावित्री सलमा है
तो बुझी हुई राख में छुपी हुई चिनगारी है
जो कहना है कहो वह गृहस्थ का मुक्त बोध है!!
नारी अनुपम उपहार मनोहर प्रकृत का
उसके हाथो से इंसानियत होती सिंचित
सेवाभाव से भरा हुआ मन है जोशीला
उसमें सिमटा बहू पुत्री का आदर्श है !!
जो कहना कहो औरत में धधकता महाक्रोश है!!
कीट पतंगो सा जीवन उसे स्वीकार नही
कुचली मसली जाए अब वो हालात नही
उसमें महकता कस्तूरी का टुकड़ा है......
नफ़रत का करती कभी वो व्यापार नहीं!!
जो कहना,कहो औरत में विनम्रअभिलाषाओं का कोषहै
******0******0*******
उर्मिला सिंह
बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति दीदी
ReplyDeleteहार्दिक धन्य वाद प्रिय अनुराधा जी
ReplyDelete