तेरी बन्द पलकों,.... के पीछे
देखा करती थी.....
पलास के फूलों जैसे
बिखरे हुए अंगारे
खेलते रहे निरंतर....
उनअगारों से तुम...
राख में परिवर्तित....
हो गये एक दिन !
पल-पल सुलगना......
हर वक़्त तुम्हारा.....
बहुत करीब से ,
देखा था हमने........... !
पर न दिया आपने ......,
बुझाने का मौका ...
कभी.....मुझे....!
आज बिखरा है...
हृदय में .......मेरे
राखों का अम्बार....
तेरा.....!
पर वो चिंगारी --
नजर आती नही......,
जो तुम्हे .......,
राख के ढेर ....
में परिवर्तित कर गई..... !
=== === ===
दर्द छुपाये हँसते रहे....
थे मिसाल जिन्दादिली के तुम !
अपने पास बिठा के मुझको ...
जाने मुझमें क्या देखा करते थे !
विचारों में रखते थे....
सागर सी गहराई ...
मर्यादा संस्कारों का....
तुम ...सदा ही...
पाठ पढ़ाया करते थे !
अम्बर पर तारे बन........
चमका करते हो !
किससे पूछू दर्द तुम्हारा....
तुम जो मन ही मन झेला करते थे!!
**********
#उर्मिल
हार्दिक धन्य वाद रविन्द्र सिंह यादव जी हमारी रचना को "चर्चा अंक में शामिल करने के लिए
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteशुक्रिया ओंकार जी
Deleteपिता-पुत्री का असीम प्यार से भरी सुंदर रचना.
ReplyDeleteहार्दिक धन्य वाद राकेश कुमार जी
Deleteदर्द छुपाये हँसते रहे....
ReplyDeleteथे मिसाल जिन्दादिली के तुम !
अपने पास बिठा के मुझको ...
जाने मुझमें क्या देखा करते थे
,बहुत ही सुंदर और मार्मिक सृजन ,सादर नमन
हार्दिक धन्य वाद कामिनी जी
ReplyDeleteपिता को समर्पित भाव सदैव उत्कृष्ट होते हैं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन दी।
सादर।
प्रिय श्वेता आभार आपका
Deleteदर्द छुपाये हँसते रहे....
ReplyDeleteथे मिसाल जिन्दादिली के तुम !
अपने पास बिठा के मुझको ...
जाने मुझमें क्या देखा करते थे !
विचारों में रखते थे....
सागर सी गहराई ...
मर्यादा संस्कारों का....
तुम ...सदा ही...
पाठ पढ़ाया करते थे !... बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीया दीदी. पिता को समर्पित बहुत ही सुंदर भाव.
सादर
हार्दिक धन्य वाद प्रिय बहन अनिता जी l
Deleteबहुत ही सुंदर भाव प्रकट किए हैं
ReplyDeleteआभार आपका मान्यवर
Deleteभावुक कर देने वाली रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
आभार ज्योति खेर जी
Deleteउफ़्फ़! नि :शब्द!!!!
ReplyDeleteहार्दिक धन्य वाद विश्वमोहन जी, सत्य पर आधारित रचना है शायद इसीलिए आप सभी को पसन्द आई l
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