ख़ुशनुमा मौसम में भी पतझड़ होगया हूँ!
आँसुओं को छुपाते छुपाते पत्थर होगया हूँ!!
अच्छा बुरा होता नही दुनियाँ में कोई यारों!
हर जितने वाला समझता सिकन्दर हो गया हूँ!!
ग़मज़दा काटों ने हँस कर फूल से कहा !
रश्क करते करते मैं जर्जर हो गया हूँ!!
संस्कारों की बात पूछने जाउँ कहाँ नये दौर में!
संश्कारों का दहन देख कर शर्मसार होगया हूँ!!
हौसलों की तलवार लेके चला हूँ राहों पर!
ख़ौफ नही लहरों का मैं समन्दर होगया हूँ!!
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उर्मिला सिंह
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरूवार 23 अप्रैल 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
शुभ प्रभात, हमारी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक धन्य वाद आपको l
Deleteवाह !बेहतरीन सृजन आदरणीया
ReplyDeleteहार्दिक धन्य वाद प्रिय अनिता जी l
Deleteआभार आपका हमारी रचना को साझा करने के लिए l
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत लाजवाब सृजन।
शुक्रिया सुधा जी
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना दी
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद प्रिय अभिलाषा जी।
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