नित नए षणयंत्र रचकर उसे रुलाना चाहता है
वो ईमानदारी की राह चल मुस्कुराना चाहता है।।
चमन की हर शाख पर घात लगाए बैठेहैं उल्लू
वो हौसलों के तीर से चमन बचाना चाहता है।।
तुम लाख डुबोना चाहो कश्ती उसकी
तूफ़ानों का आदी तूफानों से खेलना जनताहै।।
आँखों के छलकते आंसूं इंसानियत की जुंबा है
सतकर्म से इन्सानियत का संदेश देना चाहता है।
छल बल से सत्ता पाने की चाह में मशरूफ़ तुम
वो शहीदों से मिली दौलत सहेजना चाहता है।।
माना कि झूठ के शोर में सत्य कराहता रहता
मानो न मानो सत्य देर सबेर जीतना जनता है।
हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और हुवा करते हैं
वो तुम्हारी चालबाजी को नाकाम करना जानता है।।
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उर्मिलासिंह
कविता तो अच्छी है उर्मिला जी लेकिन यह चाहने वाला और जानने वाला कौन है ? आपने ये बातें किसके लिए कही हैं ?
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 11 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteदिव्या जी हमारी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
Deleteसुन्दर ग़ज़ल।
ReplyDeleteआभार डॉ रूपचन्द्र शास्त्री जी।
Deleteसारगर्भित संदेश देती रचना..
ReplyDeleteजिज्ञासा जी।
ReplyDeleteआपका आभार...💐💐
वाह सुंदर है दी पर स्पष्ट नहीं हो पा रहा यहां वो से किसका तात्पर्य है।
ReplyDeleteसादर।
ये रचना पूर्णतः राजनीति पर है नाम न देकर संकेत के जरिये हमने कहने का प्रयास किया। बहुत बहुत आभार प्रिय कुसुम।
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