चाहे बनाओ चाहे मिटाओ तुम
तेरे हाथों की बनी तेरी तस्वीर हैं हम
तेरी रचना का नन्हा सा दीपक हैं हम
चाहे जलाओ चाहे बुझाओ तुम।।
जाने चित्र कितने बनाते हो तुम
पँचरंगो से सजा के भेजते हो तुम
वक्त की डोर का उसे कैदी बना .....
हाथों में श्वास डोर रखते हो तुम।।
चाहे बनाओ चाहे मिटाओ तुम
तेरे हाथों की बनी तेरी तस्वीर हैं हम।।
कर्म की भित्ति पे सुख दुख उकेरे
डाल देते हो अथाह सागर में तुम
नन्ही सी बूँद छूती मोह माया का किनारा
नये जग में विस्समोहित करते हो तुम।।
फँसाते उसे मोहमाया के बन्धन मे तुम
तेरे हांथो से बनी तेरी तस्वीर हैं हम।
प्रज्ञाचक्षु खुलने से पहले
तृष्णा के मरुस्थल में घुमाते हो तुम
अनगिनत कामनाओं के शूल
ह्रदय की वादियों मे उगाते हो तुम
शूलों की सेज सजाओ या बचाओ तुम
तेरे हाथों से बनी तेरी तस्वीर हैं हम।।
जीवन की कश्ती मंझदार में पड़ी
तूफ़ानी लहरें राह रोके खड़ीं.....
ऐ चित्रकार! तुमको पुकारे तुम्हारी कृती
अब तो आगई बिदाई कीआखिरी घड़ी।।
चाहे उबारो चाहे डुबाओ तुम
तेरे हांथो की बनी तेरी तस्वीर हैं हम।।
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उर्मिला सिंह
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2050...क्योंकि वह अपनी प्रजा को खा जाता है... ) पर गुरुवार 25 फ़रवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक दग्न्यवाद रविन्द्र जी आपका,हमारी रचना को साझा करने के लिए।
Deleteबहुत सुंदर!!!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ।
Deleteबढ़िया गीत।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद डॉ रूपचन्द्र शास्त्री जी।
Deleteधन्यवाद डॉ रूपचन्द्र शास्त्री जी आपका।
Deleteबहुत बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आलोक सिंह जी।
Deleteहृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति, सादर नमन उर्मिला जी
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत सृजन !
ReplyDeleteहमारे ब्लॉग पर भी आइए आप का हार्दिक स्वागत है🙏🙏🙏🙏
बहुत सुन्दर सृजन । सादर नमन उर्मिला जी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना दीदी
ReplyDeleteजीवन की कश्ती मंझदार में पड़ी
ReplyDeleteतूफ़ानी लहरें राह रोके खड़ीं.....
ऐ चित्रकार! तुमको पुकारे तुम्हारी कृती
अब तो आगई बिदाई कीआखिरी घड़ी।।
सरल ,सहज उद्बोधन सृष्टि रचियता के नाम | बहुत सधी रचना प्रिय उर्मि फीफी | बहुत सुंदर लिख रहीं हैं आप | सादर