दुख दर्द तबाही से जी घबड़ाता है
सन्नाटों की चीखों से मन अकुलाता है
तबाही का ये आलम क्षण-क्षण....
जीवन से दूर बहुत दूर ले जाता है।।
धर्म कर्म की बातें अब नही लुभाती
हाहाकार,रुदन का रौरव धरा हिलाती है
सूर्य किरण में आभास क्रंदन का दिखता है
चाँद सितारों की बातें फीकी लगती हैं।।
मानवता की कौन सुने दुहाई यहां
दानवता का तांडव हो रहा यहां....
वेक्सीन की कीमत हुई हजारों के पार
वैक्सिन,ऑक्सीजन पर हो रहा संग्राम।।
असहाय,बेबस दिख रहा यहां इंसान ।।
फिर भी उम्मीदों की डोर अभी सांसों में हैं
आशाओं का सम्बल हिय के तारों में है
ऐसा कोई चमत्कार करो दुनिया के मालिक.....
तेरी रचना का अन्त न हो,सांसों के मालिक।।
बहुत दिखाया तबाही का आलम,अब और नही
मरघट सी उदासी की छाया प्रभु अब और नही
खोई खुशियां जग की फिर से लौटा दे दाता....
गर सच है,जीवन मरण तुम्हारे हाथों में ....
तो...अब और नही.....प्रभु!अब और नही.....
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उर्मिला सिंह
सन्नाटों की चीख से मन अकुलाता
ReplyDeleteसही कहा उर्मिला जी समय मुश्किल है बीत जायेगा
सोच को साकारात्मक रखिए
सकारत्मकता भी नज़र आएगी शायद अपने पढा नही
Delete"फिर भी उम्मीदों की डोर अभी सांसों में है, आशाओं का सम्बल हिय के तारों में है"शायद सकारत्मकता का ही प्रतीक है। बहुत बहुत आभार आपका।
बहुत दिखाया तबाही का आलम,अब और नही
ReplyDeleteमरघट सी उदासी की छाया प्रभु अब और नही
खोई खुशियां जग की फिर से लौटा दे दाता....
गर सच है,जीवन मरण तुम्हारे हाथों में ....
तो...अब और नही.....प्रभु!अब और नही.....
🙏🙏
ह्रदय से आभार आपका पुरषोत्तम कुमार सिन्हा जी।
Deleteउम्मीद की डोर ... बस यही इन सब से उभार कर ले जाएगी ...
ReplyDeleteएक आस्था बनी रहे ... दिन पलट के आएँगे ...
ह्रदय से आभार आपका मान्यवर।
Deleteआशा और सकारात्मकता का संचार करती सुंदर कृति,आदरणीय दीदी आपको अच्छे स्वास्थ्य के लिए हार्दिक शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteधन्यवाद प्रिय बहन ।
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