कतरा के चलते थे जो कभी अपनों की नजर से
तड़पते है मिलाने को नज़रे अब उनकी नजर से।।
बेवफाई की अदा में माहिर थे वो सदा से ही...
कसूर अपना था मिल गई नज़र उनकी नजर से।।
किस्मत की खता कहें या नज़रों काअंदाजे -बयां
लहरें भी पशेमाँ मिला के नजर उनकी नजर से।।
स्मृतियों की झीनी झोली से झांकते पलों की-
नजरें, मिल ही जाती है फिर उनकी नज़र से।
ये नज़रों का खेल है साहिब ज़माने से
दिल की शमा भी बुझा देतें हैं उनकी नज़र से।।
उर्मिला सिंह
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 9 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक धन्यवाद पम्मी जी ,हमारी रचना को साझा करने के लिये।
ReplyDeleteसुंदर भाव ।
ReplyDeleteबधाई
शुक्रिया हर्ष महाजन जी।
Deleteनज़र नज़र का खेल हैं ।
ReplyDeleteबहुत खूब ।
संगीत जी बहुत बहुत धन्यवाद ।
Deleteस्मृतियों की झीनी झोली से झांकते पलों की-
ReplyDeleteनजरें, मिल ही जाती है फिर उनकी नज़र से।---बहुत खूब
हार्दिक धन्यवाद आलोक सिन्हा जी।
ReplyDeleteसंदीप कुमार शर्मा जी शुक्रिया।
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