सखि री सावन आयो द्वार...
सखि री सावन आयो द्वार...
ताल तलैया छलकन लागे,
अरेरामा!लहरन लागे धान.......
सखि री सावन आयो द्वार. . ।।
झिमिर झिमिर बदरा बरसे
तृषित धरा के मस्तक चूमे
पातन बुंदिया मोती बन चमके
अरे रामा!शीतल.... बहत बयार....।।
सखि री सावन आयो द्वार...
बन उपवन हरिताभ छाए
शाख शाख लिपट मुस्काये
नाचत मोर पंख फैलाये
पपीहा पीहू पीहू छेड़े तान
सखि री सावन आयो द्वार.... ।।
गलियन गलियन कजरी गूंजत
मिलजुल सखियां झूला झूलत
कंगना खनकत...,कुंतल बिखरत
पिया की याद बिजुरी सम कौंधत
सखि री सावन आयो द्वार....।।
बैरिन भई कारी बदरिया.....
बौराइल रात अन्हरिया.....
लाख संभालूं धानी अंचरवा
पुरवइया निगोडी उड़ा लेई जाय.....।।
सखि री सावन आयो द्वार..
उर्मिला सिंह
बहुत बहुत मधुर| सुन्दर गीत|शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (19-07-2021 ) को 'हैप्पी एंडिंग' (चर्चा अंक- 4130) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
हार्दिक धन्यवाद रविन्द्र जी हमारी रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteबहुत ही सुंदर और मधुर गीत!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मनीषा जी।
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआभार आपका ज्योती जी।
Deleteसुंदर गीत
ReplyDeleteहृदय से आभारी हूँ अनिता जी।
Deleteमधुरम् मधुरम् !
ReplyDeleteसराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत सुंदर .....बचपन के झूले याद आ गए ।
ReplyDeleteशुक्रिया संगीता स्वरूप जी।
Deleteबेहतरीन रचना आदरणीया दी।
ReplyDeleteस्नेहिल धन्यवाद प्रिय अनुराधा जी।
Deleteसुंदर सृजन...
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संदीप जी।
Deleteसुंदर मन भावन कजरी।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा जी।
Deleteवाह!बहुत सुंदर सृजन दी 👌
ReplyDeleteसराहना के लिये ह्रदय से आभार अनिता जी।
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