शाख के पत्ते
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झर रहे पात पात
छूट रही टहनियां
कौन सुनगा यहां।
दर्द की कहानियां।
टूट गये रिस्ते नाते
रह गई अकेली टहनियां
धूल धुसरित पात ये
जमीन पर पड़े
कोई आँधियों में उड़ चले
कोई पानियों में भींगते
मिट्टी में ही मिल गए।।
पात पात झर रहे
सुनी पड़ीं गईं टहनियां
कौन सुनेगा यहां दर्द की कहानियां।
दिखा रहा तमाशा अपना
जग का सृजनहार यहां
नव कोपलों के आने तक
होगया वीरान यहां....
कौन सुनेगा यहां दर्द की कहानियां।
बज रहे नगाड़े, मिल रही बधाइयां
शाखों पर आगई हरी हरी पत्तियां
नव कोपलों से सुसज्जित शाख
भूल गई विरह वेदना....
कौन सुनेगा दर्द की कहानियां।।
बिखरे बिखरे शब्द है
भाव खोखले होगये
रीत जगत की यही...
आने वाले कि उमंग में
भूल गए दर्द की कहानियां...
उर्मिला सिंह
सुप्रभात एवम हार्दिक धन्यवाद यधोदा जी आपका,हमारी रचना को साझा करने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआलोक सिन्हा जी धन्यवाद।
Deleteसुख की छाँव में दर्द भूल जाते हैं !!सुंदर भाव !!
ReplyDeleteअनुपमा जी हार्दिक धन्यवाद आपका।
Deleteदिखा रहा तमाशा अपना
ReplyDeleteजग का सृजनहार यहां
नव कोपलों के आने तक
होगया वीरान यहां....
कौन सुनेगा यहां दर्द की कहानियां। गहन रचना।
हार्दिक धन्यवाद संदीप जी।
Deleteभावों का अद्भुत संगम । बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteकविता में यदि वर्तनी की अशुद्धि होती है तो गद्य रचनाओं से ज्यादा खल जाती है ।
मेरी बात को अन्यथा न लीजिएगा ।
धूल धुरसित / धूल धूसरित शब्द होता है ।
एक दो जगह टाइपिंग की गलती हैं । यदि उचित समझें तो सुधार लें ।
संगीता स्वरूप जी धन्यवाद ,आपने ऐसा क्यों सोचा कि आपकी बातों को मैं अन्यथा लूँगी ,ऐसा कृपया न सोचें,त्रुटियों को कम लोग ही बताते हैं।पुनः धन्यवाद तथा आभार आपका।
Deleteबिखरे बिखरे शब्द है
ReplyDeleteभाव खोखले होगये
रीत जगत की यही...
आने वाले कि उमंग में
भूल गए दर्द की कहानियां...सुन्दर सृजन।
शांतनु जी!आभार आपका।
Deleteधन्यवाद शांतनु जी।
Deleteबेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अमृता तन्मय जी।
ReplyDeleteप्रकृति की छटा बिखेरती बहुत सुंदर, भाव प्रधान रचना।
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